मकर लग्न की जन्मपत्री में चंद्र सप्तमेश होने के साथ साथ लग्नेश शनि के शत्रु भी हैं, एक अकारक गृह गिने जाते हैं । गुरु तृतीयेश, द्वादशेश होकर अकारक गृह बनते हैं । यदि गुरु विपरीत राजयोग बना लें तो छह, आठ या बारहवें भाव में स्थित होकर शुभफलदायक होते हैं, अन्यथा दोनों गृह अपनी दशाओं में अशुभ फल प्रदान करते हैं । मकर लग्न की जन्मपत्री में किसी भी भाव में गजकेसरी योग नहीं बनेगा ।
प्रथम भाव में अकारक चन्द्र जातक को अत्याधिक कल्पनाशील बनाते हैं, जातक देखने में आकर्षक होता है, अपने ही घर को सातवीं दृष्टि से देखते हैं तो लाइफ व् बिज़नेस पार्टनर्स के साथ इनकी अच्छे निभती है । वहीँ गुरु की दशाओं में पहले, पांचवें, सातवें और नौवें भाव सम्बन्धी अशुभ फलों में इज़ाफ़ा होता है । नीच राशि मी आये गुरु अत्याधिक परिश्रम करवाते हैं, गुरु की दशाओं में व्य्वसाय में भागदौड़ के बाद भी अल्प लाभ होता है । मकर लग्न की कुंडली में प्रथम भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता है ।
चंद्रगुरु की दशाओं में हर काम में रुकावटें आती हैं । धन का आभाव रहता है । नौकरी व्यवसाय में परेशानियां आती रहती हैं ।
यहाँ गुरु चंद्र परिश्रम में वृद्धिकारक हो जाते हैं, दोनों ग्रहों की दशाओं में परिश्रम में वृद्धि होती है । अन्य भावों के साथ दृष्टिसंबन्धों से भी अशुभ फल प्राप्त होते हैं । गजकेसरी योग नहीं बनता ।
चन्द्र्गुरु की दशाओं में माता से अनबन रहती है, जातक को परिवार का साथ प्राप्त नहीं होता, सुख सुविधाओं में कमी आती है । मकान, वाहन से परेशानी आती है । नौकरी व्यापार में भी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं । मकर लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता ।
गुरु व् चंद्र की दशाओं में विल पावर कमजोर होती है, पिता व् बड़े भाई बहन से अनबन रहती है । गुरु या चंद्र में से जिसका बल अधिक हो उस गृह से सम्बंधित संतान के योग प्रबल रहते हैं । मकर लग्न की कुंडली में पंचम भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता है ।
त्रिक भावों में कोई योग नहीं बनता । कोर्ट केस में भी पैसा व्यय होने के चान्सेस बनते हैं । नौकरी/व्यापार में पैशानियाँ बढ़ती हैं । विपरीत राजयोग की स्थिति में गुरु शुभ फलदायक होते हैं । मकर लग्न की कुंडली में छठे भाव में गजकेसरी योग नहीं बनेगा ।
चंद्र की दशाओं में व्यापार से लाभ के योग बनते हैं, स्वास्थ्य खराब रह सकता है । गुरु की दशाओं में लाइफ पार्टनर और बिज़नेस पार्टनर के साथ संबंधों में मधुरता नहीं रहती है । साझेदारी के व्यापार से भी घाटा होता है । गुरु की दशाएं शुभफलदायी नहीं होती हैं । पार्टनर्स से नहीं बनती, स्वयं का मन भी खिन रहता है ।
आठवाँ भाव त्रिक भाव में से एक होता है, शुभ नहीं कहा जाता है । इस भाव में गुरु चंद्र की युति से कोई योग नहीं बनता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में जातक मृत्यु तुल्य कष्ट भोगता है । केवल विपरीत राजयोग की स्थिति में गुरु शुभ फल प्रदान करता है ।
गुरु की दशाओं में पिता से नहीं बनती, परिश्रम का फल बहुत अल्प मात्रा में प्राप्त होता है, यात्राओं से लाभ नहीं होता है, पुत्र प्राप्ति का योग अवश्य बनता है । चंद्र की दशाओं में यात्राएं होती हैं, यात्राओं से लाभ प्राप्त नहीं होता है। पिता से भी अनबन रहती है । मकर लग्न की कुंडली में नौवें भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता है । चंद्र की दशाओं में साझेदारी के काम से कुछ लाभ हो सकता है ।
गुरु चन्द्रमा की दशाओं में काम काज ठप होने के योग बनते हैं, पारिवारिक सुख में कमी आती है, धन का आभाव रहता है, प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होने के लिए जी तोड़ परिश्रम करना पड़ता है । मकर लग्न की कुंडली में दसवें भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता है ।
गुरु की दशाओं में पुत्र का योग अवश्य बनता है, साथ ही अचानक हानिव् अस्वस्थ होने के योग बनते हैं, जातक को परिश्रम का उचित फल प्राप्त नहीं होता है । वहीँ नीच के चंद्र की दशाओं में अचानक हानि होती है, पुत्री का योग बनता है, साझेदारी के व्यापार से भी घाटा होता है ।। गजकेसरी योग नहीं बनता ।
बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, शुभ नहीं माना जाता है । बारहवें भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता । दोनों ग्रहों की दशाओं में व्यर्थ का व्यय लगा ही रहता है । कोर्ट केस में धन व्यय होने के योग बनते हैं । गुरु यदि विपरीत राजयोग बना लें तो शुभ फलदाय हो जाते हैं ।
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