मिथुन लग्न की कुंडली में गुरु सातवें और दसवें भाव के मालिक होकर एक सम गृह बनते हैं । आइये विस्तार से जानते हैं गुरु व् राहु की युति से किन भावों में बनता है गुरुचण्डाल योग बनता है, किस गृह की की जायेगी शांति….
गुरु व् राहु दोनों ही लग्न में स्थित होकर शुभ फलकारी हो जाते हैं । जिन भावों से दृष्टि सम्बन्ध बनाते हैं उनसेसम्बन्धित शुभ फलों में वृद्धिकारक हो जाते हैं । यहाँ स्थित होने पर किसी भी गृह की शांति नहीं करवाई जाती ।
कर्क राशि में गुरु उच्च के हो जाते हैं शुभ फल प्रदान करते हैं । गुरु की दशाओं में जातक बहुत अधिक उन्नति करता है । यहाँ राहु की शांति करवानी होगी ताकि गुरु भी पूर्ण रूप से शुभ फल प्रदान कर सकें ।
यहाँ गुरु को केन्द्राधिपति दोष लगता है और राहु भी सिंह राशि में शुभ फलदायक नहीं होते । इसलिए तीसरे घर में स्थित होने पर दोनों ग्रहों की शांति करवाई जानी चाहिए ।
कन्या राशि में गुरुराहु दोनों ही शुभफल प्रदान करने के लिए बाध्य हैं । इसलिए किसी की शांति नहीं करवाई जायेगी ।
तुला राशि में गुरु व् राहु दोनों की दशाओं में जातक बहुत उन्नति करता है । पुत्र प्राप्ति का योग बनता है । अचानक लाभ होते हैं । यहाँ किसी भी गृह से सम्बंधित उपाय नहीं किया जाता ।
वृश्चिक राशि में राहु नीच की माने जाते हैं और गुरु को इस भाव में केन्द्राधिपति दोष लगता है । दोनों की दशाएं अशुभ फलकारी हैं । दोनों की शांति अनिवार्य है ।
सप्तम भाव में राहु अपनी नीच राशि धनु में आकर अशुभता में बढ़ौतरी करते हैं वहीँ गुरु स्वराशिस्थ होकर हंस नाम का पंचमहापुरुष योग बनाते हैं । गुरु की दशाएं अत्यंत शुभफलदायक होती हैं । राहु की शांति करवाई जानी चाहिए ।
आठवाँ भाव त्रिक भाव में से एक होता है, शुभ नहीं कहा जाता है । गुरु नीच राशि में भी आ जाते हैं और केन्द्राधिपति दोष भी लगता है । आठवाँ भाव वैसे ही भौतिक दृष्टि से शुभ नहीं कहा गया है । राहु भी इस भाव में अशुभता में ही वृद्धिकारक होते हैं । इस वजह से यहाँ स्थित होने पर राहु व् गुरु दोनों की शांति करवाई जाती है ।
नवम भाव में दोनों गृह शुभफलदायक होते हैं । यहाँ किसी भी गृह की शांति नहीं करवाई जाती क्यूंकि दोनों गृह शुभ फल प्रदान करते हैं ।
दशम भाव में गुरु के स्थित होने से हंस नाम का पंचमहापुरुष योग बनता है । गुरु की दशाओं में बहुत शुभ फल प्राप्त होते हैं । राहु की शांति करवाना न भूलें ।
ग्यारहवें भाव में गुरु राहु की युति होने पर राहु की शांति करवाई जाती है क्यूंकि मेष राशि राहु की शत्रु राशि है । इस भाव में गुरु शुभफलदायक होते हैं ।
बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, शुभ नहीं माना जाता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में व्यर्थ का व्यय लगा ही रहता है । कोर्ट केस में धन व्यय होने के योग बनते हैं । इस भाव में आने पर राहु व् गुरु दोनों की शांति अनिवार्य है ।
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