भारत देश में प्रचलित पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव शरीर में आत्मा, हड्डियों, दिल व् आँखों के कारक कहे जाते हैं । सूर्य देव मीन लग्न की कुंडली में षष्ठेश होकर एक मारक गृह होते हैं । अतः इस लग्न के जातक को लग्न कुंडली में माणिक रत्न धारण नहीं करना चाहिए । आपको बताते चलें की जन्मपत्री के उचित विश्लेषण के बाद ही उपाय संबंधी निर्णय लिया जाता है की उक्त ग्रह को रत्न से बलवान करना है , दान से ग्रह का प्रभाव कम करना है , कुछ तत्वों के जलप्रवाह से ग्रह को शांत करना है या की मंत्र साधना से उक्त ग्रह का आशीर्वाद प्राप्त करके रक्षा प्राप्त करनी है आदि । मंत्र साधना सभी के लिए लाभदायक होती है ।आज हम मीन लग्न कुंडली में सूर्य के शुभाशुभ फलों के सम्बन्ध में जानने का प्रयास करेंगे :
यदि लग्न में सूर्य हो तो सूर्य की महादशा में जातक बीमार रहता है । ऐसा जातक चिड़चिड़ा , हर काम में जल्दबाजी करने वाला होता है । कानूनी झमेलों में फंसते हैं, हस्पताल में खर्चा होता है , दुर्घटना का भय होता है। साझेदारी के काम से हानि का योग बनता है। वैवाहिक जीवन में समस्या रहती है। दैनिक आमदनी में भीअवनति का योग बनता है । यदि सूर्य बलि न हों तो पहले व् छठे भाव से सम्बंधित फलों की अशुभता में कमी आती है और सातवें भाव से सम्बंधित शुभ फलों में कमीजानें ।
परिवार कुटुंब का साथ नहीं मिलता है । वाणी उग्र होती है । सूर्य की महदशा में रुकावटों पर रुकावटें बनी रहती है , धन में कमी आती है , कोई न कोई टेंशन बनीरहती है । घर का कोई सदस्य बीमार होता है । सूर्य की महादशा में जातक घर से दूर रहता है ।
जातक बहुत परश्रमी होता है । बहुत परिश्रम के बाद जातक का भाग्य उसका साथ देता है ।। छोटे भाई का योग बनता है । धर्म को नहीं मानता है। पिता से मतभेदरहते हैं । छोटे भाई बहन से नहीं बनती है । विदेश यात्रा में रुकावट का योग बनता है , यदि हो जाए तो काम ही लाभदायक होती है । थोड़े फलों के लिए बहुजद्दोजहद करनी पड़ती है ।
चतुर्थ भाव में सूर्य होने से जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का सुख प्राप्त नहीं हो पाता है । काम काज भी अवनति की स्थिति में आ जाता है । विदेशसेटलमेंट की सम्भावना बनती है । छाती में कोई रोग होने की संभावना रहती है । मन अशांत रहता है । सूर्य की महादशा में माता भी बीमार हो सकती है ।
षष्ठेश सूर्य की महदशा में अचानक हानि की स्थिति बनती है । बड़े भाइयों बहनो से संबंध बिगड़ जाते हैं , लाभ में कमी का योग बनता है । स्वास्थ्य खराब रहता है , पुत्र प्राप्ति का योग बनता है । प्रेम संबंधों में असफल होते हैं । बुद्धि एग्रेसिव होती है । संतान को कष्ट हो सकता है । पेट सम्बन्धी बीमारियों से बचाव रखें ।
सप्तमेश के छठे भाव में जाने पर कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । प्रतियोगिता में बहुत मेहनत के बाद भी विजयश्री हाथ नहींआती है । सूर्य की महादशा में कोई न कोई टेंशन बनी रहती है । विदेश यात्रा का योग बनता है । यदि सूर्य बलि हों तो जेल यात्रा हो सकती है । विपरीत राजयोगकी स्थिति में फलों में शुभता जाननी चाहिए ।
