रत्न धारण करने से पूर्व इस तथ्य की जांच परम आवश्यक है की जिस गृह से संबंधित रत्न आप धारण करने जा रहे हैं वह गृह जन्मपत्री में किस अवस्था में है । यदि वह गृह मारक हो अथवा अशुभ भावस्थ हो या नीच राशि में जाकर स्थित हो गया हो तो ऐसी स्थिति में कोई भी रत्न धारण नहीं किया जाता । कारक गृह छह, आठ या बारहवें भाव में स्थित होने के साथ अस्त भी हो जाए तो सम्बंधित रत्न धारण किया जा सकता है । रत्न केवल ऐसी अवस्था में धारण किया जाता है जब धारण किये जाने वाले रत्न से सम्बंधित गृह शुभ हो, शुभ स्थित भी हो और उसे ताकतवर बनाने की आवश्यकता हो । यहाँ यह भी आपसे सांझा करना बहुत आवश्यक हो जाता है की विपरीत राजयोग अथवा नीचभंग की स्थिति में भी गृह से सम्बंधित रत्न धारण नहीं किया जाता है ।
शनि गृह से सम्बंधित रत्न है नीलम । यदि शनि गृह जन्मपत्री में एक योगकारक गृह होकर शुभ भाव में स्थित हो और बलाबल में कमजोर हो तो नीलम धारण किया जा सकता है ।
यदि नीलम उपलब्ध न हो तो इसके स्थान पर नीली, नीला टोपाज, लाजवर्त, सोडालाइट,नीलमणि, सेफायर, इंद्र नीलमणि, याकूत,एमेथिस्ट, ब्लैकस्टार,ब्लू टोपाज, कबूद या तंजनाईट आदि में से कोई रत्न धारण किया जा सकता है । इनमे भी तंजनाईट को श्रेष्ठ माना जाता है ।
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सर्वप्रथम अपनी जन्मपत्री का सूक्ष्म विश्लेषण किसी योग्य ज्योतिषी से करवाएं और यदि वह सलाह दे तो ही कोई रत्न धारण करें । जन्मपत्री का विश्लेशण लग्न के आधार पर किया जाता है । विश्लेषण के आधार पर यदि रत्न धारण करना उचित पाया जाए तो ही किसी रत्न को धारण करने की सलाह दी जाती है । जो गृह जातक/जातिका की जन्मपत्री में योगकारक अथवा शुभ हो और शुभ भाव में स्थित हो तो ही सम्बंधित गृह का रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है । जिस गृह से सम्बंधित रत्न धारण किया जाना है वह मारक नहीं होना चाहिए और यदि यह एक योगकारक गृह हो तो कुंडली के छह, आठ अथवा बारहवें भाव में अथवा अपनी नीच राशि में नहीं होना चाहिए । आज हम आपसे सांझा करेंगे की मेष से लेकर मीन लग्न की कुंडली में किन किन भावों में स्थित होने पर शनि रत्न नीलम धारण किया जा सकता है और किन लग्न कुंडलियों में नहीं …
मेष लग्न की जन्मपत्री में शनि दशमेश एकादशेश होकर एक सम गृह बनते हैं और साथ ही लग्नेश के अति शत्रु भी हैं । इस जन्मपत्री में नीलम धारण करवाने के लिए सम्पूर्ण कुंडली विश्लेषण बहुत आवश्यक है । तीन, छह, आठ अथवा बारहवें भाव में शनि देव के स्थित होने पर किसी भी सूरत में धारण नहीं किया जाएगा । दुसरे, सातवें, दसवें अथवा ग्यारहवें भीव में कुछ विशेष परिस्थितियों में धारण किया जा सकता है । क्यूंकि शनि लग्नेश मंगल के अति शत्रु हैं इसलिए एक समय विशेष के लिए इसे धारण किया जाता है और कार्य संपन्न होने के पश्चात् उतार दिया जाता है ।
वृष लग्न की जन्मपत्री में शनि नवनेश दशमेश हैं, एक योगकारक गृह हैं । यदि शनि छह, आठ अथवा बारहवें भाव में न हों और साथ ही अपनी नीच राशि मेष ( बारहवां भाव ) में स्थित न हों तो नीलम रत्न धारण किया जा सकता है ।
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मिथुन लग्न की जन्मपत्री में शनि अष्टमेश नवमेश होते हैं, एक कारक गृह हैं । यदि शनि अपनी नीच राशि में अथवा छह, आठ या बारहवें भाव में स्थित न हों तो नीलम रत्न धारण किया जा सकता है ।
