माँ कामाख्या शक्तिपीठ गुआहाटी से करीब आठ किलोमीटर नीलांचल पर्वत पर स्थित है । बड़े से बड़े तांत्रिक या साधक की साधना माँ के आशीर्वाद के बिना अधूरी मानी जाती है । ऐसा माना जाता है की यदि तांत्रिक यहाँ आकर माँ का आशीर्वाद प्राप्त न करे तो माँ उससे नाराज हो जाती है और ऐसे साधक को किसी भी सूरत में पूर्णता प्राप्त नहीं हो पाती । यह शक्तिपीठ तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए विश्व विख्यात है । इस रहस्य्मयी मंदिर में अनेक तंत्र देवियों जैसे तारा, धूमावती, भैरवी, कमला, बगलामुखी आदि की मूर्तियां स्थापित हैं । हमारे समाज में जहाँ रजस्वला स्त्री को अपवित्र मान कर कई तरह के परहेज रखे जाते हैं वहीँ मासिक धर्म के दौरान माँ कामाख्या को अत्यंत पवित्र माना जाता है और इस दौरान माँ की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है । विश्व भर से आये साधकों को अपना आशीष देकर सिद्धियां प्रदान करती है माँ कामाख्या…….
सती माँ से सम्बंधित कथा से सभी भारतवासी परिचित ही हैं कि जब माँ सती ने महादेव का अपमान होने पर पिता दक्ष के यग्न कुंड में अपने प्राण त्याग दिए थे तो शिव अत्यंत व्यथित हो गए थे और माँ सती के शरीर को अपने अंधे पर उठाकर भयंकर तांडव कर रहे थे तो भगवान् विष्णु ने महादेव के क्रोध को शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से माँ सती के शव के टुकड़े कर दिए थे । उस समय जहां सती की योनि और गर्भ आकर गिरे, उस स्थान को आज कामाख्या शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है ।
Also Read: छिन्नमस्तिका माता की कहानी Chinnamasta Mata Story
माँ कामाख्या को बहते रक्त की देवी भी कहा जाता है । माँ के भक्तों में प्रचलित है की प्रति वर्ष जून माह में कामाख्या देवी रजस्वला होती हैं और उनके बहते रक्त से पूरी ब्रह्मपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है । यह एकमात्र देवी का रूप है जो प्रत्येक वर्ष मासिक धर्म के चक्र में आता है । इस दौरान तीन दिनों तक मंदिर बंद रहता है और माँ का दर्शन निषेध होता है । इस दौरान यहाँ एक मेले का आयोजन किया जाता है जिसे अम्बुवाची पर्व के नाम से जाना जाता है । इन दिनों देश-विदेश से यहाँ सैलानी तो आते ही हैं साथ ही तांत्रिक, अघोरी और अन्य पुजारी भी इस पवित्र स्थान पर एकत्र होते हैं ।
Also Read: मां दुर्गा की कहानी Maa Durga Story
माँ कामाख्या (Kamakhya)शक्तिपीठ को वाममार्ग साधना का सर्वोच्च पीठ कहा जाता है । मत्स्येन्द्रनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी आदि अनेक महान तंत्र साधकों ने यहाँ आकर अपनी साधनायें पूर्ण की । ऐसी मान्यता है की अनेक देशों से यहाँ साधक आते हैं और नीलांचल पर्वत की गुफाओं में साधनायें कर सिद्धियां प्राप्त करते हैं । सिद्धि प्राप्त करने के लिए आपके मन का पवित्र होना अत्यंत आवश्यक है । बिना पवित्र मन के माँ का आशीर्वाद प्राप्त नहीं किया जा सकता है । साधक भ्र्म में हो सकता है माँ नहीं ।
इस मंदिर कि सीढ़ियों से सम्बंधित एक कथा प्रचलित है । ऐसा माना जाता है कि एक नरका नाम का राक्षस देवी कामाख्या की सुंदरता पर इतना मोहित हो गया था कि उनसे विवाह करने कि कामना रखता था । सो उसने माँ से विवाह का प्रस्ताव रखा । माँ कामाख्या ने उसके सामने एक शर्त रख दी कि अगर वह एक ही रात में नीलांचल पर्वत से मंदिर तक सीढ़ियां बना दे तो माँ उससे विवाह करने को राजी हो जाएँगी । नरका ने देवी की शर्त स्वीकार कि और सीढ़ियां बनाने में जुट गया । जब देवी को ज्ञात ही गया कि नरका तो इस कार्य को पूरा कर लेगा तो उन्होंने एक तरकीब निकाली । उन्होंने एक कौवे को मुर्गा बनाया और उसे भोर से पहले ही बांग देने को कहा । नरका को लगा कि वह शर्त पूरी नहीं कर पाया है । परंतु जब उसे वास्तविकता का भान हुआ तो वह उस मुर्गे को मारने दौड़ा और उसकी बलि दे दी । जिस स्थान पर मुर्गे की बलि दी गई वह कुकुराकता नाम से जाना जाने लगा । इस मंदिर की सीढ़ियां आज भी अधूरी हैं ।