X

वृश्चिक लग्न की कुंडली में केतु – Vrishchik Lagn Kundali me Ketu

वैदिक ज्योतिष में केतु को एक मोक्षकारक पापी , क्रूर , छाया गृह के रूप में देखा जाता है । जहां एक तरफ केतु को आध्यात्मिकता का कारक कहा गया है , वहीं केतु तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ के भी कारक है। इन्हें मंगल देवता जैसे परिणाम देने वाला भी कहा जाता है । अपनी महादशा में केतु एक के बाद एक चौंकाने वाले परिणाम दे सकते हैं । इनका अपना कोई घर नहीं होता । इसलिए केतु देवता जिस घर या राशि में जाते हैं उसके अनुरूप ही परिणाम देते हैं । वृश्चिक और धनु केतु की उच्च और वृष व् मिथुन नीच राशियां मानी गई हैं । केतु के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए । ध्यान देने योग्य है की केतु के ३,६,८,१२ भाव में स्थित होने पर या शत्रु के घर में स्थित होने पर , वृष या मिथुन नीच राशि में स्थित होने पर लहसुनिया रत्न कदापि धारण न करें । केतु देवता के मित्र राशि में स्थित होने पर मित्र राशि के स्वामी की स्थिति देखना न भूलें और राहु केतु से संबंधित रत्न किसी योग्य विद्वान की सलाह के बाद ही धारण करें । आइये वृश्चिक लग्न की कुंडली के विभिन्न भावों में केतु के शुभाशुभ फल जानने का प्रयास करते हैं :



वृश्चिक लग्न – प्रथम भाव में केतु – Vrishchik Lagan – Ketu pratham bhav me :

वृश्चिक केतु की मित्र राशि है । । यदि वृश्चिक राशि में लग्न में केतु हो तो अधिकतर परिणाम शुभ ही प्राप्त होंगे । जातक का आकर्षक व्यक्तित्व होता है , कुशाग्र बुद्धिऊ होती है , केतु की महादशा में जातक स्वस्थ रहता है , उदर विकार हो तो केतु की महादशा में ठीक हो जाता है , संतान प्राप्ति का योग बनता है , अचानक लाभ होता है । दाम्पत्य जीवन में सुख समृद्धि बरकरार रहती है , साझेदारी के काम से लाभ प्राप्त होता है , पिता से संबंध अच्छे रहते हैं , जातक आस्तिक , विदेश यात्राएं करने वाला होता है ।

वृश्चिक लग्न – द्वितीय भाव में केतु- Vrishchik Lagan – Ketu dwitiya bhav me :

जातक को धन , परिवार कुटुंब का साथ मिलता है । वाणी से रुकावटें दूर करने में सक्षम होता है । प्रतियोगिता मे सफल होता है । प्रोफेशनल लाइफ में सफलता , उन्नति मिलती है , नए आइडियाज से लाभ अर्जित करता है । धन का आगमन होता रहता है । मुकद्दमे में जीत होती है । टेंशन – डिप्प्रेशन जातक से दूर रहते हैं । यहाँ स्थित केतु दुर्घटना से बचाव करते हैं व् रिसर्च के लिए भी उत्तम होते हैं ।

वृश्चिक लग्न – तृतीय भाव में केतु – Vrishchik Lagan – Ketu tritiy bhav me :

जातक का भाग्य उसका साथ देता है । पिता का सहयोग प्राप्त होता है , धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है , साझेदारी के काम में लाभ मिलता है । बड़े भाई बहन से लाभ प्राप्ति का योग बनता है ।

वृश्चिक लग्न – चतुर्थ भाव में केतु – Vrishchik Lagan – Ketu chaturth bhav me :

यदि शनि देव भी शुभ स्थित हों तो जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का पूर्ण सुख मिलता है । रुकावटें दूर होती है । काम काज भी बेहतर स्थिति में होता है । विदेश सेटलमेंट की सम्भावना बनती है , विदेश से लाभ अर्जित होता है । जातक केतु की डिग्री के अनुसार सभी सुख सुविधाएं भोगता है ।

वृश्चिक लग्न – पंचम भाव में केतु – Vrishchik Lagan – Ketu pncham bhav me :

संतान से संबंध अच्छे नहीं रहते हैं , अचानक हानि होती है । बड़े भाइयों बहनो से संबंध संतोषजनक नहीं रहते हैं ,पेट खराब रहता है । पिता से नहीं बनती है । मानसिक स्थिति उत्तम नहीं रहती है , अनैतिक विचार मन को घेरे रहते हैं ।

वृश्चिक लग्न – षष्टम भाव में केतु – Vrishchik Lagan – Ketu shashtm bhav me :

छठे भाव में स्थित होने से कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । प्रोफेशनल लाइफ खराब होती जाती है , परिवार का साथ नहीं मिलता है । प्रोफेशनल लाइफ में बहुत परेशानियां होती है । जातक घर से दूर रहता है और वाणी खराब हो जाती है ।


वृश्चिक लग्न – सप्तम भाव में केतु – Vrishchik Lagan – Ketu saptam bhav me :

जातक कुशाग्र बुद्धि , मेहनती , वाणी अच्छी बोलने वाला , छोटे – बड़े भाई बहनो और परिवार का साथ पाने वाल नहीं होता है , लाभ अर्जित करने में समस्याएं आती है । जातक के विवाह में विलम्ब होता है , पत्नी और साझेदारों से संबंध सुखद नहीं रहते हैं , पार्टनर से धोखा मिलने की संभावना बनती है । जातक अपने आप को अकेला महसूस करता है ।

