ॐ श्री गणेशाये नमः । किसी भी राशि से जुड़े चिन्ह उस राशि विशेष के सम्बन्ध में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी लिए होते हैं । वृष राशि का चिन्ह बैल है । बैल स्वभाव से शांत रहता है, बहुत अधिक पारिश्रमी और वीर्यवान होता है! आमतौर पर वो शांत ही रहता है, किन्तु एक बार यदि उसे क्रोध आ जाये वह उग्र रूप धारण कर लेता है । वृष राशि के जातक में ये सभी गुण सहज ही प्रकट होते हैं! इस राशि के स्वामी शुक्र देवता होते हैं । शुक्र एक सौम्य ग्रह हैं । अतः वृष राशि (Vrish Rashi) भी सौम्य राशि की श्रेणी में आती है।पृथ्वी तत्त्व राशि होने व् स्थिर स्वभाव की राशि होने से इस राशि के जातकों में ठहराव देखने को मिलता है ।ये लोग जल्दबाजी पसंद नहीं करते हैं । वृष राशि (Vrish rashi ) के जातकों को क्रोध अपेक्षाकृत कम ही आता है , परन्तु एक बार आ जाये तो ये बैल की भांति ही व्यवहार कर सकते हैं और आसानी से शांत नहीं होते । वॄष राशि का विस्तार राशि चक्र के 30 अंश से 60 अंश के बीच पाया जाता है ।
वृष राशि का स्वामी शुक्र होने से ऐसे जातक को विलासी जीवन सहज ही आकर्षित करता है । ऐसे जातक प्रस्सन रहना चाहते हैं व् दूसरों को भी प्रस्सन रखना पसंद करते हैं । भोजन के शौकीन ऐसे जातक आदर सत्कार में किसी प्रकार की कमी नहीं रखना चाहते हैं । बार बार परिवर्तन से इन्हें चिढ होती है ।
वृष लग्न के नक्षत्र: Taurus Lagna Nakshatra
वृष राशि (Vrish Rashi) कॄत्तिका नक्षत्र के तीन चरण,रोहिणी के चारों चरण, और मॄगसिरा के प्रथम दो चरण से बनती है । वॄष राशि का विस्तार राशि चक्र के 30 अंश से 60 अंश के बीच पाया जाता है ।
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक ग्रह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक ग्रह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे , आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
शुक्र ग्रह : Shukra grah
शुक्र वृष लग्न की कुंडली में छठे घर का मालिक भी है , परन्तु लग्नेश होने से कुंडली का शुभ ग्रह बनता है । अतः वृष लग्न की कुंडली में कारक ग्रह माना जाता है ।
बुध ग्रह : Budh Grah
बुध दुसरे व् पांचवें घर का स्वामी है, अतः इस लग्न कुंडली में कारक ग्रह है ।
शनि ग्रह : Shani Grah
शनि नवें व् दसवें घर के स्वामी होने से इस लग्न कुंडली में अति योग कारक ग्रह होते हैं ।
सूर्य ग्रह: Surya Grah
सूर्य चतुर्थ का स्वामी है व् लग्नेश का अति शत्रु है अतः सम ग्रह है ।
चंद्र ग्रह : Chander grah
चंद्र तीसरे घर का स्वामी है , अतः मारक है ।
मंगल ग्रह: Mangal grah
सातवें व् बारहवें घर का स्वामी होने से वृष लग्न कुंडली में मारक ग्रह बनता है ।
गुरु ग्रह: Guru grah
गुरु आठवें , ग्यारहवें का स्वामी है । अतः मारक है ।
किसी भी निर्णय पैर पहुँचने से पहले ग्रह किस स्थान में स्थित है व् किसके साथ है ,किस राशि में है , कौन इसे देखता है ,ये किसे देख रहा है आदि तथ्य देखना न भूलें । आप सभी का जीवन सुखी व् मंगलमय हो ।