जातक/ जातीका का वैवाहिक जीवन प्रोब्लेम्स में रहता है। दैनिक आय के स्त्रोत में अवनति होती है , पति / पत्नी घमंडी और थोड़ा झगड़ालू प्रवृत्ति के होते है ।व्यवसाय व् साझेदारों से भी हानि होती है। जातक चिड़चिड़ा हो जाता है । जल्दबाजी में काम करता है , बेचैन रहता है , अपने आसपास के लोगों को परेशान करताहै । अपना और अपनी भार्या ( पत्नी ) के स्वास्थ्य का ध्यान रखें ।
यहां सूर्य के अष्टम भाव में स्थित होने और नीच राशि में आने की वजह से जातक के हर काम में रुकावट आती है । सूर्य की महादशा /अंतर्दशा में टेंशन बनी रहती है। बुद्धि साथ नहीं देती है । वाणी खराब हो जाती है । धन में कमी आती है । कुटुंब का साथ नहीं मिलता है । जातक की मानसिक परेशानी बहुत अधिक बढ़ जाती है। किसी कानूनी झमेले में फंस सकते हैं ।
जातक आस्तिक, पितृ भक्त नहीं होता है। विदेश यात्रा मेरुकावट आती है । छोटे भाई बहनो का साथ नहीं मिलता है । सूर्य की महादशा में भाग्य जातक का साथनहीं देता है । यात्राओं से लाभ नहीं मिलता है ।
सूर्य की महादशा में जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का सुख प्राप्त नहीं होता है । छाती में कोई रोग हो सकता है । प्रोफेशनल लाइफ बहुत परेशानी भरीहोती है , बहुत कोशिश के बाद विदेश सेटेलमेंट हो सकती है । यदि पहले से नौकरी करते हैं तो डिमोशन हो सकती है । यहां दिशाबलि सूर्य देव भी सकारात्मकभूमिका निभाने में असफल रहते हैं । परिवार से दूरी परेशानी का सबब बनती है ।
मीन लग्न – एकादश भाव में सूर्य – Meen Lagan – Surya ekaadash bhav me :
यहां स्थित होने पर बड़े भाई बहनो से संबंध उत्तम नहीं रहते हैं , धन का अभाव रहता है , पेट में छोटी मोटी बीमारी लगने की संभावना रहती है । संतान को/सेपरेशानी होती है , प्रॉब्लम के बाद पुत्र प्राप्ति का योग बनता है। बुद्धि अग्रेसिव हो जाती है । प्रेम संबंधों में असफलता हाथ आती है । डिप्रेशन की स्थिति बनती है ।जातक को भूलने की बीमारी भी हो सकती है ।
सूर्य की महादशा में मन परेशान रहता है । ऐसा जातक छोटी छोटी बात से घबराता है , कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । सूर्यकी महदशा में व्यर्थ का खर्च बना रहता है । विदेश यात्रा में समस्या आती है या सेटेलमेंट से भी स्थिति में सुधार नहीं होता है । सूर्य की महादशा में कोई ना कोईप्रॉब्लम कड़ी ही रहती है । यदि लग्नेश ( गुरु ) बलि हुए और शुभ स्थित हुए तो विपरीत राजयोग का निर्माण होता है और सूर्य शुभ फल प्रदान करते हैं प्रतियोगिता मेंसफलता मिलती है , विदेश सेटेलमेंट हो सकती है और जातक कोर्ट केस में विजय होता है ।
सूर्य देव की उपासना करें , आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ करें , सूर्य देव को एक सप्ताह में कम से कम तीन दिन जल जरूर चढ़ाएं , पिता और पिता तुल्य बुजुर्गोंका सम्मान करें । ये उपाय सभी के लिए लाभ प्रदायक हैं । कृपया ध्यान दें ….आठवें भाव में सूर्य अपनी नीच राशि तुला में आ जाते हैं और विपरीत राजयोग कानिर्माण नहीं होता है , नीच भांग होने पर फलों में कुछ शुभता देखि जा सकती है। सूर्य के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए । कुंडली काउचित विश्लेषण करवाने के उपरान्त ही किसी उपाय को अपनाएँ ।