वृश्चिक लग्न – अष्टम भाव में केतु – Vrishchik Lagan – Ketu ashtam bhav me :

यहां केतु के अष्टम भाव में स्थित होने से जातक के हर काम में रुकावट आती है । केतु की महादशा में टेंशन बनी रहती है । बुद्धि साथ नहीं देती है , धन का अभाव रहता है । हॉस्पिटल में व्यय , फिजूल खर्चा होता है , परिवार का साथ नहीं मिलता । सुख सुविधाओं का अभाव रहता है , माता से मन मुटाव रहता है । विदेश सेटलमेंट हो सकती है । सीक्रेट नॉलेज प्राप्त होने में बहुत पापड बेलने पड़ते हैं , ससुराल पक्ष के साथ मन में खटास रहती है । जातक को धन का अभाव बना रहता है ।

वृश्चिक लग्न – नवम भाव में केतु – Vrishchik Lagan – Ketu nvm bhav me :

जाँघों या घुटनो में समस्या आती है । पिता से नहीं निभती , धार्मिक नहीं होता , इर्रिटेटिंग पर्सनालिटी हो जाती है , संतान प्राप्ति में विलम्ब होता है ,पेट में कोई बीमारी हो जाती है । मेहनत बहुत अधिक हो जाती है , फल न के बराबर मिलता है। विदेश यात्रा करता है । प्रेम संबंधों में नाकामयाबी मिलती है । केतु की महादशा में जातक को बहुत अधिक मेहनत करके अपना जीवन यापन करना पड़ता है ।

वृश्चिक लग्न – दशम भाव में केतु – Vrishchik Lagan – Ketu dasham bhav me :

समस्याओं में वृद्धि होती है , परिवार से दूर रहने का योग बनता है । जातक को भूमि , मकान , वाहन का सुख नहीं मिलता है । माता से मन मुटाव रहता है । काम काज बंद होने के कगार पे आ जाता है । परिवार साथ नहीं देता है , प्रतियोगिता में हार का मुँह देखना पड़ता है । नौकरी यदि हो तो बदलती रहती है । केतु की महादशा में अपनी जेब से पैसा लगाकर कोई कार्य न करें । कदम कदम पे शत्रुओ से सामना होता रहता है । कोर्ट केस में हार होती है ।

वृश्चिक लग्न – एकादश भाव में केतु – Vrishchik Lagan – Ketu ekaadash bhav me :

बड़े भाई बहनो से सम्बन्ध मधुर रहते हैं , लाभ प्राप्त होता रहता है । छोटे भाई बहन से भी संबंधों में मिठास रहती है । केतु की महादशा में अचानक धन लाभ होता है । पत्नी से संबंधों में मधुरता आती हैं और साझेदारी से लाभ प्राप्त होता है । अधिकतर परिणाम शुभ ही प्राप्त होते हैं। बुद्ध की शुभ स्थिति व केतु के बलाबल के अनुसार केतु के शुभाशुभ फलों में वृद्धि या कमी जाननी चाहिए ।

वृश्चिक लग्न – द्वादश भाव में केतु – Vrishchik Lagan – Ketu dwadash bhav me :

द्वादश भाव में स्थित होने से व्यय बढ़ता है , बीमारी लगने की संभावना रहती है । मन परेशान रहता है । कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । कम्पटीशन में असफलता हाथ लगती है , भूमि , मकान , वाहन का सुख नहीं मिलता है । माता के सुख में कमी आती है । विदेश यात्रा , सेटलमेंट का योग बनता है । सभी कार्यों में रूकावट आती है और टेंशन-डिप्रेशन लगातार बना रहता है ।

केतु के उपाय और रत्न Ketu stone/remedies :

केतु के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए । केतु के ३,६,८,१२ भाव में स्थित होने या शत्रु के घर में स्थित होने पर , नीच राशि वृष या मिथुन में स्थित होने पर लहसुनिया रत्न कदापि धारण न करें । केतु देवता के मित्र राशि में स्थित होने पर मित्र राशि के स्वामी की स्थिति देखना न भूलें और राहु केतु से संबंधित रत्न किसी योग्य विद्वान की सलाह के बाद ही धारण करें ।

गणेश भगवान् की शरण में जाएँ । गणेश की उपासना से केतु प्रसन्न होते हैं व् अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं । ॐ केतवे नमः का जाप करें । जप के बाद केतु देवता से प्रार्थना करें की वो आपको क्षमा करें , आप पर अपना कृपा करें । किसी कुत्ते की सेवा करें । किसी की जमीन पर कब्जा न करें । यदि आप नित्य साधना रत रहते हैं तो केतु देवता निसंदेह प्रस्सन होते हैं और आपकी शुद्ध भावना के अनुरूप अशुभ फलों में कमी लाते हैं । यदि आपको ऐसा प्रतीत हो की लोग आपसे सम्बन्ध बनाते हैं और आपसे फायदा उठाकर चले जाते हैं तो निराश न हों , यह आपके लिए शुभ है । आप अपना काम करते रहें । किसी के भी ह्रदय को ठेस न पहुंचाएं । आपका मंगल हो ।

Jyotish हिन्दी:
Related Post