वैदिक ज्योतिष में जब हम काल पुरुष की कुंडली का व्याख्यान करते हैं तो पहले भाव में 1 आता है जो मेष लग्न को दर्शाता है! मेष राशि चक्र की पहली राशि है! काल पुरुष की कुंडली का पहला खाना या प्रथम भाव कहे तो अत्यंत महत्वपूर्ण होता है! यही से हम लग्न की स्थिति के बारे में जानते हैं! लग्न या लग्नाधिपति का किसी व्यक्ति के जीवन पर विशेष प्रभाव रहता है! इसके द्वारा हम किसी भी व्यक्ति की जीवन संबधी महत्वपूर्ण बातों का पता लगा सकते हैं! मेष राशि का चिन्ह मेढ़ा है और इन जातकों के सन्दर्भ में कुछ विशेषताएं इससे भी देखी जा सकती है!
मेष राशि (Mesh rashi) का स्वामी मंगल है, इसलिए इस लग्न के जातक में मुख्यत मंगल के प्रभाव या ऊर्जा को देखा जा सकता है! इन लोगों में साहस की कमी नहीं होती है और स्वतन्त्र रूप से कार्य करने में ये ज्यादा सहज महसूस करते हैं! ये हमेशा आगे बढ़ने के लिए तत्पर रहते हैं और इसलिए कई बार परेशानियों में भी उलझ जाते हैं! इनमे स्वाभिमान, साहस की कोई कमी नहीं होती पर कभी कभी ये अभिमानी भी हो जाते हैं! यदा कदा उग्र, ज़िद्दीपन स्वभाव नजर आता हैं, पर इनमे उदारता और दूसरों की मदद करने की भी लालसा रहती है ! ये मेढ़े की तरह सीधा चलना पसंद करते हैं । चर राशि होने से हमेशा चलायमान रहते हैं । अग्नि तत्त्व व् क्षत्रिय वर्ण होने से इन जातकों में ऊर्जा की अधिकता होती है । अतः इनके कार्यों में जल्दबाजी, बिना विचार किये, कोई योजना बनाये सीधा क्रियान्वयन मेंलग जाना सहज ही देखने को मिल जाता है । इस वजह से इन्हें नुक्सानदायक परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं । इनकी एक बात बहुत ख़ास है की ये अन्य किसी भी राशि की तुलना में बहुत अच्छे मित्र साबित होते हैं । मुसीबत में मित्रों का साथ कभी नहीं छोड़ते वरन मित्रों से पहले ही प्रतिक्रिया भी दे देते हैं । वैसे तो मित्रता चुनाव करके की नहीं जाती है, परन्तु यदि की जाये तो मेष लग्न के जातक को प्राथमिकता दी जा सकती है ।
मेष लग्न के नक्षत्र: Mesh Lagna Nakshatra
मेष राशि अश्विनी नक्षत्र के चार चरण, भरणी नक्षत्र के चार चरण व् कृत्तिका के प्रथम चरण से बनती है! इसका विस्तार 0 से 30 अंश तक होता है!
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक ग्रह (Karak Grah) भी तीन, छह, आठ , बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक ग्रह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह , आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे , आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
मंगल : Mars
मंगल मेष लग्न (Mesh Lagna) में लग्न के साथ अष्टम भाव का भी स्वामी होता है! परन्तु लग्न का स्वामी मुख्यत शुभ फल हो प्रदान करता है! इसलिए मंगल मेष लग्न की कुंडली में कारक ग्रह माना जायेगा !
चंद्र : Moon
चौथे घर का स्वामी है । अतः मेष लग्न में कारक होता है ।
सूर्य: Sun
सूर्य मेष लग्न की कुंडली में पंचमेश का स्वामी होता है और इसी कारण कारक ग्रह माना जाता है !
गुरु : Jupiter
नवें , बारहवें का मालिक होने से इस कुंडली में कारक बनता है ।
शनि : saturn
दसवें , ग्यारहवें का मालिक है व् लग्नेश का अति शत्रु है । अतः मेष लग्न की कुंडली में शनि देव सम ग्रह होते हैं ।
शुक्र : Venus
दुसरे व् सातवें घर का मालिक होने से मारक है ।
बुद्ध : Mercury
तीसरे व् छठे घर का स्वामी है । अतः मारक है।
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व कुंडली का उचित विवेचन अवश्य करवाएं ! आपका दिन शुभ व् मंगलमय हो!