बाबा नीम करौली (Baba Neem Karoli) भारतीय आध्यात्मिक जगत का एक ऐसा सितारा हैं जिसके प्रकाश से आज पूरा विश्व जगमगा रहा है। बाबा को मुख्यतः नीम करौरी या नीम करौली नाम से जाना जाता है। हमेशा एक साधारण सा कम्बल ओढ़े रहने वाले बाबा के भक्तों में टाटा, बिड़ला, पंडित जवाहर लाल नेहरू, फेसबुक तथा एप्पल के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, स्टीव जॉब्स, हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया राबर्ट्स जैसी बड़ी-बड़ी विदेशी हस्तियां शुमार हैं। बाबा के सम्पर्क में रहे लोग कहते हैं की बाबा अक्सर हवा में बात करते थे और ऐसा प्रतीत होता था की वहां कोई अदृश्य शक्ति मौजूद रहती है जिससे बाबा बात करते हैं। बाबा के साथी बुजुर्गों का कहना है की हनुमान जी (Hanuman Ji) का साक्षात् अवतार कहे जाने वाले बाबा मन की बात जान लेते थे। उन्हें लक्ष्मण दास, हांडी वाला बाबा, और तिकोनिया वाला बाबा सहित कई नामों से जाना जाता था। जब उन्होंने गुजरात के ववानिया मोरबी में तप्सया प्रारंभ की तब वहाँ उन्हें लोग तलईया बाबा के नाम से पुकारने लगे। हनुमान जी के भक्त नीम करौरी बाबा ने हनुमान जी के करीब 108 मंदिर बनवाये जिनमे से कुछ अमेरिका के टेक्सास में भी मौजूद हैं।
श्री नीम करौली बाबा की जीवनी – Hanuman Bhakat Neem Karoli Baba
मान्यताओं के अनुसार बाबा का जन्म सन् 1900 के आसपास उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में एक ब्रहाम्ण परिवार में हुआ था और बाबा नीम करौरी के पिता दुर्गा प्रसाद शर्मा ने उनका नाम लक्ष्मी नारायण नाम रखा। महज 11 वर्ष की उम्र में ही बाबा का विवाह करा दिया गया। कुछ समय पश्चात 1958 में बाबा ने अपने घर को त्याग दिया था। गृह-त्याग के बाद बाबा पूरे उत्तर भारत में साधू की भाँति विचरण करने लगे थे। इस समय के दौरान उन्हें लक्ष्मण दास, हांडी वाला बाबा (Handi Wale Baba), और तिकोनिया वाला बाबा सहित कई नामों से जाना जाता था। जब उन्होंने गुजरात के ववानिया मोरबी में तप्सया प्रारंभ की तब वहाँ उन्हें लोग तलईया बाबा के नाम से जानते थे। माना जाता है कि लगभग 17 वर्ष की उम्र में बाबा ज्ञान को उपलब्ध हो गए। बाबा ने 10 सिंतबर, 1973 को वृन्दावन में अपने शरीर को त्याग दिया और अपने भगवान हनुमान जी के सानिध्य में चले गये।
बाबा से जुड़े अनगिनत किस्सों में अगर इस किस्से का जिक्र ना किया जाए तो बात कुछ अधूरी सी लगती है। इस घटना के बाद से ही लोग बाबा को नीब करौरी (Neeb Karori Baba) या नीम करौली के नाम से जानने लगे थे। एक बार बाबा ट्रैन के फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट से सफर कर रहे थे। जब टिकट चेकर ने पाया की बाबा के पास टिकट नहीं है तो कुछ देर बाद नीब करौरी गांव के पास बाबा को ट्रैन से उतार दिया गया। बाबा ट्रैन से थोड़ी दूरी पर ही अपना चिमटा धरती में गाड़ कर बैठ गए। ऑफिशल्स (Officials) द्वारा ट्रैन को चलाने का आर्डर दिया गया, लेकिन ट्रैन एक इंच भर भी अपनी जगह से न हिल पायी। जब बहुत प्रयास करने पर भी ट्रेन नहीं चल पायी तो एक लोकल मजिस्ट्रेट जो बाबा को जानता था ने ऑफिशल्स को बाबा से माफ़ी मांगने और उन्हें सम्मान पूर्वक अंदर लाने को कहा। ट्रैन में सवार अन्य लोगों ने भी मजिस्ट्रेट का समर्थन किया। ऑफिशल्स ने बाबा से माफ़ी मांगी और सभी लोगों ने बाबा को ट्रैन में बैठने का आग्रह किया। बाबा के ट्रेन में बैठने के कुछ ही पलों में इंजन स्टार्ट हो गया और ट्रैन चल पड़ी। भारत देश के अन्य किसी भी साधारण से गांव जैसा ही ये गांव नीब करौरी पूरे विश्व में जाना जाने लगा और बाबा को लोग नीम करौली नाम से जानने लगे।
यूँ तो बाबा जी से जुड़े भक्तों के अनेक सुखद अनुभव हैं परन्तु सभी का जिक्र यहां सम्भव नहीं है। इनमे से एक सुखद अनुभव, एक किस्से का जिक्र बाबा के भक्त रामदास (रिचर्ड एलपर्ट) ने अपनी पुस्तक ‘मिरेकल ऑफ़ लव’ में किया, जिसके बाद बाबा को वर्ष 1960 के दशक में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर लोग जानने लगे। अपनी किताब में रिचर्ड ने ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का जिक्र किया है।
बाबा के कई भक्तों में से एक बुजुर्ग दंपत्ति फतेहगढ़ में रहते थे। एक रात बाबा नीम करौली उनके घर आये और बुजुर्ग दंपत्ति से कहा की आज वे उनके घर पे ही रुकेंगे। बाबा साडी रात कष्ट से कराहते रहे जैसे की उन्हें भारी कष्ट हो रहा हो। सुबह बाबा ने बुजुर्ग दंपत्ति को एक चादर लपेट कर दी और बिना देखे नदी में प्रवाहित करने को कहा। बुजुर्ग दंपत्ति ने वैसा ही किया भी। जाते हुए बाबा ने कहा कि चिंता मत करना महीने भर में आपका बेटा लौट आएगा।
लगभग एक माह के बाद बुजुर्ग दंपत्ति का इकलौता पुत्र बर्मा फ्रंट से लौट आया। वह ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त बर्मा फ्रंट पर तैनात था। उसे देखकर दोनों बुजुर्ग दंपत्ति खुश हो गए और उसने घर आकर कुछ ऐसी कहानी बताई जो किसी को समझ नहीं आई।
उसने बताया कि करीब महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के साथ घिर गया था। रातभर गोलीबारी हुई। उसके सारे साथी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बच गया यह मुझे पता नहीं। उस गोलीबारी में उसे एक भी गोली नहीं लगी। रातभर वह जापानी दुश्मनों के बीच जिन्दा बचा रहा। सुबह तड़के जब ब्रिटिश टुकड़ी आई तो उसकी जान में जा आई। यह वही रात थी जिस रात नीम करोली बाबा जी उस बुजुर्ग दंपत्ति के घर रुके थे।