श्री सोमनाथ मंदिर की कथा, इतिहास और महत्व story history and importance of somnath temple

श्री सोमनाथ मंदिर की कथा, इतिहास और महत्व Story History and Importance of Somnath Temple

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  • गुजरात के सौराष्ट्र की वेरावल बंदरगाह में स्थित सोमनाथ मंदिर हिन्दू संस्कृति के गौरवशाली इतिहास का जीवंत प्रमाण है । चंद्र देवता का एक नाम सोम है और सोम के नाथ हैं शिव अर्थात भोलेनाथ । भारत के सर्वप्रथम बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला ज्योतिर्लिग है सोमनाथ । यह प्राचीनतम तीर्थस्थलों में से एक धार्मिक स्थल है जिसका वर्णन स्कंदपुराणम, श्रीमद्भागवत गीता, शिवपुराणम आदि प्राचीन ग्रंथों में मौजूद है। वहीं ऋग्वेद ( हिन्दुओं के चार प्रसिद्ध वेदों में एक ) में भी सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख मिलता है । इस मंदिर की भव्यता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है की भारतीय श्रद्धालुओं के अतिरिक्त देश विदेश के सैलानी भी भारी मात्रा में यहाँ पधारते हैं । इतिहासकारों के अनुसार सोमनाथ के वैभव की ख्याति इतनी दूर दूर तक फैली थी की विदेशी आक्रमणकारिओं ने कई बार इस मंदिर पर आक्रमण किया और भारी लूटपाट की ।




    सोमनाथ की कहानी Somnath a brief introduction

    प्राचीन हिन्दू ग्रंथों में बताये कथानक के अनुसार सोम ( चंद्र ) देव का विवाह दक्षप्रजापति राजा की २७ कन्याओं से संपन्न हुआ । इन कन्याओं में एक कन्या जिनका नाम रोहिणी था चंद्र देव को अत्यधिक प्रिय थी । चंद्र अपना अधिक समय उसी को दिया करते थे । परिणामस्वरूप अन्य कन्याओं की उपेक्षा हो रही थी जिससे वे क्रोध और ईर्ष्या से भर गयी थीं । इस बात की शिकायत उन्होंने अपने पिता दक्ष से की । प्रजापति दक्ष ने चंद्र देव को समझाया परन्तु चंद्र पर उनके सुझाव का कोई असर न हुआ । स्थिति यथावत बनी रही जिससे क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रदेव को शाप दे दिया कि अब से प्रत्येक दिन तुम्हारा तेज क्षीण होता जाएगा । फलस्वरूप हर दिन चंद्र का तेज घटने लगा । जल वनस्पति औषधियां व् सम्पूर्ण वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा । सभी देवी देवता चिंतित होने लगे । फिर ब्रम्हा देवता के सुझाव पर श्राप मुक्त होने के लिए चंद्र देव ने महादेव की आराधना शुरू की । चंद्र देव के कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए और चंद्र देव को श्राप मुक्त किया । शिव ने चंद्र देव को वरदान दिया की कृष्ण पक्ष को प्रत्येक दिन चन्द्रमा की एक एक कला घटेगी जो शुक्ल पक्ष में प्रत्येक दिन बढ़ेगी । इस प्रकार दक्ष का भी मान रहा और चंद्र देव को श्राप से मुक्ति भी मिल गयी । श्राप मुक्त चंद्र देव ने शिव से माता पार्वती सहित यहीं रहने का अनुरोध किया जिसे शिव ने सहर्ष स्वीकार लिया । चंद्र देव द्वारा आदिनाथ की विधिवत स्थापना हुई और इस प्रकार इनका नाम पड़ा “सोमनाथ” …….

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    सोमनाथ मंदिर का इतिहास Somnath Mandir History

    भारतीय सभ्यता की अनूठी मिसाल यह मंदिर इतना भव्य था की इसका यश दूरवर्ती इलाकों तक फैला हुआ था । यही भव्यता मुसीबत का कारण भी बनी और इसे अनेकों बार लूटा गया, खंडित किया गया । क्यूंकि इसकी महिमा से पूरे हिंदुस्तान सहित बहार के देश भी प्रभावित थे तो मंदिर का पुनः निर्माण भी अनेकों बार किया गया । ऐसी मान्यता है की यह मंदिर एक ईसा से भी पुरातन है जिसे दुसरी बार सांतवी सदी में वैलवी के मैत्रिक राजाओं ने तैयार करवाया था । आठवी सदी में जुनायद ने इसे ध्वस्त करने के लिए अपनी सेना को भेजा । तीसरी दफा इसे पुनः 815 ईस्वी में राजा नागभट्ट ने तैयार करवाया था । 1024 के आस पास मोहम्मद गजनबी ने इसे नष्ट कर दिया था । फिर चौथी बार गुजरात को राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका निर्माण करवाया था । यहाँ बात समाप्त नहीं हुई और 1297 में दिल्ली सलतनत ने पाँचवी बार इसे गिराया । करीब1706 में ओरंगजेब ने फिर से मंदिर को तबाह कर दिया था । वर्तमान में बने मंदिर का निर्माण लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा करवाया गया था । 11 मई 1951 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री डा राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिंग की स्थापना का शुभ कार्य संपन्न करवाया और 1962 में यह मंदिर पूर्ण रूप से पुनः तैयार हो गया था ।



    सोमनाथ Somnath मंदिर से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी तय करने पर आप द्वारका नगरी में प्रवेश कर जाते हैं जहाँ हजारों श्रद्धालु रोजाना द्वारकादीश के दर्शनार्थ पधारते हैं ।

    सोमनाथ मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य Somnath Temple Information and Facts in Hindi

    कभी यही सोमनाथ मंदिर प्रभासक्षेत्र के नाम से भी प्रसिद्ध रहा है और ऐसा कहा जाता है की यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी देह त्यागी थी

    सोमनाथ मंदिर से ख़राब 200 किलोमीटर की दूरी पर द्वारका नगरी है जहाँ द्वारकादीश के दर्शन करने हजारों लोग जाते हैं ।

    सोमनाथ और द्वारका नगरी पहुँचने के लिए आप नेट से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । सभी का कल्याण हो…

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