सूर्य-पुत्र शनि मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं । मेष राशि मंदगामी शनि देव की नीच व् तुला उच्च राशि है । सिंह लग्न कुंडली में मंदगामी शनि षष्ठेश , सप्तमेश होते हैं । अतः सूर्य देव के अति शत्रु कहे जाने वाले शनि देव इस लग्न कुंडली में एक मारक गृह हैं । इस लग्न कुंडली में शनि रत्न नीलम किसी भी सूरत में धारण नहीं किया जा सकता । ग्रह बलाबल में सुदृढ़ होने पर अधिक शुभ या अधिक अशुभ फल प्रदान करते हैं । इसके विपरीत यदि ग्रह बलाबल में कमजोर हों तो कम शुभ या कम अशुभ फल प्रदान करते हैं । इस प्रकार कारक ग्रह का बलाबल में सुदृढ़ होना और शुभ स्थित होना उत्तम जानना चाहिए और मारक गृह का बलाबल में कमजोर होना उत्तम जानें । कुंडली के उचित विश्लेषण के बाद ही उपाय संबंधी निर्णय लिया जाता है की उक्त ग्रह को रत्न से बलवान करना है , दान से ग्रह का प्रभाव कम करना है , कुछ तत्वों के जल प्रवाह से ग्रह को शांत करना है या की मंत्र साधना से उक्त ग्रह का आशीर्वाद प्राप्त करके रक्षा प्राप्त करनी है । मंत्र साधना सभी के लिए लाभदायक होती है । आज हम सिंह लग्न कुंडली के १२ भावों में शनि देव के शुभाशुभ प्रभाव को जान्ने का प्रयास करेंगे ….
सिंह राशि शनि देव की शत्रु राशि है । अतः शनि की महादशा में जातक चिड़चिड़ा हो जाता है , बहुत मेहनत के बाद भी परिणाम ठीक ठीक आते है , प्रोफेशन में समस्याएं बढ़ जाती है , हर काम देरी से होता है । छोटे भाई बहन से मन मुटाव रहता है । वैवाहिक जीवन सुखद रहता है , साझेदारी के काम से कुछ मुनाफा मिलता है।
ऐसे जातक को धन , परिवार कुटुंब का भरपूर साथ नहीं मिलता है । जातक की वाणी उग्र होती है । माता , मकान, वाहन , भूमि का सुख प्राप्त नहीं हो पाता है । रुकावटें दूर दूर होने का नाम नहीं लेती हैं , बड़े भाई बहनों का साथ नहीं मिलता है। लाभ में कमी आती है
जातक बहुत परिश्रमी होता है । जातक का भाग्य बहुत परिश्रम के बाद ही उसका साथ देता है ।। छोटी बहन का योग बनता है । पेट खराब , कमजोर याददाश्त , क्षीण संकल्प , संतान को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है । पिता से नहीं बनती , फिजूल खर्च व् विदेश यात्रा होती है ।
भूमि , मकान , वाहन के सुख में कमी आती है । काम काज की दशा दयनीय होती है । प्रतियोगिता , नौकरी के लिए शनि देव अच्छा करते हैं । कोर्ट केस , दुर्घटना का भय रहता है । जातक का मन बहुत व्यथित रहता है ।
पुत्री का योग बनता है । अचानक हानि की स्थिति बनती है । जातक की याददाश्त कमजोर होती है । प्रेम विवाह नहीं हो पाता है । पत्नी , पार्टनर्स से संबंध कुछ मधुर रहते हैं । बड़े भाई बहन से नहीं निभती है , बीमार होने का योग बनता है , धन में कमी आती है , कुटुंब जनों का सहयोग भी नहीं मिल पाता है ।
यदि लग्नेश सूर्य बलवान हों और शुभ स्थित भी हों तो विपरीत राजयोग बनता है और अधिकतर परिणाम शुभ ही प्राप्त होते हैं । यदि सूर्य कमजोर हों या शुभ स्थित न हों तो बहुत मेहनत करने पर भी परिणाम नकारात्मक रहते हैं । लोन वापसी का रास्ता नहीं दिखता , फिजूल व्यय , हर काम में रुकावट आती है , कोर्ट केस , हॉस्पिटल में व्यय होता है , बहुत परिश्रम के बाद भी शुभ परिणाम की कमी रहती है । कोर्ट केस में बहुत लम्बा समय लगने के बाद जीत मिलती है ।
