अब तक आप जान ही चुके हैं की सूर्यबुद्ध की किसी शुभ भाव में युति से बुद्धादित्य राजयोग का निर्माण होता है । यह योग बनाने के लिए दोनों ग्रहों का शुभ भावों में होना और बुद्ध का अस्त द्वितीय भाव न होना अनिवार्य है । दोनों ग्रहों में से एक भी गृह अकारक होने पर यह योग बना हुआ नहीं कहा जाता । ध्यान देने योग्य है की गृह नैसर्गिक रूप से कारक या अकारक नहीं होते । शुभ अशुभ ग्रहों का निर्णय भिन्न भिन्न लग्न कुंडलियों के आधार पर किया जाता है । जो गृह एक लग्न कुंडली में कारक हों वही अन्य लग्नकुंडलियों में भी कारक ही हों ऐसा नहीं है । पहले कुंडली का उचित विश्लेषण कर कारक अकारक का भली प्रकार निर्धारण कर लें तभी किसी योग के बारे में निश्चित करें की अमुक योग बना भी है या नहीं । सिंह लग्न की कुंडली में सूर्य लग्नेश हैं और बुद्ध दो शुभ ग्रहों के स्वामी व् लग्नेश सूर्य के मित्र हैं । दोनों ही गृह शुभ फलदायक हैं । दोनों ग्रहों की दशाओं में जातक शुभ फल प्राप्त करता है । यहाँ स्पष्ट है की सिंह लग्न की जन्मपत्री में बुधादित्य योग बनता है ।
सिंह लग्न में सूर्य व् बुद्ध की लग्न में युति बुद्धादित्य योग का निर्माण होता है । दोनों की दशाओं में शुभ फल प्राप्त होते हैं ।
यही युति दुसरे भाव में हो तो दुसरे व् आठवें भाव सा सम्बंधित शुभ फल प्राप्त होते हैं । द्वितीय भाव में बुद्धादित्य योग बनता है ।
तृतीय भाव में लग्नेश सूर्य अपनी नीच राशि में आ जाते हैं । अशुभ फल प्रदान करते हैं । बुद्ध भी बहुत परिश्रम के बाद कुछ ही शुभ फल प्रदान करते हैं । धन लाभ के लिए अथक परिश्रम करना पड़ता है । बुद्धादित्य योग नहीं बनता है ।
सुर्यबद्ध की दशाओं में मकान, वाहन व् भूमि के सुख प्राप्त होते हैं । जातक का माता से बहुत लगाव होता है, राज्य पक्ष से लाभ के योग होते हैं । बुद्धादित्य योग अवश्य बनता है ।
पंचम भाव में भी बुद्धादित्य योग बनता है । सूर्यबुद्ध की दशाओं में अचानक लाभ होने, प्रेम संबंधों में सफलता, बड़े भाई बहन से लाभ के योग बनते हैं । जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है ।
त्रिक भाव में बुद्धादित्य योग नहीं बनता । जातक का स्वास्थ्य खराब रहता है । कोर्ट केस, हॉस्पिटल में धन का व्यय होता है । बड़े भाई बहन व् कुटुंबजनों से परेशानियां आती हैं ।
सप्तम भाव में भी बुद्धादित्य योग अवश्य बनता है । पार्टनर्स से लाभ के चान्सेस बढ़ जाते है । व्यापर से लाभ होता है ।
आठवाँ भाव् त्रिक भाव में से एक भाव होता है, शुभ नहीं माना जाता है । यहाँ भी बुद्धादित्य योग नहीं बनता । सूर्यबुद्ध के भावों सम्बन्धी व् जहाँ ये गृह स्थित हैं तथा सूर्यबुद्ध के दृष्टि सम्बन्ध वाले भावों से सम्बंधित अशुभ फल प्राप्त होते हैं ।
नौवें भाव में बुद्धादित्य योग जरूर बनता है । यात्राओं से धन लाभ होता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में विदेश यात्राओं के योग बनते हैं । जातक का भाग्य उसका भरपूर साथ देता है ।
सिंह लग्न की कुंडली में दसवें भाव में बुद्धादित्य योग अवश्य बनेगा । सूर्य बुद्ध की दशाओं में जातक दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करता है ।
यहाँ बुद्ध के स्थित होने पर धन लाभ का योग अवश्य निर्मित होता है । जातक को धन अवश्य प्राप्त होता है और पुत्री प्राप्ति का योग भी बनता है । पंचम व् एकादश से रिलेटेड सभी लाभ प्राप्त होते हैं । प्रेम संबंधों में भी सफलता के योग बनते हैं ।
त्रिक भावों में से किसी भी भाव में यह योग नहीं बनता । जातक के विदेश में नौकरी के योग तो बनते हैं, साथ ही स्वास्थ्य में परेशानी व् कोर्ट केस सम्बन्धी परेशानियां भी झेलनी पड़ती हैं ।
ध्यान दें की कोई भी योग बनाने वाले ग्रहों का बलाबल अवश्य देख लें । इसके साथ ही राशियां, दृष्टियां भी ग्रहों व् योगों पर अपना प्रभाव रखती हैं । उन सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर ही किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए । बुद्ध के अस्त होने से चान्सेस बहुत अधिक होते हैं । यदि सूर्य ने बुद्ध को अस्त किया हो तो किसी भी सूरत में यह योग बना हुआ नहीं समझना चाहिए ।
आशा है की उपरोक्त विषय आपके लिए ज्ञानवर्धक रहा । आदियोगी का आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो ।( Jyotishhindi.in ) पर विज़िट करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।