यूंतो जन्मपत्री में अनेक प्रकार के योग बनते हैं जो अपने अपने स्वभाव अनुरूप जातक को सकारात्मक अथवा नकारात्मक परिणाम प्रदान करते हैं, परन्तु इनमे भी कुछ योग बहुत ही महत्वपूर्ण कहे गए हैं । यह योग जातक को मान प्रतिष्ठा तो प्रदान करते ही हैं साथ ही उसे सामाजिक भी बनाते हैं । ऐसा जातक जीवन के सभी आयामों में अपनी भूमिका सफलता पूर्वक अदा करता है । आज हम ऐसे ही योग की चर्चा आपसे करने जा रहे हैं जिसके बनाने पर ऊर्जावान व्यक्तित्व का निर्माण होता है ।
यह योग पांच ग्रहों मंगल, बुद्ध, शुक्र, शनि व् वृहस्पति में से किसी भी एक गृह के केंद्र में स्वराशि अथवा उच्चराशिस्थ हो जाने पर निर्मित होता है । मंगल से रूचक नाम का पंचमहापुरुष योग बनता है । बुद्ध से भद्र नाम का पंचमहापुरुष योग बनता है । ऐसे ही गुरु हंस नाम का पंचमहापुरुष योग बनाता है व् शुक्र मालव्य पंचमहापुरुष योग का निर्माण करता है । इसी प्रकार शनि से शश नामक पंचमहापुरुष योग की निर्मिति कही जाती है ।
जब मंगल कुंडली का एक कारक गृह होकर कुंडली के केंद्र भावो में से किसी एक भाव में स्वराशि का या उच्च राशि का होकर स्थित हो जाए तो रूचक नामक पंचमहापुरुष योग का निर्माण होता है । ध्यान रखें की रूचक योग बनाने के लिए मंगल का एक, चार, सात अथवा दसवें भाव में से किसी एक में होना बहुत आवश्यक होता है । और केंद्र में भी मंगल स्वराशिस्थ अथवा उच्चराशिस्थ होने चाहियें ।
यदि बुद्ध कुंडली के एक शुभ ग्रह हों और स्वराशि अथवा उच्च राशि के होकर केंद्र भावों में से किसी एक में स्थित हुए हों तो भद्र नामक पंचमहापुरुष योग की निर्मिति कही जाती है । अर्थात बुद्ध के एक, चार, सात अथवा दसवें भाव में स्थित होने पर भद्र योग का निर्माण होता है । केन्द्रस्थ होने के साथ साथ बुद्ध का स्वराशिस्थ अथवा उच्चराशिस्थ होना भी बहुत आवश्यक है, केवल तभी यह योग बना हुआ कहा जायेगा ।
जब गुरु जन्मपत्री के एक शुभ गृह हों और स्वराशि के अथवा उच्च राशि के होकर केंद्र भावों में से किसी एक में विराजमान हों तो हंस योग बनता है । गुरु का कारक होना, स्वराशिस्थ अथवा उच्चराशिस्थ होना और साथ ही केंद्र में स्थित होना बहुत आवश्यक है, अन्यथा हंस योग नहीं बनेगा ।
जब शुक्र जन्मपत्री के एक शुभ गृह हों और स्वराशि के अथवा उच्च राशि के होकर केंद्र भावों में से किसी एक में विराजमान हों तो मालव्य योग की निर्मिति कही जाती है । मालव्य योग नामक पंचमहापुरुष योग की निर्मिति के लिए शुक्र का कारक होना, स्वराशिस्थ अथवा उच्चराशिस्थ होना और साथ ही केंद्र में स्थित होना बहुत आवश्यक है, अन्यथा यह योग बना हुआ नहीं कहा जाएगा ।
जब शनि कुंडली के एक शुभ ग्रह हों और स्वराशि अथवा उच्च राशि के होकर केंद्र भावों में से किसी एक में स्थित हुए हों तो शश नामक पंचमहापुरुष योग की निर्मिति कही जाती है । अर्थात शनि के एक, चार, सात अथवा दसवें भाव में स्थित होने पर शश योग का निर्माण होता है । केन्द्रस्थ होने के साथ साथ शनि का स्वराशिस्थ अथवा उच्चराशिस्थ होना भी बहुत आवश्यक है, केवल तभी यह योग बना हुआ कहा जायेगा ।
आशा है की आज का विषय आपके लिए ज्ञानवर्धक रहा । आदियोगी का आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो । ( Jyotishhindi.in ) पर विज़िट करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।