कर्क लग्न की कुंडली में शनि सप्तमेश अष्टमेश होकर एक मारक गृह बने । मारक गृह का रत्न धारण नहीं किया जाता ।
सिंह लग्न की कुंडली में शनि षष्ठेश सप्तमेश होकर एक मारक गृह बनते हैं । मारक गृह का रत्न धारण नहीं किया जाता ।
कन्या लग्न की कुंडली में शनि पंचमेश षष्ठेश होकर एक योगकारक गृह बने । यदि शनि अपनी नीच राशि मीन में न हो अथवा तीन, छह, आठ या बारहवें भाव में स्थित न हों तो नीलम रत्न धारण किया जा सकता है ।
तुला लग्न की कुंडली में शनि चतुर्थेश पंचमेश होकर एक योगकारक गृह बनते हैं । यदि शनि अशुभ स्थित न हो तो नीलम रत्न अवश्य धारण किया जा सकता है ।
वृश्चिक लग्न की कुंडली में शनि तृतीयेश चतुर्थेश होते हैं, एक सम गृह बनते हैं । इस जन्मपत्री में नीलम धारण करवाने के लिए सम्पूर्ण कुंडली विश्लेषण बहुत आवश्यक है । तीन, छह, आठ अथवा बारहवें भाव में शनि देव के स्थित होने पर किसी भी सूरत में नीलम धारण नहीं किया जाएगा । चौथे, सातवें, अथवा ग्यारहवें भीव में कुछ विशेष परिस्थितियों में धारण किया जा सकता है । ऐसी स्थिति में नीलम धारण करने से पूर्व कुंडली विश्लेषण अवश्य करवाएं । क्यूंकि शनि लग्नेश मंगल के अति शत्रु हैं इसलिए एक समय विशेष के लिए इसे धारण कर उतार दिया जाता है ।
धनु लग्न की कुंडली में शनि द्वितीयेश तृतीयेश होते हैं, एक मारक गृह बनते हैं । मारक गृह का रत्न धारण नहीं किया जाता ।
मकर लग्न की कुंडली में शनि लग्नेश द्वितीयेश होकर एक कारक गृह बनते हैं । यदि शनि शुभ स्थित हो जाएँ तो नीलम रत्न अवश्य धारण किया जा सकता है । शनि तीन, छह, आठ अथवा बारहवें भाव में स्थित नहीं होने चाहियें । इन भावों में यदि अस्त अवस्था में हों तो नीलम धारण किया जा सकता है ।
कुम्भ लग्न की कुंडली में शनि लग्नेश द्वादशेश होकर एक योगकारक गृह बनते हैं । यदि छह, आठ अथवा बारहवें भाव या नीच राशि में स्थित न हों तो नीलम धारण किया जा सकता है ।
मीन लग्न की कुंडली में शनि एकादशेश द्वादशेश होकर एक मारक गृह बनते हैं । अब तक आप जान ही चुके हैं की मारक गृह का रत्न धारण नहीं किया जाता ।
नीलम रत्न सोने अथवा पंचधातु की अंगूठी में जड़वाकर मध्यमा ऊँगली में शनिवार की सांझ को धारण किया जाता है । इसके पूर्व अंगूठी में प्राण प्रतिष्ठा का विधान है । इसका शुद्धिकरण करने के लिए इसे दूध या गंगाजल में डुबाकर रख्खा जाता है । इसके बाद ॐ शं शनिश्चराय नम: का १०८ बार जप करने के पश्चात् इसे धारण किया जाता है । धारण करने से पूर्व शनिदेव से आशीर्वाद बनाये रखने की प्रार्थना की जाती है । यहाँ एक बार फिर से आपको याद दिला दें की इस रत्न को धारण करने से पूर्व किसी योग्य विद्वान् से कुंडली का विश्लेषण करवाना न भूलें अन्यथा आपको लाभ होने के बजाये नुक्सान पहुँच सकता है ।
ध्यान देने योग्य है की कौतूहलवश कोई भी रत्न धारण नहीं करना चाहिए । यहाँ ये भी बता दें की कोई भी रत्न लग्न कुंडली का विश्लेषण करने के बाद रेकमेंड किया जाता है न की चंद्र कुंडली के आधार पर । चंद्र कुंडली को आधार बनाकर अथवा राशि पर आधारित रत्न किसी भी सूरत में धारण न करें ।
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