भार्या थोड़ी उग्र स्वभाव की हो सकती है लेकिन जातक के लिए शुभ होती है व् साझेदारों से लाभ मिलता है । जातक पितृ भक्त , न्यायप्रिय नहीं होता है , भाग्य साथ नहीं देता है , मकान ,वाहन , सम्पत्ति के सुख में कमी आती है और माता से मन मुटाव बना रहता है । जातक का मन खिन्न रहता है और छाती में कोई विकार आ सकता है , माता का स्वास्थ्य खराब रह सकता है ।
जातक के हर काम में रुकावट आती है , टेंशन बनी रहती है । परिवार साथ नहीं देता है । काम काज ठप हो जाता है । संतान को/से कष्ट मिलता है , अचानक हानि होती है , जातक को भूलने की बीमारी होती है । याददाश्त कमजोर हो जाती है । विपरीत राजयोग की स्थिति में परिणाम शुभ जान्ने चाहियें ।
नीच राशि मेष में आने से ऐसा जातक धर्म को नहीं मानता है , जीवन साथी , पिता से नहीं बनती है , भाग्य जातक का साथ कम ही देता है । जातक बहुत परिश्रमी लेकिन फल में न्यूनता रहती है , विदेश यात्राएं करने वाला होता है , बड़े भाई बहन से नहीं निभती है , प्रतियोगिता में बहुत परिश्रम के बाद जीत होती है।
शनि की महादशा में जातक का काम काज बंद होने के कागार पर आ जाता है । विदेश सेटलमेंट का योग बनता है । भूमि , मकान , वाहन के सुख में कमी रहती है । सातवें भाव सम्बन्धी सभी लाभ प्राप्त होते हैं । व्यय बना रहता है । हर काम में रुकावट जरूर आती है ।
यहां स्थित होने पर बड़े भाई बहनो से क्लेश बना रहता है । पुत्री प्राप्ति का योग बनता है, यादाश्त बहुत कमजोर होती है , संकल्प शक्ति मजबूत नहीं होती है। रुकावटों दूर होने का नाम नहीं लेती हैं । जातक का मन खिन्न रहता है , कभी कभी चिड़चिड़ा हो जाता है ।
विदेश सेटलमेंट का योग बनता है , काम काज ठप हो जाता है , कोर्ट केस चलता है , फिजूल खर्च होते है । परिवार का साथ नहीं मिलता , वाणी बहुत खराब होती है। जातक नास्तिक होता है , पिता से रुष्ट रहता है । यदि लग्नेश सूर्य बलवान हों और शुभ स्थित भी हों तो विपरीत राजयोग बनता है और बारहवें , दुसरे , छठे व् नवें भाव सम्बंधित अधिकतर परिणाम शुभ ही प्राप्त होते हैं ।
शनि देव के लिए उपाय / रत्न ( Shani remedies / stones ) : शनि के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए । मारक गृह का रत्न किसी भी सूरत में धारण नहीं किया जाता है , अतः इस लग्न कुंडली में शनि रत्न नीलम किसी भी सूरत में धारण नहीं किया जा सकता । यदि शनि देव कुंडली के मारक गृह हैं और उनकी दशा महादशा / अन्तर्दशा चल रही है तो किसी जरूतमंद को काले रंग की गर्म स्लेक्स दान करें , या गर्म जुराब या गर्म कम्बल दिया जा सकता है । चींटीओं को काले तिल खिलाएं । ताया जी से सम्बन्ध मधुर रखें , किसी गरीब या फोर्थ क्लास इम्प्लॉई को कभी दुखी न करें हो सके तो किसी तरह से रिलीफ पंहुचने की कोशिश करें । किसी की ज़मीन न हड़पें , वरना खुद भगवान् भी आपको नहीं बचा सकता है , यदि ऐसा किया हो तो समय रहते माफ़ी मांगकर वापिस करें । किसी बुजुर्ग को लाठी भेंट करें , जामुन का पेड़ लगाएं । यदि समस्या अधिक हो तो किसी बीमार को दवाई उपलब्ध करवाएं । अपने आपको चुस्त रखें , किसी का दिल न दुखाएं । शनि वार का व्रत अवश्य रखें । नित्य संध्या वेला में काले आसान पर शनि देव के मंत्र का जाप करें ।