ॐ राहवे नमः। अनिश्चितता के कारक राहु की प्रवृत्ति को समझना मुश्किल ही नहीं करीब करीब नामुनकिन है । इच्छाओं को अभियक्त करने वाले राहु चौंकाने वाले परिणाम देते देखे गए हैं । अमूमन इन्हें एक पापी क्रूर छाया ग्रह की तरह देखा जाता है लेकिन यह तथ्य पूर्णतया सत्य नहीं हैं । कुंडली में उचित प्रकार से स्थित राहु जातक को मात्र भक्त, शत्रुओं का पूर्णतया नाश करने वाला , बलिष्ठ , विवेकी, विद्वान , ईश्वर के प्रति समर्पित, समाज में प्रतिष्ठित व् धनवान बनाता है । वहीँ यदि राहु की स्थिति कुंडली में उचित नहीं है तो वात रोगों जैसे गैस, एसिडिटी, जोड़ों में दर्द और वात रोग से संबंधित बीमारियां देने वाला होता है। राहु की महादशा में जातक के जीवन में इतनी तेजी से और अचानक बदलाव आते हैं जिनका पूर्वानुमान लगाना सम्भव नहीं होता । कुछ भी सुव्यस्थित नहीं होरहा होता ।अतः जातक का मन परेशान रहता है । नींद गहरी नहीं आती है व् सुबह उठने पर तारो ताजा महसूस नहीं होता है । बुरी संगत , बुरे कर्मों के प्रति झुकाव बना रहता है, पैसे की तंगी बनी रहती है, व्यसनों के एडिक्ट होने की संभावना प्रबल रहती है! राहु महादशा से पूर्व यदि जातक की तैयारी ( साधना ) पूर्ण है तो राहु काल में जातक की आध्यात्मिक उन्नति में कुछ भी बाधा नहीं आ सकती और ऐसा जातक राहु महादशा को युटीलाइज़ करने में पूरी तरह सक्षम होता है ।
राशि स्वामित्व : छाया गृह होने से राहु की अपनी कोई राशि नहीं होती है । वृश्चिक व् धनु राशि में राहु को नीच राशिस्थ व् वृष,मिथुन में उच्च का जाने ।
यदि कुंडली में राहु शुभ स्थित हो तो जातक को कुशाग्र बुद्धि प्रदान करता है । ऐसे जातक कुशल , प्रोफेशनल स्नाइपर हो तो कहना ही क्या । ये बिना दुश्मन कीनजर में आये उसे खत्म करने की पूरी योग्यता रखते हैं । छाया गृह होने से फिल्म इंडस्ट्री के लिए भी राहु का बलवान होना बहुत अच्छा माना जाता है । इसकेसाथ साथ राहु जातक को मात्र भक्त , शत्रुओं का पूर्णतया नाश करनेवाला , बलिष्ठ , विवेकी , विद्वान , ईश्वर के प्रति समर्पित , समाज में प्रतिष्ठित , धनवानबनाता है । अचानक लाभ करवाता है व् जुआ , सट्टे व् लाटरी से भी लाभान्वित करवाता है ।
यदि राहु की स्थिति कुंडली में उचित नहीं है तो मति भ्र्म की स्थिति बनती है , वात रोगों जैसे गैस, एसिडिटी, जोड़ों में दर्द और वात रोग से संबंधित बीमारियां होजाती हैं । प्रॉफेशन में दिक्कत परेशानियों का सामना करना पड़ता है । बुरी संगत , बुरे कर्मों के प्रति झुकाव बना रहता है , पैसे की तंगी बनी रहती है , व्यसनों केएडिक्ट होने की संभावना प्रबल रहती है । उचित – अनुचित का भान नहीं रहता है । परिस्थितियों से जूझने की क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ता है ।
लग्नकुंडली में राहु शुभ स्थित हो और बलाबल में कमजोर हो तो राहु रत्न गौमेध धारण करना उचित रहता है । गौमेध के उपरत्न तुरसा , साफी हैं । गौमेध केअभाव में उपरत्नो का उपयोग किया जा सकता है । किसी भी रत्न को धारण करने से पूर्व किसी योग्य ज्योतिषी से कुंडली का उचित निरिक्षण आवश्य करवाएं ।यदि राहु खराब स्थित हो तो शनिवार का व्रत रखें , शनिवार को चींटियों को काले तिल खिलाएं , ऊँ रां राहवे नम: का नित्य 108 बार जाप राहु की सम्पूर्णमहादशा में करें । किसी जरूरतमंद को चाय पत्ती , जूते दान करें। ये उपाय केतु की सम्पूर्ण महादशा में करते रहने से केतु के प्रकोप से आवश्य राहत मिलती है ।