वैदिक ज्योतिष में कर्म फल दाता शनि देव एक पापी और क्रूर गृह के रूप में प्रितिष्ठित हैं । सूर्य-पुत्र शनि मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं जो मेष राशि में नीच व् तुला में उच्च के माने जाते हैं । मिथुन लग्न कुंडली में मंदगामी शनि अष्टमेश, नवमेश होते हैं । अतः शनि देव इस लग्न कुंडली में एक कारक गृह हैं । किसी योग्य विद्वान से कुंडली का विश्लेषण करवाने के पश्चात इस लग्न कुंडली में ( शनि की महादशा में ) नीलम रत्न धारण किया जा सकता है । यदि शनि 3, 6, 8, 12 भाव में स्थित हों तो नीलम रत्न धारण न करें । ग्रह बलाबल में सुदृढ़ होने पर अधिक शुभ या अधिक अशुभ फल प्रदान करते हैं । इसके विपरीत यदि ग्रह बलाबल में कमजोर हों तो कम शुभ या कम अशुभ फल प्रदान करते हैं । इस प्रकार कारक ग्रह का बलाबल में सुदृढ़ होना और शुभ स्थित होना उत्तम जानना चाहिए और मारक ग्रह का बलाबल में कमजोर होना उत्तम जानें । कुंडली के उचित विश्लेषण के बाद ही उपाय संबंधी निर्णय लिया जाता है की उक्त ग्रह को रत्न से बलवान करना है, दान से ग्रह का प्रभाव कम करना है, कुछ तत्वों के जल प्रवाह से ग्रह को शांत करना है या की मंत्र साधना से उक्त ग्रह का आशीर्वाद प्राप्त करके रक्षा प्राप्त करनी है। मंत्र साधना सभी के लिए लाभदायक होती है । आज हम मिथुन लग्न कुंडली के 12 भावों में शनि देव के शुभाशुभ प्रभाव को जान्ने का प्रयास करेंगे ।
मिथुन राशि शनि देव की मित्र राशि है । अतः शनि की महादशा में भाग्य पूर्ण साथ देता है, प्रोफेशन में उन्नति होती है । छोटे भाई बहन , पत्नी, बिज़नेस पार्टनर से लाभ मिलता है । विवाह के बाद प्रोफेशनल लाइफ और बेहतर होती है ।
ऐसे जातक को धन , परिवार कुटुंब का भरपूर साथ मिलता है । जातक उत्तम वाणी वाला एवं न्यायप्रिय बात करता है । माता , मकान, वाहन , भूमि का सुख प्राप्तकरता है । रुकावटें दूर होती हैं , बड़े भाई बहनों का साथ मिलता है।
जातक बहुत परिश्रमी होता है । जातक का भाग्य बहुत परिश्रम के बाद ही उसका साथ देता है ।। छोटी बहन का योग बनता है । पेट खराब , कमजोर याददाश्त , क्षीण संकल्प , संतान को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है । पिता से नहीं बनती , फिजूल खर्च व् विदेश यात्रा होती है ।
जातक को भूमि , मकान , वाहन का सुख मिलता है । काम काज शनि देव से जुड़ा हो तो बेहतर स्थिति में होता है । प्रतियोगिता में विजयश्री हाथ आती है , कोर्टकेस में जीत होती है ।
पुत्री का योग बनता है । अचानक लाभ की स्थिति बनती है । जातक की याददाश्त बहुत बेहतर होती है । प्रेम विवाह का योग बनता है । पत्नी , पार्टनर्स से संबंधमधुर रहते हैं । बड़े भाइयों बहनो से संबंध मधुर रहते हैं, मनचाहे काम के पूरा होने का योग बनता है । धन , कुटुंब का सहयोग रहता है ।
यदि लग्नेश बुद्ध बलवान हों और शुभ स्थित भी हों तो विपरीत राजयोग बनता है और अधिकतर परिणाम शुभ ही प्राप्त होते हैं । यदि बुद्ध कमजोर हों या शुभ स्थित नहों तो बहुत मेहनत करने पर भी परिणाम नकारात्मक रहते हैं । लोन वापसी का रास्ता नहीं दिखता , फिजूल व्यय , हर काम में रुकावट आती है ।
भार्या बुद्धिमान होती है व् साझेदारों से लाभ मिलता है । जातक पितृ भक्त, न्यायप्रिय होता है , भाग्य साथ देता है , मकान, वाहन, सम्पत्ति का सुख मिलता है औरमाता का आशीर्वाद हमेशा सर पर बना रहता है ।
जातक के हर काम में रुकावट आती है , टेंशन बनी रहती है । परिवार साथ नहीं देता है । काम काज ठप हो जाता है । संतान को/से कष्ट मिलता है । याददाश्त कमजोर हो जाती है । विपरीत राजयोग की स्थिति में परिणाम शुभ जान्ने चाहियें ।
स्वग्रही होने से ऐसा जातक पितृ भक्त , भाग्यवान होता है । जातक बहुत परिश्रमी होता है , प्रतियोगिता में विजयी होता है । विदेश यात्राएं करने वाला होता है ।
जातक का काम काज बहुत अच्छा चलता है । विदेश सेटलमेंट का योग बनता है । भूमि, मकान, वाहन का सुख मिलता है । सातवें भाव सम्बन्धी सभी लाभ प्राप्तहोते हैं ।
नीच राशि मेष में आने से जातक न्याय का साथ देने वाला नहीं होता है । यहां स्थित होने पर बड़े भाई बहनो से क्लेश बना रहता है । पुत्री प्राप्ति का योग बनता है, यादाश्त बहुत कमजोर होती है, संकल्प शक्ति मजबूत नहीं होती है। रुकावटों दूर होने का नाम नहीं लेती हैं ।
विदेश सेटलमेंट का योग बनता है, काम काज ठप हो जाता है , कोर्ट केस चलता है, फिजूल खर्च होते है । परिवार का साथ नहीं मिलता, वाणी बहुत खराब होतीहै। जातक नास्तिक होता है , पिता से रुष्ट रहता है ।
शनि के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए । शनि के 3, 6, 8, 12 भाव में स्थित होने पर नीलम रत्न कदापि धारण न करें ।