लग्न स्वामी शनि , चिन्ह घड़ा , तत्व वायु , जाति शूद्र , स्वभाव स्थिर , आराध्य माँ दुर्गा होते हैं । कुम्भ राशि भचक्र की ग्यारहवें स्थान पर आने वाली राशि है । राशि का विस्तार 300 अंश से 330 अंश तक फैला हुआ है । धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरणों, शतभिषा के चरों चरण व् पूर्वा भाद्रपद के तीन चरणों से कुम्भ लग्न बनता है ।
कुम्भ लग्न के जातक का व्यक्तित्व व् विशेषताएँ। Kumbh Lagn jatak – Aquarius Ascendent
कुम्भ लग्न के जातक राशि स्वामी शनि होने से धर्मपरायण , दूसरों की सहायता सहायता करने में आनंद पाने वाले होते हैं । वायु तत्व से स्वतंत्र विचारक होते हैं व् स्थिर स्वाभाव आपके विचारों में मौलिकता दर्शाता है । चिन्ह कुम्भ दर्शाता है की आपके भीतर की स्थिति क्या है ये कोई भांप नहीं पाता । कभी कभी तो कुम्भ राशि के जातक की बातें साथ में रहने वाले लोगों को असंभव सी जान पड़ती हैं , जो बाद में सही साबित होती हैं । इन जातकों में पूर्वभास की क्षमता गजब की होती है । किसी भी वक्तव्य के दूरगामी परिणाम को पहले ही भांप लेते हैं । इनका नजरिया दुसरे लोगों को कम ही भाता है । इनका नजरिया समझना सबके बस की बात नहीं है । इसलिए बहुत से विरोधी अनायास ही खड़े हो जाते हैं । इन तथ्यों के अलावा लग्नेश कुंडली में कहां या किसके साथ स्थित है , लग्न में कौन कौन से गृह हैं , ये काऱक हैं या मारक हैं , लग्न पर काऱक मारक ग्रहों की दृष्टि व् नक्षत्रों का विस्तृत विवेचन करने पर ही जातक के वास्तविक चरित्र के करीब पहुंचा जा सकता है ।
कुम्भ लग्न के नक्षत्र Aquarius Lagna nakshtras :
कुम्भ राशि भचक्र की ग्यारहवें स्थान पर आने वाली राशि है । राशि का विस्तार 300 अंश से 330 अंश तक फैला हुआ है । धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरणों, शतभिषा के चरों चरण व् पूर्वा भाद्रपद के तीन चरणों से कुम्भ लग्न बनता है ।
लग्न स्वामी : शनि
लग्न चिन्ह : घड़ा
तत्व: वायु
जाति: शूद्र
स्वभाव : स्थिर
अराध्य/इष्ट : माँ दुर्गा
कुम्भ लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह – Ashubh Grah / Karak grah Kumbh Lagn – Aquarius Ascendant
शनि Saturn :
लग्नेश होने से कुम्भ लग्न में एक कारक गृह बनता है ।
गुरु Jupiter :
दुसरे व् ग्यारहवें का स्वामी होता है । अतः यहां एक कारक गृह है ।
शुक्र Venus :
चौथे व् नवें भाव का स्वामी होने से कुम्भ लग्न में अति योग कारक गृह है ।
बुद्ध Mercury :
पांचवें , आठवें भाव का स्वामी होने से अति योग कारक गृह होता है ।
मंगल Mars :
तीसरे व् दसवें का स्वामी है । कुम्भ लग्न में एक सम गृह होता है ।
कुम्भ लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह – Ashubh Grah / Marak grah Kumbh Lagn – Aquarius Ascendant
चंद्र Moon :
छठे भाव का स्वामी होने से कुम्भ लग्न में एक मारक गृह बनता है ।
सूर्य Sun :
सातवें भाव का स्वामी होने से यहां एक मारक गृह बनता है ।
कुम्भ लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Aquarius Ascendant
लग्नेश शनि, चौथे व् नवें भाव का स्वामी शुक्र व् पंचमेश बुद्ध कुंडली के कारक गृह हैं ! अतः इनसे सम्बंधित रत्न नीलम, हीरा रत्न पन्ना रत्न धारण किया जा सकता है! इस लग्न कुंडली में मंगल तीसरे व् दसवें का स्वामी होकर एक सम गृह बनता है! कुछ विशेष परिस्थियों में मूंगा भी धारण किया जा सकता है । ध्यान देने योग्य है की किसी भी कारक या सम गृह के रत्न को धारण किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए ये देखना अति आवश्यक है की गृह विशेष किस भाव में स्थित है ! यदि वह गृह विशेष तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है या नीच राशि में पड़ा हो तो ऐसे गृह सम्बन्धी रत्न कदापि धारण नहीं किया जा सकता है । कुछ लग्नो में सम गृह का रत्न कुछ समय विशेष के लिए धारण किया जाता है, फिर कार्य सिद्ध हो जाने पर निकल दिया जाता है! इसके लिए कुंडली का उचित निरिक्षण किया जाता है! उचित निरिक्षण या जानकारी के आभाव में पहने या पहनाये गए रत्न जातक के शरीर में ऐसे विकार पैदा कर सकते हैं जिनका पता लगाना डॉक्टर्स के लिए भी मुश्किल हो जाता है |
विचारणीय है की मारक गृह का रत्न किसी भी सूरत में रेकमेंड नहीं किया जाता है , चाहे वो विपरीत राजयोग की स्थिति में ही क्यों न हो ।
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व कुंडली का उचित विवेचन अवश्य करवाएं । आपका दिन शुभ व् मंगलमय हो ।