वृष लग्न की कुंडली में मंगल सातवें व् बारहवें भाव के स्वामी होते हैं । सप्तमेश व् द्वादशेश होने की वजह से वृष लग्न कुंडली में एक अकारक गृह कहे जाते हैं । यदि मंगल प्रथम भाव में हों और सातवीं दृष्टि से सप्तम भाव को देखते हों तो मांगलिक दोष की निर्मिति नहीं कही जायेगी । यहाँ मांगलिक दोष इसलिए नहीं बनता क्यूंकि सप्तम भाव में मंगल की स्वयं की राशि वृश्चिक आती है । ज्योतिषीय नियमो के अनुसार एक अकारक गृह भी अपने स्वयं के घर की रक्षा करता है । यहाँ जब मंगल सप्तम दृष्टि से अपने स्वयं के घर को देखते हैं तो सातवें भाव सम्बन्धी शुभ फलों में वृद्धि करते हैं न की सातवें भाव को नुक्सान पहुंचाते हैं ।
यही मंगल यदि चतुर्थ भाव में हो यानी अपनी मित्र राशि सिंह में हो तो एक अकारक गृह होने की वजह से चौथे भाव को तो खराब करते हैं परन्तु जब अपनी चौथी दृष्टि से सातवें भाव को देखते हैं तो उसे सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं और सप्तम भाव सम्बन्धी शुभ फलों में वृद्धिकारक होते हैं । इस प्रकार यदि वृष लग्न की कुंडली में मंगल चौथे भाव में हो तो मांगलिक दोष नहीं बनता है । इसके अतिरिक्त मंगल सातवीं दृष्टि से दसवें भाव को और आठवीं दृष्टि से ग्यारहवें भाव को देखते हैं और दोनों भाव सम्बन्धी शुभ फलों में कमी लाने वाले कहे जाते हैं ।
इसी लग्न कुंडली में यदि मंगल सातवें भाव में स्थित हो जाए तो मांगलिक दोष की निर्मिती नहीं कही जायेगी । क्यूंकि मंगल स्वयं अपने घर ( वृश्चिक राशि ) में आ गए हैं तो मंगल अपनी दशा अन्तर्दशा में सातवें भाव सम्बन्धी सभी उचित परिणाम प्रदान करते है । इसके अतिरिक्त मंगल चौथी दृष्टि से दसवें भाव को ( कुम्भ राशि ), सातवीं से लग्न भाव को और आठवीं दृष्टि से अपनी शत्रु राशि को मिथुन को देखते हैं और दसवें, पहले तथा दुसरे भाव सम्बन्धी शुभ फलों में कमी लाते हैं । अपनी महादशा अथवा अन्तर्दशा में इन भावों सम्बन्धी अशुभ फल प्रदान करते हैं ।
वृषलग्न की कुंडली में आठवें भाव में धनु राशि आती है । आठवां भाव त्रिक भाव में से एक होता है कुंडली का एक अशुभ स्थान कहा जाता है । भौतिक शरीर का स्थिर कारक होने के कारण मंगल का आठवें भाव में जाना शुभ नहीं कहा जा सकता है । आठवें भाव में स्थित मंगल जातक को शारीरिक के साथ साथ मानसिक क्षति पहुंचाता है । इस वजह से कहा जा सकता है की मेष लग्न कुंडली में आठवें भाव में स्थित होने पर मंगल को मांगलिक दोष लगता है । ऐसा मंगल अपनी महादशा या अन्तर्दशा में ग्यारहवें, दुसरे व तीसरे भाव सम्बन्धी अशुभ फलों में वृद्धिकारक होता है । ।
इसी लग्न कुंडली में यदि मंगल द्वादशस्थ हो जाए तो मांगलिक दोष नहीं माना जाता है । यद्यपि बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, कुंडली का शुभ स्थान नहीं माना जाता है, परन्तु वृष लग्न की कुंडली में बारहवें भाव में मेष राशि आती है । यदि यहाँ विपरीत राजयोग न भी बने तो भी मंगल आठवीं दृष्टि से अपने ही भाव को ( वृश्चिक राशि ) देखता है, जिस कारण मांगलिक दोष नहीं बनता ।
इस प्रकार हमने जाना की वृष लग्न की कुंडली में मंगल पहले, चौथे, सातवें और बारहवें भाव में स्थित होने पर मांगलिक दोष का निर्माण नहीं करता है । वहीँ यह मंगल लग्न से आठवें भाव में स्थित हो जाए तो मांगलिक दोष का घोतक होता है ।
ध्यान दें किसी भी कुंडली के मांगलिक दोष को निर्धारित करते समय मांगलिक दोष के कैंसलेशन पॉइंट्स जरूर देख लें । इनकी जानकारी आपको नेट पर आसानी से उपलब्ध हो जायेगी । मांगलिक दोष के कैंसलेशन पॉइंट्स जानने के लिए आप हमारी वेबसाइट jyotishhindi.in पर भी लॉगिन कर सकते हैं ।
आशा है की आज का विषय आपके लिए ज्ञानवर्धक रहा । आदियोगी का आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो । ज्योतिषहिन्दी.इन ( Jyotishhindi.in ) पर विज़िट करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।