योगों की क्रमबद्ध श्रृंखला को जारी रखते हुए अब हम बुद्धादित्य योग पर चर्चा आरम्भ करने जा रहे हैं । यह योग बुद्ध और आदित्य ( सूर्य ) के संयोग से बनता है । जिस जातक की जन्मपत्री में यह योग होता है वह बुद्ध या सूर्य या दोनों की महादशा में अवश्य उन्नति करता … Continue reading
वृश्चिक लग्न की जन्मपत्री में किसी भी भाव में बुधादित्य योग नहीं बनता है । इसका मुख्य कारण बुद्ध गृह का अकारक होना होना है । बुद्ध लग्नेश मंगल के अति शत्रु हैं और साथ ही अष्टमेश, एकादशेश भी हैं । अपनी दशाओं में अशुभ फल प्रदान करने के लिए बाध्य है । हाँ यदि … Continue reading
आज की हमारी चर्चा पुष्य नक्षत्र पर केंद्रित होगी । यह आकाशमण्डल में मौजूद आठवाँ नक्षत्र है जो ९३.२० डिग्री से लेकर १०६.४० डिग्री तक गति करता है । पुष्य नक्षत्र को तिष्य और अमरेज्य नाम से भी जाना जाता है । पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनि देव, नक्षत्र देव अदिति देवी और राशि स्वामी … Continue reading
आज की हमारी चर्चा आर्द्रा नक्षत्र पर केंद्रित होगी । यह आकाशमण्डल में मौजूद छठवां नक्षत्र है जो ६६.४० डिग्री से लेकर ८० डिग्री तक गति करता है । आर्द्रा नक्षत्र के स्वामी राहु, नक्षत्र देव शिव (रौद्र रूप ) और राशि स्वामी बुद्ध देव हैं । यदि आपके कोई सवाल हैं अथवा आप हमें … Continue reading
अभी तक हमने अश्विनी,भरनी, कृतिका और रोहिणी नक्षत्र के बारे में जाना । आज की हमारी चर्चा मृगशिरा नक्षत्र पर केंद्रित होगी । यदि आपके कोई सवाल हैं अथवा आप हमें कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आप हमारी वेबसाइट ( jyotishhindi.in ) पर विज़िट कर सकते हैं । आपके प्रश्नों के यथासंभव समाधान के … Continue reading
ज्योतिष कुंडली में प्रेम विवाह योग – Love Marriage Yoga in Kundali कहा जाता है की जिस हृदय में प्रेम नहीं वो पाषाण है । खुदा की नेमत है प्रेम । यदि आपको प्रेम ही नहीं हुआ तो आपने व्यर्थ ही जीवन गवां दिया । पत्थर में भी फूल खिलाने की क्षमता रखता है प्रेम … Continue reading
ज्योतिष में दिशा – Know about Favourable Direction in Jyotish किसी भी जातक की सफलता उसके ग्रहों की दशा और दिशा दोनों पर निर्भर करती है । साधारण तौर पर ग्रहों का कारकत्व मारकत्व, गृह का बल, नवमांश में गृह की स्थिति, चलित, देश, काल, परिस्थिति आदि तथ्यों को ध्यान में रखकर फलादेश कर दिया … Continue reading
मीन लग्न की कुंडली में चंद्र पंचम भाव के स्वामी हैं, लग्नेश गुरु के अति मित्र हैं । इस वजह से चंद्र इस कुंडली में एक योगकारक गृह जाने जाते हैं । वहीँ मंगल द्वितीयेश व् नवमेश होकर एक सम गृह गिने जाते हैं । इस लग्न कुंडली में चन्द्रमंगल दोनों ग्रहों की शुभ भावों … Continue reading
गोचर क्या है What is gochar गोचर दो शब्दों की संधि है । गो + चर । गो से अर्थ लिया जाता है तारा । इसे हम नक्षत्र या गृह भी कहते हैं । इसी प्रकार चर से अभिप्राय है चलायमान । अतः ग्रहों की निरंतर गतिशीलता को गोचर कहा जाता है । ज्योतिषीय दृष्टि … Continue reading
कुम्भ लग्न की कुंडली में चंद्र छठे भाव के स्वामी हैं, लग्नेश शनि के अति शत्रु हैं । इस वजह से चंद्र इस कुंडली में एक मारक गृह माने जाते हैं । वहीँ मंगल तृतीयेश व् दशमेश होकर एक सम गृह गिने जाते हैं । इस लग्न कुंडली में चन्द्रमंगल दोनों ग्रहों की किसी भाव … Continue reading