भारतीय पौराणिक मान्यताओं में सूर्य को एक आत्म कारक देव गृह माना गया है । इन्हें ऐसे देव गृह कहा जाता है जो दृश्य हैं , जिसे हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं । सूर्य देव शरीर में आत्मा , हड्डियों , दिल व् आँखों के कारक कहे जाते हैं । मेष लग्न कुंडली में सूर्य पंचम भाव का स्वामी होने से एक कारक गृह बनता है । अतः ऐसीस्थिति में सूर्य जिस भाव में जाएगा और जिस भाव को देखेगा उन भावों से सम्बंधित फलों को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करेगा और उनमे बढ़ोतरी करेगा ।मेष लग्न की कुंडली में अगर सूर्य बलवान ( डिग्री से भी ताकतवर ) होकर शुभ स्थित हो तो शुभ फ़ल अधिक प्राप्त होते हैं । इस लग्न कुंडली में सूर्य डिग्री मेंताकतवर न हों तो इनके शुभ फलों में कमी आती है । यहां बताते चलें की कुंडली के 6, 8, 12 भावों में जाने से योगकारक गृह भी अपना शुभत्व लगभग खो देतेहैं और अशुभ परिणाम देने के लिए बाध्य हो जाते हैं । केवल विपरीत राज योग की स्थिति में ही 6, 8, 12 भावों में स्थित गृह शुभ फल प्रदान करने की स्थिति में आते हैं । इस लग्न कुंडली में सूर्य पंचम भाव का स्वामी है । ऐसे में यहाँ विपरीत राजयोग का निर्माण होता ही नहीं है और सूर्य 6, 8, 12 भाव में स्थित होने पर अशुभ फल प्रदान करते है । अन्य ग्रहों की भांति सूर्य के भी नीच राशिस्थ होने पर अधिकतर फल अशुभ ही प्राप्त होते हैं । कोई भी निर्णय लेने से पूर्व सूर्य का बलाबल देखना न भूलें ।
मेष राशि में सूर्य उच्च होते हैं | यदि लग्न में सूर्य हो तो जातक ऊर्जावान और गर्वीला होता है । कुशल निर्णय लेने में दक्ष , बुद्धिमान और समाज में प्रतिष्ठित होताहै ।
ऐसे जातक को धन , परिवार कुटुंब का भरपूर साथ मिलता है । रोबीली वाणी होती है । अपनी ऊर्जा , प्रभाव , निर्णय क्षमता से सभी मुश्किलों को पार कर लेताहै ।
जातक बहुत परश्रमी होता है । जातक का भाग्य उसका साथ देता है ।। छोटे भाई का योग बनता है |धर्म को विज्ञान की तरह देखता है । पिता से मतभेद रहते हैं ।
चतुर्थ भाव में सूर्य होने से जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का पूर्ण सुख मिलता है । काम काज भी बेहतर स्थिति में होता है । विदेश सेटलमेंट कीसम्भावना बनती है । जातक का माता से लगाव बहुत होता , लेकिन वैचारिक मतभेद बना रहता है ।
पुत्र का योग बनता है । अचानक लाभ की स्थिति बनती है । बड़े भाइयों बहनो से संबंध मधुर रहते हैं । जातक / जातिका रोमांटिक होता / होती है । जातक बहुतबुद्धिमान होता है |
सूर्य की महादशा में संतान को / से कष्ट होने का योग बनता है । कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है ।
सूर्य के नीच राशिस्थ होने की वजह से जातक/ जातीका का वैवाहिक जीवन कष्टमय होता है । पति / पत्नी घमंडी और झगड़ालू प्रवृत्ति के होते हैं । व्यवसाय व्साझेदारों से लाभ मिलता है ।
यहां सूर्य के अष्टम भाव में स्थित होने की वजह से जातक के हर काम में रुकावट आती है । सूर्य की महादशा में टेंशन बनी रहती है । बुद्धि साथ नहीं देती है ।
जातक उत्तम संतान युक्त , आस्तिक व् पितृ भक्त होता है । विदेश यात्रा करता है ।
जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का पूर्ण सुख मिलता है । ऐसा जातक समाज में प्रितिष्ठित होता है । सरकारी नौकरी का योग बनता है। यदि सरकारीनौकर है तो सूर्य की महादशा में पदोन्नति होने की संभावना बनती है । काम काज बहुत अच्छा चलता है ।
यहां स्थित होने पर बड़े भाई बहनो का स्नेह बना रहता है । पुत्र प्राप्ति का योग बनता है । सूर्य की महादशा में अचानक धन लाभ की संभावना बनती है ।
पेट में बीमारी लगने की संभावना रहती है । मन परेशान रहता है । कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है ।