वृष लग्न कुंडली में देव गुरु वृहस्पति अष्टमेश, एकादशेश होते हैं । अतः दैत्य लग्न की इस लग्न कुंडली में देव गुरु एक मारक गृह हैं । ऐसी स्थिति में गुरु की दशा, अंतर्दशा में अधिकतर फल अशुभ ही प्राप्त होते हैं । केवल विपरीत राज योग की स्थिति में देव गुरु शुभ फल प्रदान करते हैं । वृष लग्न की कुंडली के जातक को किसी भी सूरत में गुरु रत्न पुखराज धारण नहीं करना चाहिए । ग्रह बलाबल में सुदृढ़ होने पर अधिक शुभ या अधिक अशुभ फल प्रदान करते हैं । इसके विपरीत यदि ग्रह बलाबल में कमजोर हों तो कम शुभ या कम अशुभ फल प्रदान करते हैं । ध्यान दें की कारक ग्रह का बलाबल में सुदृढ़ होना और शुभ स्थित होना उत्तम जानना चाहिए और मारक गृह का बलाबल में कमजोर होना उत्तम जानें । कुंडली के उचित विश्लेषण के बाद ही उपाय संबंधी निर्णय लिया जाता है की उक्त ग्रह को रत्न से बलवान करना है, दान से ग्रह का प्रभाव कम करना है, कुछ तत्वों के जल प्रवाह से ग्रह को शांत करना है या की मंत्र साधना से उक्त ग्रह का आशीर्वाद प्राप्त करके रक्षा प्राप्त करनी है । मंत्र साधना सभी के लिए लाभदायक होती है । आज हम वृष लग्न कुंडली के 12 भावों में देव गुरु वृहस्पति के शुभाशुभ प्रभाव को जान्ने काप्रयास करेंगे ।
वृष राशि में लग्न में स्थित होने पर गुरु को दिशा बल मिलता है । यदि लग्न में गुरु हो तो जातक पितृभक्त नहीं होगा, आस्थावान, बुद्धिमान होता है । गुरु की महादशा, अंतर्दशा में पुत्र प्राप्ति का योग बनता है, पेट खराब, संकल्पशक्ति हीन हो जाती है, अचानक हानियां मिलती हैं और समाज में मान सम्मान का ह्रासहोता है । दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं रहता है , साझेदारी के काम में लाभ नहीं मिलता है , विदेश यात्राएं होती हैं ।
ऐसे जातक को धन , परिवार कुटुंब का भरपूर साथ मिलता है । मधुर वाणी होती है । परन्तु अपनी ऊर्जा , प्रभाव , वाणी , निर्णय क्षमता से सभी मुश्किलों को पारनहीं कर पाटा है । प्रतियोगिता , कोर्ट केस में हार होती है । रुकावटें बनी रहती हैं और प्रोफेशनल लाइफ डिस्टर्ब रहती है ।
जातक बहुत परश्रमी होता है । जातक का भाग्य उसका साथ नहीं देता है ।। छोटे भाई का योग बनता है । पितृभक्त नहीं होता है । धार्मिक प्रवृत्ति का होता है ।दाम्पत्य जीवन में सुख की कमी आती है , साझेदारी के काम में घाटा मिलता है । बड़े भाई बहनो का सहयोग प्राप्त होता है । जातक को बहुत परिश्रम करने परकुछ परिणाम प्राप्त होते हैं ।
चतुर्थ भाव में गुरु होने से जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का पूर्ण सुख मिलता नहीं मिलता है । माता को कोई न कोई परेशानी लगी रहती है । काम काजभी बेहतर स्थिति में नहीं होता है । विदेश यात्रा/सेटलमेंट की सम्भावना बनती है ।
पुत्र का योग बनता है , पेट खराब रहता है , संकल्प शक्ति क्षीण होती है । अचानक हानि की स्थिति बनती है । बड़े भाइयों बहनो से संबंध ठीक ठाक रहते हैं ।जातक बहुत बुद्धिमान होता है , धार्मिक प्रवृत्ति का नहीं होता है ।
यदि शुक्र बलवान व् शुभ स्थित हुआ तो विपरीत राजयोग बनता है और गुरु शुभ फल प्रदान करते हैं । इसके विपरीत यदि विपरीत राजयोग नहीं बना तो कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । प्रोफेशनल लाइफ खराब होती जाती है । परिवार का साथ नहीं मिलता है ।
दाम्पत्य जीवन में कलह रहती है , साझेदारों से मन मुटाव , संबंध खराब होते हैं । बड़े भाई बहन से लाभ मिलता है । जातक काफी मेहनती होता है , छोटे भाई बहनसे नहीं बनती है।
यहां गुरु के अष्टम भाव में स्थित होने की वजह से जातक के हर काम में रुकावट आती है । गुरु की महादशा में टेंशन बनी रहती है । बुद्धि साथ नहीं देती है ।फिजूल खर्चा होता है , परिवार का साथ नहीं मिलता है । सुख सुविधाओं का अभाव रहता है । विपरीत राज योग की स्थिति में परिणाम शुभ जानें ।
नीच राशि में होने से जातक बुद्धिमान , धार्मिक , पितृ भक्त नहीं होता है । विदेश यात्रा में बाधा आती है , बुद्धि कमजोर होती है , छोटे भाई बहन से/ को परेशानीहोती है , मेहनत का फल नहीं मिलता है , जातक को संतान संबंधी कोई न कोई परेशानी लगी रहती है ।
जातक को भूमि , मकान , वाहन का सुख नहीं मिलता है । माता के सुख में कमी आती है । काम काज बंद होने के कागार पर आ जाता है । परिवार साथ नहीं देता, धन का अभाव बना रहता है । कम्पीटिशन में हार का मुँह देखना पड़ता है । दुर्घटना का भय बना रहता है ।
यहां स्थित होने पर बड़े भाई बहनो का स्नेह बना रहता है , लाभ मिलता है। छोटे भाई बहनों से परेशानी , पुत्र प्राप्ति का योग बनता है । गुरु की महादशा में अचानकधन लाभ की संभावना बनती है । पत्नी साझेदारों से हानि प्राप्त होती है ।
विपरीत राजयोग की स्थिति में शुभ परिणाम होते हैं अन्यथा पेट में बीमारी लगने की संभावना रहती है । मन परेशान रहता है । कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है। कम्पटीशन में असफलता हाथ लगती है , भूमि , मकान , वाहन का सुख नहीं मिलता है । माता के सुख में कमी आती है । सभी कार्यों में रूकावट आती है औरटेंशन-डिप्रेशन बना रहता है ।