सभी ज्योतिष प्रेमियों का jyotishhindi.in पर हार्दिक अभिनन्दन । यदि आप ज्योतिष विषय को सच में पसंद करते हैं तो निश्चित ही अपने सुना होगा की ज्योतिष ईश्वर की ज्योति है । इस ज्योति के प्रकाश में हम अपने पिछले, वर्तमान और आने वाले जन्म के विषय में जान सकते हैं । हम आपसे कहना चाहते हैं की आपने बिलकुल सही सुना है । हमारा ऐसा कोई दावा यहीं है की हम ही सही हैं । जो भी तथ्य हम आपके समक्ष आर्टिकल्स के माध्यम से रखते हैं, आप अपने अनुभव के आधार पर इन्हें परखिये, यदि आप इन्हें सही पाते हैं तो आपकी जानकारी में वृद्धि होगी और यदि सही नहीं पाते हैं तो भी आपका सही की तरफ बढ़ना निश्चित है । आइये जानने का प्रयास करते हैं की किस प्रकार जन्मपत्री के नौ गृह विभिन्न भावों में विराजमान होकर जातक के पिछले, वर्तमान और अगले जन्म की संभावनाएं दर्शाते हैं ….
यदि किसी जातक की जन्मपत्री में पांच या पांच से अधिक गृह उच्च राशिस्थ अथवा स्वराशिस्थ हों और साथ ही नवमांश में भी शुभ स्थित हों तो ऐसे जातक का पूर्व जन्म बहुत सुख से व्यतीत हुआ माना जाता है । इसके विपरीत यदि जातक/जातिका के अधिकतर गृह बलहीन हों तो जातक/जातिका का पूर्व जन्म बहुत कष्टों भरा रहा होगा । ऐसे जातक को पूर्व जन्म में गहन पीड़ाओं से गुजरना पड़ा है ।
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यदि जन्मपत्री में सूर्य त्रिक भावों ( ६,८,१२ ) में से किसी भाव में स्थित हों तो ऐसे जातक का पूर्व जन्म पाप कर्मो में संलिप्त रहा है । ऐसे जातक ने अपने पद का दुरूपयोग किया है और भ्र्ष्टाचार युक्त जीवन जीया है ।
इसी प्रकार लग्न में स्थित पूर्ण बलि चंद्र दर्शाता है की जातक ने पूर्व जन्म में खूब सुख भोगे हैं और विवेकपूर्ण जीवन जिया है ।
लग्न, छठे अथवा दसवें भाव में स्थित मंगल दर्शाता है की जातक पूर्व जन्म में क्रोधी स्वभाव का रहा है और इसने अपने क्रूर कर्मों से दूसरों को कष्ट पहुँचाया है ।
लग्नस्थ अथवा सप्तमस्थ राहु राहु दर्शाता है की जातक की जाएक की असमय अथवा असामान्य मृत्यु हुई है ।
लग्नस्थ, सप्तमस्थ अथवा नवमस्थ गुरु दर्शाता है की जातक ने शुद्ध सात्विक जीवन जिया है । यदि गुरु प्रथम, सप्तम नवम पर दृष्टि भी डालते हों तो भी ऐसा जानना चाहिए की ऐसा जातक धर्म परायण जीवन जीकर आया है ।
यदि लग्न, चौथे, सातवें अथवा ग्यारहवें भाव में शनि हों तो जातक पूर्व जन्म नीच कर्मों में लिप्त कहा जाता है । ऐसे स्थित शनि के बारे में यह धारणा भी है की ऐसा जातक किसी कुलीन परिवार में नहीं रहा है ।
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लग्नस्थ बुद्ध दर्शाता है की जातक पूर्व जन्म में वाणिज्य से जुड़ा रहा है और उसका जीवन क्लेशों में बीता है ।
लग्नस्थ अथवा नवमस्थ केतु दर्शाता है की जातक/जातिका का पूर्व जन्म झगड़ों, विवादों, मानसिक पीड़ाओं, क्लेशों में व्यतीत हुआ है और इन पीड़ाओं से बचने के लिए जातक ने कहीं न कहीं तंत्र साधनाओं, मंत्र साधनाओं अथवा अघोर साधनाओं का सहारा लिया है ।
लग्न अथवा सातवें भाव में स्थित शुक्र दर्शाता है की जातक ने पूर्व जन्म में ऐश्वर्ययुक्त विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत किया है ।
यदि पूर्णबली सूर्यबुद्ध जमनपत्री के ग्यारहवें भाव में स्थि हों तो जातक जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है ।
यदि पूर्णबली सूर्यबुद्ध जमनपत्री के ग्यारहवें भाव में स्थित हों तो जातक जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है ।
इसी प्रकार यदि बलि चद्र्मा ग्यारहवें भाव में स्थित हों और किसी पापी या क्रूर गृह से न तो युति बनाये हो, न ही दृष्ट हो तो भी जातक की सद्गति कही जाती है ।
मंगल अष्टमस्थ हो अथवा आठवें भाव को देखता हो और किसी प्रकार शनि से भी सम्बन्ध हो जाए तो अगला जन्म कष्टों में व्यतीत होने की सम्भावना बनती है ।
अष्टमस्थ राहु दर्शाता है की जातक का अगला जन्म सुखमय होने वाला है ।
उच्च के पूर्ण बलि गुरु दर्शाते हैं की जातक का अगला जन्म कुलीन परिवार में होगा । ऐसा जातक अगले जन्म में पूर्ण सुख भोगता है, ऐसा कहा जाता है ।
लग्न अथवा नवम भाव में पूर्ण बलि चन्द्र्गुरु युति बना लें और पूर्णबली शनि सप्तम में स्थित हो ( किसी प्रकार से दूषित न हो ) तो ऐसा जातक पूर्ण सुख भोगता हुआ जीवन के अंत में सद्गति को प्राप्त होता है । यहाँ शनि का निर्दोष होना आवश्यक है । ऐसे जातक का अगला जन्म भी बहुत अच्छा माना जाता है ।
उच्च अथवा स्वराशिस्थ शनि अष्टमस्थ हों और पाप ग्रहों के प्रभाव में न हों तो उत्तम होता है । ऐसे जातक की सद्गति होती है ।
अष्टम भाव में गुरु से दृष्ट शुक्र स्थित हों तो ऐसा जातक भी सद्गति को प्राप्त होता है ।
गुरु शनि की युति जन्मपत्री के बारहवें भाव में हो तो जातक सद्गति को प्राप्त होता है । गुरु अन्य किसी पापी या क्रूर गृह से प्रभावित नहीं होना चाहिए ।
यदि अष्टम भाव में गुरु, चंद्र व् शुक्र हों और ये गृह पाप प्रभाव से मुक्त हों तो जातक सद्गति को प्राप्त होता है । ऐसे जातक का अगला जन्म भी बहुत सुखद होता है ।