मिथुन लग्न की कुंडली में मंगल छठे व् ग्यारहवें भाव के स्वामी होते हैं । षष्ठेश व् एकादशेश होने की वजह से इस लग्न कुंडली में एक अकारक गृह कहे जाते हैं । लग्नेश बुद्ध के अति शत्रु मंगल प्रथम भाव में हों और सातवीं दृष्टि से सप्तम भाव को देखते हों तो मांगलिक दोष की निर्मिति कही जायेगी । क्यूंकि मिथुन लग्न कुंडली में मंगल एम् मारक गृह हैं और अपने अति शत्रु के घर में विराजमान होकर सप्तम भाव को देखते हैं तो कहने में कोई समस्या नहीं है की यहाँ मांगलिक दोष बनता है । फिर भी यदि मंगल बलाबल में बहुत कमजोर हों अथवा सातवें घर के स्वामी अपने ही घर में हों अथवा अपने घर को देखते हों तो मांगलिक दोष नहीं बन पायेगा । मांगलिक दोष के कैंसलेशन पॉइंट्स को ध्यान से देकने परखने के बाद ही मांगलिक दोष का निर्धारण करना उचित व् तर्कसंगत रहता है । इन्हें अनदेखा न करें ।
यही मंगल यदि चतुर्थ भाव में हो यानी फिर से अपनी शत्रु राशि कन्या में आ जाएँ तो एक अकारक गृह होने की वजह से चौथे भाव को तो खराब करते ही हैं, साथ ही जब अपनी चौथी दृष्टि से सातवें भाव को देखते हैं तो उसे भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं और सप्तम भाव सम्बन्धी अशुभ फलों में वृद्धिकारक होते हैं । इस प्रकार यदि मिथुन लग्न की कुंडली में मंगल चौथे भाव में हो तो मांगलिक दोष बनता है । इसके अतिरिक्त मंगल सातवीं दृष्टि से दसवें भाव को देखते हैं और दसवें भाव के शुभ फलों में कमी लाते हैं । ग्यारहवें भाव में मेष राशि आती है जो मंगल की स्वयं की राशि है । आठवीं दृष्टि से ग्यारहवें भाव को देखते हैं और स्वयं का भाव होने की वजह से इस भाव की रक्षा करते हैं और ग्यारहवें भाव सम्बन्धी शुभ फलों में वृद्धिकारक होते हैं ।
इसी लग्न कुंडली में यदि मंगल सातवें भाव में स्थित हो जाए तो मांगलिक दोष की निर्मिती कही जायेगी । इसके अतिरिक्त मंगल चौथी दृष्टि से दसवें भाव को ( मीन राशि ), सातवीं से लग्न भाव को और आठवीं दृष्टि से अपनी शत्रु राशि कर्क को देखते हैं और दसवें, पहले तथा दुसरे भाव सम्बन्धी शुभ फलों में कमी लाते हैं । अपनी महादशा अथवा अन्तर्दशा में इन भावों सम्बन्धी अशुभ फल प्रदान करते हैं ।
मिथुन लग्न की कुंडली में आठवें भाव में मकर राशि आती है । यधपि आठवां भाव त्रिक भाव में से एक होता है कुंडली का एक अशुभ स्थान कहा जाता है, परन्तु मकर राशि मंगल की उच्च राशि होती है जिस वजह से यहाँ मांगलिक दोष नहीं बनेगा । हाँ ऐसा मंगल अपनी महादशा या अन्तर्दशा में ग्यारहवें भाव सम्बन्धी शुभ फलों व् दुसरे व तीसरे भाव सम्बन्धी अशुभ फलों में वृद्धिकारक होता है ।
इसी लग्न कुंडली में यदि मंगल द्वादशस्थ हो जाए तो मांगलिक दोष माना जाता है । बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, कुंडली का शुभ स्थान नहीं माना जाता है । मिथुन लग्न की कुंडली में बारहवें भाव में वृष राशि आती है , जो मंगल की शत्रु राशि होती है । मंगल का अकारक होना और त्रिक भाव में अपनी शत्रु राशि में जाना मंगल की अशुभता में वृद्धि करता है । यहां से मंगल अपनी आठवीं दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है और मांगलिक दोष का निर्माण करता है ।
इस प्रकार हमने जाना की मिथुन लग्न की कुंडली में मंगल पहले, चौथे, सातवें और बारहवें भाव में स्थित होने पर मांगलिक दोष का निर्माण करता है । वहीँ यह मंगल लग्न से आठवें भाव में अपनी उच्च राशि में स्थित हो जाए तो मांगलिक दोष का घोतक नहीं होता है ।
ध्यान दें किसी भी कुंडली के मांगलिक दोष को निर्धारित करते समय मांगलिक दोष के कैंसलेशन पॉइंट्स जरूर देख लें । इनकी जानकारी आपको नेट पर आसानी से उपलब्ध हो जायेगी । मांगलिक दोष के कैंसलेशन पॉइंट्स जानने के लिए आप हमारी वेबसाइट jyotishhindi.in पर भी लॉगिन कर सकते हैं ।
आशा है की आज का विषय आपके लिए ज्ञानवर्धक रहा । आदियोगी का आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो । ज्योतिषहिन्दी.इन ( Jyotishhindi.in ) पर विज़िट करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।