वृष लग्न की कुंडली में गुरु आठवें और ग्यारहवें भाव के मालिक होकर एक अकारक गृह बनते हैं । आइये विस्तार से जानते हैं गुरु व् राहु की युति से किन भावों में बनता है गुरुचण्डाल योग बनता है, किस गृह की की जायेगी शांति….
अकारक गुरु अपने शत्रु की राशि वृष में आकर जातक का अनिष्ट करने के लिए बाध्य हैं । प्रथम में भाव में राहु अपने गुरु शुक्र देव की राशि वृष में आकर जातक को सभी भौतिक सुखों से परिपूर्ण, प्रखर बुद्धि का स्वामी, आकर्षक व्यक्तित्व से युक्त, धार्मिक बनाते हैं । ऐसा जातक विदेश यात्राओं और साझेदारी के काम से भी धन कमाने वाला, बुद्धिमान संतान से युक्त होता है । ऐसी स्थिति में गुरु की शांति अनिवार्य है अन्यथा राहु के शुभ फलों में भी कमी आती है ।
राहु की दशाओं में धन, परिवार, कुटुंब का पूर्ण सहयोग रहता है, रुकावटें दूर होती हैं, प्रतियोगिता परीक्षा में विजय के योग बनते हैं । प्रोफेशनल लाइफ में तरक्की के योग बनते हैं । राहु की दशाओं में जातक की जुबां थोड़ी तेज तर्रार हो जाती है, इससे कुटुंबजनों को थोड़ी दिक्कत आती है लेकिन ओवरआल रिजल्ट्स अच्छे ही आते हैं । अकारक गुरु की दशाओं में राहु की दशाओं से उलट होता है इसलिए दुसरे भाव में भी गुरु की शांति अनिवार्य है ।
यहाँ गुरु व् राहु परिश्रम में वृद्धिकारक हो जाते हैं, दोनों ग्रहों की दशाओं में परिश्रम में वृद्धि होती है, विदेश यात्राओं के योग भी बनते हैं । कर्क राशि और तृतीय भाव में आकर दोनों गृह अनिष्टकारी हो जाते हैं, इसलिए गुरु व् राहु दोनों की शांति करवाई जानी चाहिए ।
अकारक गृह गुरु व् राहु का सिंह राशि में आना किसी भी प्रकार शुभ नहीं माना जा सकता । यहाँ गुरुचण्डाल योग पूर्णतया बनता है और दोनों ग्रहों की शांति परम आवश्यक है ।
यहाँ राहु अपने मित्र की रही कन्या में आकर शुभ फलदायक होते हैं । राहु की दशाओं में विल पावर बहुत स्ट्रांग रहने, उच्च शिक्षा के, किसी विषय में रिसर्च के योग बनते हैं, बड़े भाई बहन से खूब अच्छी निभती है, धन लाभ होता है, स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है । वहीँ गुरु की दशाओं में उलट होता है साथ ही संतान को मानसिक या शारीरिक कष्ट के योग बनते हैं । इसलिए पंचम भाव में कन्या राशि में आये अकारक गुरु का उपाय बहुत आवश्यक हो जाता है । गुरु की शांति करवाएं ।
त्रिक भावों में कोई योग नहीं बनता । कोर्ट केस में भी पैसा व्यय होने के चान्सेस बनते हैं । नौकरी/व्यापार में पैशानियाँ बढ़ती हैं । यदि शुक्र बलवान हों तो राहु शुभ फल प्रदान करते हैं । गुरु की शांति करवाई जानी चाहिए ।
सप्तम भाव में राहु अपनी नीच राशि वृश्चिक में आकर अशुभता में बढ़ौतरी करते हैं और गुरु भी अकारक होकर शुभ फलों में कमी ही लाते हैं । इस भाव में गुरुचण्डाल योग पूर्णतया बनता है और दोनों ग्रहों की शांति करवाई जानी चाहिए ।
आठवाँ भाव त्रिक भाव में से एक होता है, शुभ नहीं कहा जाता है । राहु धनु राशि में भी नीच के हो जाते हैं । दोनों ग्रहों की दशाओं में जातक मृत्यु तुल्य कष्ट भोगता है । दोनों की ही शांति करवाई जानी चाहिए ।
मकर राशि में गुरु नीच के हो जाते हैं । पहले से ही अकारक गृह गुरु की शांति अनिवार्य हो जाती है । राहु अपने मित्र शनि के घर में आकर शुभ फलों में वृद्धिकारक होते हैं ।
कुम्भ राशि में आये अकारक गुरु दसवें के साथ साथ जिन भावों के स्वामी हैं और जहाँ देखते हैं उन सभी भावों का अनिष्ट करते हैं । वहीँ कुम्भ राहु की मित्र राशि है । कुम्भ राशि के राहु शुभफलदायक होते हैं । इसलिए यहाँ गुरु की शांति करवाई जाती है ।
मीन राशि में आने पर गुरुराहु की युति से गुरुचण्डाल योग अवश्य बनेगा और दोनों ग्रहों की शांति करवाई जानी चाहिए ।
बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, शुभ नहीं माना जाता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में व्यर्थ का व्यय लगा ही रहता है । कोर्ट केस में धन व्यय होने के योग बनते हैं । इस भाव में आने पर भी राहु व् गुरु दोनों की शांति अनिवार्य है ।
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