लग्न स्वामी शनि, चिन्ह मगरमच्छ, तत्व पृथ्वी, जाति वैश्य, स्वभाव चर, आराध्य बजरंग बलि होते हैं! मकर राशि भचक्र की दसवें स्थान पर आने वाली राशि है! राशि का विस्तार 270 अंश से 300 अंश तक फैला हुआ है । उत्तराषाढ़ा के दुसरे, तीसरे, चौथे चरण , श्रवण के चारों चरण तथा धनिष्ठा के पहले दुसरे चरण के संयोग से मकर लग्न बनता है!
मकर लग्न के जातक का व्यक्तित्व व् विशेषताएँ। Makar Lagn jatak – Capricorn Ascendent
लग्न स्वामी शनि होने से ऐसे जातक खोजी प्रवृत्ति के होते है । कालपुरष कुंडली में दसवसन स्थान मिलने से ऐसे जातकों में अथक परिश्रम की क्षमता पाई जाती है ।
यदि कुंडली में शनि की स्थिति भी अच्छी न हो तो ऐसे जातक स्वार्थी हो जाते हैं । इनके भाग्योदय में समय अपेक्षाकृत अधिक लग जाता है । शनि प्रधान लग्न , पृथ्वी तत्व व् चर राशि होने से ऐसे जातक नीतिज्ञ, विवेकवान व् व्यावहारिक बुद्धि वाले होते हैं । इनमें विशिष्ट संगठन क्षमता होती है। असाधारण सहनशीलता और धैर्य इन्हें बड़ा संगठन खड़ा करने में मदद करते हैं । इनका वैवाहिक जीवन सामान्य ही रहता है । इन तथ्यों के अलावा लग्नेश कुंडली में कहां या किसके साथ स्थित है , लग्न में कौन कौन से गृह हैं, ये काऱक हैं या मारक हैं, लग्न पर काऱक मारक ग्रहों की दृष्टि व् नक्षत्रों का विस्तृत विवेचन करने पर ही जातक के वास्तविक चरित्र के करीब पहुंचा जा सकता है ।
मकर लग्न के नक्षत्र Capricorn Lagna Nakshatra :
मकर राशि भचक्र की दसवें स्थान पर आने वाली राशि है । राशि का विस्तार 270 अंश से 300 अंश तक फैला हुआ है । उत्तराषाढ़ा के दुसरे , तीसरे , चौथे चरण , श्रवण के चारों चरण तथा धनिष्ठा के पहले दुसरे चरण के संयोग से धनु लग्न बनता है ।
लग्न स्वामी : शनि
लग्न चिन्ह : मरगमच्छ
तत्व: पृथ्वी
जाति: वैश्य
स्वभाव : चर
अराध्य/इष्ट : लक्ष्मी, बजरंग बलि
मकर लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह – Ashubh Grah / Karak grah Makar Lagn – Capricorn Ascendant
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक गृह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं ।
शनि :
लग्नेश सदा ही शुभ गृह माना जाता है । अतः कुंडली का काऱक गृह है ।
शुक्र :
पंचमेश , दशमेश है । अतः कुंडली का कारक गृह है ।
बुध :
छठे , नवें भाव का स्वामी होने से यहाँ एक कारक गृह है ।
मंगल :
चौथे और ग्यारहवें का स्वामी होने से इस लग्न में सम गृह बनता है ।
मकर लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह – Ashubh Grah / Marak grah Makar Lagn – Capricorn Ascendant
गुरु :
तीसरे , ग्यारहवें का स्वामी होने से एक मारक गृह बनता है ।
चंद्र :
सप्तमेश होने से मकर लग्न में एक मारक गृह बनता है ।
सूर्य :
अष्टमेश होने से मारक बनता है ।
मकर लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Capricorn Ascendant
लग्नेश-द्वितीयेश शनि, पंचमेश – दशमेश शुक्र व् षष्ठेश -नवमेश बुध मकर लग्न कुंडली काऱक गृह है । अतः इनसे सम्बंधित रत्न नीलम, हीरा व् पन्ना धारण किये जा सकते हैं । इस लग्न कुंडली में मंगल चतुर्थे, एकादशेश होकर व् लग्नेश शनि का अति शत्रु होने से एक सम गृह बनता है । ऐसे में कुछ विशेष परिस्थितियों में मंगल रत्न मूंगा धारण किया जा सकता है , जिसे कार्य विशेष सिद्ध हो जाने पर निकल दिया जाता है । किसी भी कारक या सम गृह के रत्न को धारण किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए ये देखना अति आवश्यक है की गृह विशेष किस भाव में स्थित है । यदि वह गृह विशेष तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है या नीच राशि में पड़ा हो तो ऐसे गृह सम्बन्धी रत्न कदापि धारण नहीं किया जा सकता है । कुछ लग्नो में सम गृह का रत्न कुछ समय विशेष के लिए धारण किया जाता है, फिर कार्य सिद्ध हो जाने पर निकल दिया जाता है । इसके लिए कुंडली का उचित निरिक्षण किया जाता है । उचित निरिक्षण या जानकारी के आभाव में पहने या पहनाये गए रत्न जातक के शरीर में ऐसे विकार पैदा कर सकते हैं जिनका पता लगाना डॉक्टर्स के लिए भी मुश्किल हो जाता है |
ध्यान देने योग्य है की मारक गृह का रत्न किसी भी सूरत में रेकमेंड नहीं किया जाता है, चाहे वो विपरीत राजयोग की स्थिति में ही क्यों न हो ।
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व कुंडली का उचित विवेचन अवश्य करवाएं । आपका दिन शुभ व् मंगलमय हो ।