किसी भी जातक की सफलता उसके ग्रहों की दशा और दिशा दोनों पर निर्भर करती है । साधारण तौर पर ग्रहों का कारकत्व मारकत्व, गृह का बल, नवमांश में गृह की स्थिति, चलित, देश, काल, परिस्थिति आदि तथ्यों को ध्यान में रखकर फलादेश कर दिया जाता है जो बहुत हद तक सही भी रहता है । जैसे फलां जातक का ब्याह कब होगा, जातक को नौकरी करनी चाहिए या व्यापार आदि । ऐसे में यदि आप ये भी बता पाएं की शादी किस दिशा में तय होगी, या नौकरी के लिए कौन सी दिशा में प्रयास करना चाहिए, या व्यापार करें तो कौन सी दिशा श्रेष्ठ होगी तो जातक को बहुत सहायता मिलती है, साथ ही फलादेश और सूक्ष्म हो जाता है । ऐसे ही महत्वपूर्ण सवालों के जवाब लेकर हमारा आज का आर्टिकल आपके समक्ष प्रस्तुत है । विषय है …ज्योतिष से कैसे जानें जातक के लिए कौन सी दिशा अनुकूल है ।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक दिशा का अपना अधिपति गृह है । अब यदि आप यह जानना चाहते हैं की कौन सी दिशा जातक के लिए अनुकूल है तो सर्वप्रथम आपको यह जानना होगा की जन्मकुंडली में दिशाओं के अधिपति ग्रहों की क्या स्थिति है ? कौन कौन से गृह कुंडली के कारक गृह हैं ? कारक ग्रहों के बलाबल का भली प्रकार अध्ययन करना होगा और उनकी कुंडली में शुभाशुभ स्थिति पर विचार करना होगा । जब कुंडली का विस्तृत विश्लेषण करने के पश्चात् आप निश्चित हो जाएँ की कौन कौन से गृह सबसे अधिक शुभ व् बलवान गृह हैं तो जान जाइये की आप दिशा निर्धारण से कुछ ही दूरी पर हैं । कुंडली का जो गृह सबसे अधिक शुभ व् बलवान होगा उस गृह से सम्बंधित दिशा जातक के लिए सबसे बेहतरीन रहेगी । साथ ही दिशा की अनुकूलता व प्रतिकूलता जानने के लिए भावेश की स्थिति और भाव में स्थित राशि का भी भली प्रकार अध्ययन किया जाएगा । जैसे यदि कोई जानना चाहता है शादी के लिए कौन सी दिशा अनुकूल रहेगी तो इसके लिए सप्तम भाव का विचार किया जाएगा । सप्तमेश व् सप्तम भाव में स्थित ग्रहों में से जो गृह सबसे अधिक शुभ व् बलवान होगा उस गृह से सम्बंधित दिशा में जातक का विवाह शुभ रहेगा । इसी प्रकार यदि व्यापार की दिशा जाननी है तो दशम भाव में स्थित गृह व् दशमेश में जो गृह सबसे अधिक शुभ व् बलवान है उस गृह की दिशा जातक के लिए सर्वाधिक शुभ रहेगी ।
भारतीय ज्योतिष में सभी ग्रहों को अलग अलग दिशाओं का अधिपत्य प्राप्त है । जैसे सूर्य पूर्व दिशा के अधिपति हैं । वायव्य दिशा का अधिपत्य चंद्र देव को प्राप्त है । इसी प्रकार मंगल दक्षिण व् बुद्ध उत्तर दिशा के स्वामी कहे गए हैं । गुरु ईशान तो शुक्र आग्नेय दिशा का आधिपत्य रखते हैं । वहीँ शनि देव पश्चिम, नैऋत्य के स्वामी कहे गए हैं । राहु व् केतु को शनि व् मंगल के सामान कहा गया है सो शनि व् मंगल से सम्बंधित दिशाएँ इनकी दिशाएँ मानी जाती हैं ।
ग्रहों की भाँती राशियों को भी दिशाओं का स्वामित्व प्राप्त है । यह इस प्रकार है :
आशा है आज का विषय आपके ज्ञान में वृद्धिकारक होगा । आदिनाथ का स्नेहशीर्वाद आप सभी को प्राप्त हो ।