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वृष लग्न की कुंडली में केतु – Vrish Lagn Kundali me Ketu :

वैदिक ज्योतिष में केतु को एक मोक्षकारक पापी , क्रूर , छाया गृह के रूप में देखा जाता है । जहां एक तरफ केतु को आध्यात्मिकता का कारक कहा गया है , वहींकेतु तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ के भी कारक है। इन्हें मंगल देवता जैसे परिणाम देने वाला भी कहा जाता है । अपनी महादशा में केतु एक के बाद एक चौंकाने वाले परिणाम दे सकते हैं । इनका अपना कोई घर नहीं होता । इसलिए केतु देवता जिस घर या राशि में जाते हैं उसके अनुरूप ही परिणाम देते हैं । वृश्चिक और धनु केतु की उच्च और वृष व् मिथुन नीच राशियां मानी गई हैं । आइये जानते हैं वृष लग्न की कुंडली के बारह भावों में केतु के परिणाम।



वृष लग्न – प्रथम भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu pratham bhav me :

वृष केतु की नीच राशि है । यदि वृष राशि में लग्न में केतु हो तो अधिकतर परिणाम अशुभ ही प्राप्त होंगे । केतु की महादशा में पेट खराब रहता है, संतान प्राप्ति कायोग देर से बनता है, अचानक हानि होती है । दाम्पत्य जीवन में परेशानिया रहती है, साझेदारी के काम में घाटा होता है, पिता से संबंध खराब रहते हैं, जातकनास्तिक, विदेश यात्राएं करने वाला होता है ।

वृष लग्न – द्वितीय भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu dwitiya bhav me :

मिथुन भी केतु की नीच राशि है । ऐसे जातक का मन चिंतित ताहता है , धन, परिवार कुटुंब का साथ नहीं मिलता है । जातक का अपनी वाणी पर नियंत्रण होता है। प्रतियोगिता में असफल होता है । हर काम में रुकावट आती है । प्रोफेशनल लाइफ परेशानियों भरी होती है ।

वृष लग्न – तृतीय भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu tritiy bhav me :

कर्क केतु की शत्रु राशि होती है । छोटे – बड़े भाई बहनों से कलह रहती है । जातक का भाग्य उसका साथ नहीं देता है । पितृभक्त , धार्मिक प्रवृत्ति का नहीं होता है।दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं रहता है , साझेदारी के काम में लाभ नहीं मिलता है ।

वृष लग्न – चतुर्थ भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu chaturth bhav me :

चतुर्थ भाव में शत्रु राशि सिंह में आने से जातक को भूमि, मकान, वाहन व् माता का पूर्ण सुख नहीं मिलता है । रुकावटें दूर होने का नाम नहीं लेती है । काम काजभी बेहतर स्थिति में नहीं होता है । विदेश सेटलमेंट की सम्भावना बनती है ।

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वृष लग्न – पंचम भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu pncham bhav me :

बुद्ध की राशि कन्या में केतु जातक को बहुत बुद्धिमान बनाते हैं । संतान प्राप्ति का योग बनता है । अचानक लाभ की स्थिति बनती है । बड़े भाइयों बहनो से संबंधसंतोषजनक रहते हैं । जातक की याददाश्तबहुत अच्छी होती है और ऐसा जातक आस्तिक व् पितृ भक्त होता है । बुद्ध ठीक स्थित होने पर सभी परिणामसकारात्मक प्राप्त होते हैं ।

वृष लग्न – षष्टम भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu shashtm bhav me :

कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । प्रोफेशनल लाइफ खराब होती जाती है । वाणी खराब , परिवार का साथ नहीं मिलता है ।

वृष लग्न – सप्तम भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu saptam bhav me :

यदि मंगल स्वयं शुभ स्थित हों तो जातक कुशाग्र बुद्धि , मेहनती , वाणी अच्छी बोलने वाला , छोटे – बड़े भाई बहनो और परिवार का साथ पाने वाला होता है । पत्नीबुद्धिमान होती है व् साझेदारों से लाभ मिलता है ।


वृष लग्न – अष्टम भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu ashtam bhav me :

यहां केतु के अष्टम भाव में स्थित होने से जातक के हर काम में रुकावट आती है । केतु की महादशा में टेंशन बनी रहती है । बुद्धि साथ नहीं देती है । पिता से संबंधखराब होते हैं, फिजूल खर्चा होता है , परिवार का साथ नहीं मिलता है । सुख सुविधाओं का अभाव रहता है । विदेश सेटलमेंट हो सकती है ।

वृष लग्न – नवम भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu nvm bhav me :

जातक बुद्धिमान , धार्मिक , पितृ भक्त , उत्तम संतान युक्त होता है । मेहनत का फल अवश्य मिलता है। विदेश यात्रा करता है । शनि अशुभ स्थित हों तो परिणामअशुभ जानने चाहियें ।

वृष लग्न – दशम भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu dasham bhav me :

शनि शुभ स्थित हों तो यहां मित्र राशि कुम्भ में आने से जातक को भूमि , मकान , वाहन का सुख मिलता है । काम काज बहुत अच्छा चलता है । परिवार साथ देता है, प्रतियोगिता में जीत होती है ।

वृष लग्न – एकादश भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu ekaadash bhav me :

शत्रु राशि मीन में स्थित होने पर बड़े भाई बहनो से स्नेह नहीं रहता है । संतान प्राप्ति का योग नहीं बनता है , संतान प्राप्ति में विलम्ब आवश्य होता है । केतु कीमहादशा में अचानक धन लाभ की संभावना नहीं बनती है । पत्नी साझेदारों से लाभ प्राप्त नहीं होता है ।

वृष लग्न – द्वादश भाव में केतु – Vrish Lagan – Ketu dwadash bhav me :

मेष राशि व् द्वादश भाव में स्थित होने से व्यय बढ़ता है , बीमारी लगने की संभावना रहती है । मन परेशान रहता है । कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है ।कम्पटीशन में असफलता हाथ लगती है , भूमि , मकान , वाहन का सुख नहीं मिलता है । माता के सुख में कमी आती है । विदेश यात्रा , सेटलमेंट का योग बनता है। सभी कार्यों में रूकावट आती है और टेंशन-डिप्रेशन लगातार बना रहता है । ऐसा कहा जाता है की जिस जातक के बारहवें भाव में केतु हो, यह उसका आखरी जन्म होता है । ऐसा जातक मोक्ष प्राप्त करता है ।

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