आज हम मेष लग्न की कुंडली में शुक्र के बारे में विस्तार से जान्ने का प्रयास करेंगे । हम जानेंगे की मेष लग्न की कुंडली में 12 भावों में शुक्र कैसे फल प्रदान करतेहैं । मेष लग्न कुंडली में शुक्र द्वितीय और सप्तम भाव का स्वामी होने से एक मारक गृह बनता है । अतः ऐसी स्थिति में शुक्र जिस भाव में जाएगा और जिस भावको देखेगा उन भावों से सम्बंधित फलों को नकारात्मक तरीके से प्रभावित करेगा या उनमे कमी लाएगा । मेष लग्न की कुंडली में अगर शुक्र बलवान ( डिग्री से भी ताकतवर ) होकर स्थित हो तो अशुभ फ़ल अधिक प्राप्त होते हैं । इस लग्न कुंडली में शुक्र डिग्री में ताकतवर न हो तो इसकी अशुभता में कमी आती है ।अतः इसलग्न कुंडली में शुक्र का कमजोर होना शुभ होता है । यहां बताते चलें की कुंडली के 6 , 8 , 12 भावों में जाने से योगकारक गृह भी अपना शुभत्व खो देते हैं औरअशुभ परिणाम देने के लिए बाध्य हो जाते हैं । केवल विपरीत राज योग की कंडीशन में ही 6 , 8, 12 भावों में पड़े गृह शुभ फल प्रदान करने की स्थिति में आते हैं । ( इस लग्न कुंडली में शुक्र के लिए विपरीत राजयोग की स्थिति निर्मित ही नहीं होती है ) । यदि गृह नीच राशिस्थ हो जाये तो अधिकतर अशुभ फल हीप्रदान करेगा ।
जातक रूपवान होगा । सातवीं दृष्टि से अपने घर ( सप्तम भाव ) को देखता है तो पति / पत्नी रूपवान होते हैं । अग्ग्रेसिव्नेस (aggressiveness )में कमी आएगीऔर काम काज में परेशानियां झेलनी पड़ेंगी ।
द्वितीय भाव में शुक्र वृष राशि में होने से धन, परिवार का सुख आवश्य प्रदान करते हैं और वाणी मधुर बनी रहती है । आठवें भाव पर दृष्टि से हर शुभ काम मेंरुकावट आने का योग बनता है । ससुराल पक्ष व् माता तुल्य महिलाओं से कष्ट मिलता है ।
स्त्री गृह होने और छोटे भाई बहन का भाव होने से यहाँ शुक्र छोटी बहन का योग बनाते हैं । पत्नी , साझेदारों से कलह का योग बनता है ।
चतुर्थ भाव में दिशा बल मिलने से सुख समृद्धि के सभी साधनो का लाभ देता है परन्तु माता से मन मुटाव रहता है , और प्रोफेशनल लाइफ में टेंशन बनी रहती है ।
पंचम भाव में शुक्र आने से और मेष लग्न की कुंडली में शुक्र सप्तम के स्वामी भी हैं , यहाँ प्रेम विवाह ( LOVE MARRIAGE ) का योग बनता है । बुद्धि औरवाणी के योग से जातक की वाणी में सूझ -बूझ , समझदारी झलकती है । पुत्री का योग बनता है । बड़े भाई बहनो से मन नहीं मिलता है ।
धन की कमी रहती है । पत्नी बीमार रहती है । व्यय लगातार बना रहता है ।
यहां शुक्र स्वराशिस्थ होने से जातक / जातिका को पति / पत्नी सूंदर मिलते हैं । आय में इजाफा होता रहता है ।
परिवार में धन का अभाव रहने लगता है और दाम्पत्य जीवन भी सुखमय नहीं होता है ।
संबंध मधुर नहीं रहते हैं, जातक धर्म में विशवास न करने वाला या नास्तिक होता है । शादी के बाद जातक का भाग्य उदय होता है ।
मारक गृह होने से काम काज सैटल नहीं होने देता है । डिमोशन की स्थिति भी बनती है । काम काज बदल भी सकता है । शुक्र की महादशा में बदले हुए काम मेंभी घाटा होता है ।
यहां धन का अभाव नहीं रहता है । धन लाभ का योग बनता है , साझेदारों से भी लाभ मिलता है , साथ ही बड़े भाई बहनों से कुछ न कुछ परेशानी बनी रहती है ।
द्वादश भाव में शुक्र दिग्बली होते हैं , मेष लग्न की कुंडली में द्वादश भाव में उच्च राशिस्थ भी होते हैं । विदेश में शादी का योग बनता है और दाम्पत्य जीवन सुखीरहता है , साथ ही छठे भाव से सम्बंधित प्रॉब्लम्स का सामना करते रहना पड़ता है । बीमारियों पे खर्चा होता रहता है ।