आज की हमारी चर्चा धनिष्ठा नक्षत्र पर केंद्रित है । यह आकाशमण्डल में मौजूद तेइसवां नक्षत्र है जो २९३.२० डिग्री से लेकर ३०६.४० डिग्री तक गति करता है । इस नक्षत्र को अविहा, वसु भी कहा जाता है । धनिष्ठा नक्षत्र के स्वामी मंगल, नक्षत्र देवता वसु और राशि स्वामी शनि हैं । यदि आपके … Continue reading
मीन लग्न की जन्मपत्री में गुरु लग्नेश, दशमेश होकर एक योगकारक गृह बनते हैं वहीँ चंद्र त्रिकोण के स्वामी हैं, पंचमेश हैं । एक योगकारक गृह हैं, शुभ फलप्रदायक हैं । दोनों ग्रहों की किसी शुभ भाव में युति से गजकेसरी योग अवश्य बनता है । ध्यान देने योग्य है की चंद्र गुरु में से … Continue reading
आज की हमारी चर्चा श्रवण नक्षत्र पर केंद्रित है । यह आकाशमण्डल में मौजूद बाइसवां नक्षत्र है जो २८० डिग्री से लेकर २९३.२० डिग्री तक गति करता है । इस नक्षत्र को विष्णु, श्रुति भी कहा जाता है । श्रवण नक्षत्र के स्वामी चंद्र, नक्षत्र देवता विष्णु और राशि स्वामी शनि हैं । यदि आपके … Continue reading
कुम्भ लग्न की जन्मपत्री में चंद्र षष्ठेश ( रोगेश ) होने के साथ साथ लग्नेश शनि के शत्रु भी हैं, एक अकारक गृह गिने जाएंगे । साथ ही गुरु द्वितीयेश, एकादशेश हैं, दो शुभ स्थानों के स्वामी होने की वजह से एक योगकारक गृह बनेंगे । जहाँ गुरु अपनी दशाओं में शुभ फल प्रदान करते … Continue reading
मकर लग्न की जन्मपत्री में चंद्र सप्तमेश होने के साथ साथ लग्नेश शनि के शत्रु भी हैं, एक अकारक गृह गिने जाते हैं । गुरु तृतीयेश, द्वादशेश होकर अकारक गृह बनते हैं । यदि गुरु विपरीत राजयोग बना लें तो छह, आठ या बारहवें भाव में स्थित होकर शुभफलदायक होते हैं, अन्यथा दोनों गृह अपनी … Continue reading
आज की हमारी चर्चा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र पर केंद्रित है । यह आकाशमण्डल में मौजूद इक्कीसवाँ नक्षत्र है जो २६६.४० डिग्री से लेकर २८० डिग्री तक गति करता है । इस नक्षत्र को विश्वम भी कहा जाता है । उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के स्वामी सूर्य, नक्षत्र देवता विश्वदेव और राशि स्वामी गुरु तथा शनि हैं । यदि … Continue reading
आज की हमारी चर्चा पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र पर केंद्रित है । यह आकाशमण्डल में मौजूद बीसवां नक्षत्र है जो २५३.२० डिग्री से लेकर २६६.४० डिग्री तक गति करता है । इस नक्षत्र को जलम या तोयम भी कहा जाता है । पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के स्वामी शुक्र, नक्षत्र देवता जल और राशि स्वामी गुरु हैं । यदि … Continue reading
गुरु व् चंद्र के योगकारक होकर शुभ भाव में स्थित होने से बनता है गजकेसरी योग । गजकेसरी योग की निर्मिति के लिए चंद्र और गुरु दोनों का योगकारक होना, और किसी शुभ भाव में युति बनाकर स्थित होना आवश्यक होता है । दोनों ही ग्रहों में जितना बल होता है उसी के अनुरूप यह … Continue reading
आज की हमारी चर्चा मूल नक्षत्र पर केंद्रित है । यह आकाशमण्डल में मौजूद उन्नीसवां नक्षत्र है जो २४० डिग्री से लेकर २५३.२० डिग्री तक गति करता है । इस नक्षत्र को असुर भी कहा जाता है । मूल नक्षत्र के स्वामी केतु, नक्षत्र देवी निरित्ती (निवृत्ती देवी) और राशि स्वामी गुरु हैं । यदि … Continue reading
गजकेसरी योग का निर्माण गुरुचंद्र के योगकारक होकर किसी शुभ भाव में स्थित होने पर होता है । आसान भाषा में गजकेसरी योग की निर्मिति के लिए चंद्र और गुरु दोनों का योगकारक होना, और किसी शुभ भाव में युति बनाकर स्थित होना आवश्यक होता है । दोनों ही ग्रहों में जितना बल होता है … Continue reading