गोचर दो शब्दों की संधि है । गो + चर । गो से अर्थ लिया जाता है तारा । इसे हम नक्षत्र या गृह भी कहते हैं । इसी प्रकार चर से अभिप्राय है चलायमान । अतः ग्रहों की निरंतर गतिशीलता को गोचर कहा जाता है । ज्योतिषीय दृष्टि से हम देखते हैं की सभी ग्रहों की अपनी अपनी गति है । यानी सभी गृह एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने में अलग अलग समय लेते हैं । चन्द्रमा की गति सबसे अधिक तेज होती है इसलिए यह एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करने में सबसे कम समय लेता है । फिर सूर्य,शुक्र व् बुद्ध करीब एक महीने में राशि परिवर्तन करते हैं । मंगल करीब डेढ़ महीने में और गुरु तेरह महीने में राशि परिवर्तन करता है । राहु और केतु इसी काम को डेढ़ वर्ष में पूरा करते हैं । वहीँ मंद गति होने के कारण शनि इसी काम को करने में ढाई वर्ष लगाते हैं ।
गोचर एप्लीकेशन की बहुत सी विधियां हैं । हमारा केंद्र इस बात पर होगा की गोचर को कैसे आप देखें की हम बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकें । इसलिए सर्वप्रथम हम देखेंगे की कौन सा गृह गोचर में कहाँ है । जैसे यदि कर्क लग्न और सिंह राशि की कुंडली है और गोचर में चंद्र कन्या राशि में है तो हम कहेंगे की चंद्र लग्न से तीसरे व् सिंह राशि से दुसरे भाव में है । इसी प्रकार आगे बढ़ते हुए हमें महादशा स्वामी, अन्तर्दशा स्वामी, गुरु व् शनि की गोचरस्थ स्थिति को देखने के बाद ही फलादेश की और जाना चाहिए । कहने का अर्थ है की इन चार फैक्टर्स को ध्यान में रख कर ही फलकथन की और बढ़ना चाहिए । काल पुरुष कुंडली में नवम भाव में धनु राशि आती है जिसके स्वामी गुरु हैं । बिना भाग्य के साथ के साथ के किसी भी घटना के शुभ अशुभ परिणाम पूर्णतया प्राप्त नहीं होते इसलिए गुरु का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है । इसी प्रक्रार कालपुरुष कुंडली में शनि को कर्मेश व् लाभेश की की पदवी प्राप्त है तो अनुमान लगाया जा सकता है की शनि की स्थिति देखना कितना आवश्यक हो जाता है । ध्यान देने योग्य है की बिना महादशा अन्तर्दशा देखे सीधे गोचर अप्लाई करने पर कभी भी उचित परिणाम प्राप्त नहीं किये जा सकते हैं । इसलिए सर्वप्रथम ग्रहों की दशा अन्तर्दशा देखें तत्पश्चात इन ग्रहों की गोचरस्थ स्थिति देखें और इसी प्रकार आगे बढ़ें ।
यह पूर्णतया सत्य है की लग्नकुंडली में आपके गृह जैसे हैं वैसा ही फल वो गोचर के अनुसार देते हैं । सर्वप्रथम आपको अपनी या जातक की कुंडली के शुभ अशुभ ग्रहों का ज्ञान होना बहुत आवश्यक हो जाता है । इसके बाद आप इन ग्रहों की उचित अनुचित गोचरस्थ स्थिति को देखें
तत्पश्चात किसी निर्णय पर पहुंचें । यदि गृह लग्न कुंडली में शुभ है तो गोचर में वह कहीं भी जाए आपको शुभ फल ही प्राप्त होंगे । इस प्रकार सर्वप्रथम लग्नेश फिर दशा अन्तर्दशा लार्ड, इसके बाद गुरु व् शनि की स्थिति भली प्रकार देखें । तत्पश्चात लग्न कुंडली के शुभ अशुभ ग्रहों को ध्यान में रखकर लग्न कुंडली पर ही गोचर अप्लाई करें । आप निश्चित ही सफल होंगे । अंत में सभी आप सभी का मंगल हो ऐसी मनोकामना के साथ आज का विषय समाप्त करता हूँ ।