तुला लग्न की कुंडली में गुरु तीसरे और छठे भाव के मालिक होकर एक मारक गृह बनते हैं । आइये विस्तार से जानते हैं गुरु व् राहु की युति से किन भावों में बनता है गुरुचण्डाल योग, किस गृह की की जायेगी शांति….
तुला राशि में राहु शुभ फल प्रदान करते हैं । यहाँ गुरु गृह से सम्बंधित उपाय करवाया जाएगा । केवल राहु की दशाओं में जातक को शुभ फल प्राप्त होते हैं ।
वृश्चिक राशि में राहु नीच के माने जाते हैं और गुरु कुंडली के मारक गृह होकर अशुभ फल प्रदान करने के लिए बाध्य हैं । यहाँ दोनों ग्रहों की शांति करवाई जायेगी ।
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धनु राशि में भी राहु नीच के हो जाते हैं, राहु की दशाएं कष्टकारी होती हैं । इस भाव से सम्बंधित होने पर भी दोनों ग्रहों की शांति करवाई जायेगी ।
मकर राशि गुरु की नीच राशि है और गुरु इस जन्मपत्री में एक अकारक गृह भी हैं । वहीँ राहु अपने मित्र शनि के घर में आये हैं, शुभता में वृद्धिकारक हैं । इस भाव से सम्बंधित होने पर गुरु की शांति अनिवार्य है अन्यथा गुरु की दशाएं बहुत कष्टकारी होती हैं और राहु के शुभ फलों में भी कमी आती है ।
कुम्भ राहु की मित्र राशि होती है । राहु की दशाएं शुभफलप्रदायक होती हैं । गुरु की शांति करवाई जाती है अन्यथा जातक के साथ साथ संतान व् बड़े छोटे भाई बहन को भी कष्ट होता है ।
इस भाव में दोनों की दशाएं अशुभ फलकारी हैं । दोनों की शांति अनिवार्य है । छठे भाव में स्थित होकर गुरु शुभ रिजल्ट दे सकते हैं यदि विपरीत राजयोग बना लें तो । गुरु के विपरीत राजयोग बनाने के लिए शुक्र का बलवान होना आवश्यक है ।
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इस भाव में आने पर गुरु के साथ साथ राहु की भी शांति करवाई जानी चाहिए क्यूंकि राहु अपनी शत्रु राशि मेष में आये हैं ।
आठवाँ भाव त्रिक भाव में से एक होता है, शुभ नहीं कहा जाता है । आठवाँ भाव वैसे ही भौतिक दृष्टि से शुभ नहीं कहा गया है । राहु भी इस भाव में अशुभता में ही वृद्धिकारक होते हैं । इस वजह से यहाँ स्थित होने पर राहु व् गुरु दोनों की शांति करवाई जाती है । गुरु विपरीत राजयोग बना लें तो शुभ फलदायक होते हैं । ऐसे में गुरु की शांति नहीं करवाई जाती ।
नवम भाव में मित्र राशिस्थ राहु शुभफलदायक होते हैं । गुरु की शांति करवाई जायेगी ।
दशम भाव में गुरु व् राहु के स्थित होने पर गुरु व् राहु दोनों की दशाओं में बहुत अशुभ फल प्राप्त होते हैं । दोनों की शांति करवाई जानी अनिवार्य है ।
ग्यारहवें भाव में गुरु राहु की युति होने पर दोनों ग्रहों से सम्बंधित उपाय करवाया जाएगा । अकारक गुरु व् शत्रु राशि में आये राहु दोनों अशुभ फलदायक होते हैं ।
बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, शुभ नहीं माना जाता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में व्यर्थ का व्यय लगा ही रहता है । कोर्ट केस में धन व्यय होने के योग बनते हैं । इस भाव में आने पर राहु व् गुरु दोनों की शांति अनिवार्य है । केवल विपरीत राजयोग की स्थिति में गुरु शुभफलदायक होते हैं । ऐसे में केवल राहु की शांति करवाई जाती है ।
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