वैदिक ज्योतिष में केतु को एक छाया गृह के रूप में जाना जाता है । इन्हें दुसरे और आठवें भाव का कारकत्व प्राप्त होता है । केतु महादशा सात वर्ष की होती है । आज हम jyotishhindi.in के माध्यम से आपसे सांझा करने जा रहे हैं की मोक्ष के कारक कहे जाने वाले केतु की महादशा में हमें किस प्रकार के फल प्राप्त होने संभावित हैं । इसके साथ ही हम यह भी आपको ऐसे उपायों के बारे में भी बताएँगे जो केतु के नकारात्मक परिणामों को कम करने में सहायक हैं । आइये जानते हैं केतु की महादशा में प्राप्त होने वाले शुभ अशुभ फलों के बारे में …
केतु की महादशा सात वर्ष की होती है । यदि लग्न कुंडली में केतु लग्नेश के मित्र हों, अपनी उच्च अथवा मित्र राशि में शुभ भावस्थ हों और जिस भाव मे केतु स्थित हों उसका स्वामी भी शुभ स्थित हो तो जातक/जातिका को निम्लिखित फल प्राप्त होने संभावित हैं …
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यदि लग्न कुंडली में केतु अशुभ राशि में स्थित हों, अथवा जिस राशि में स्थित हों उसका स्वामी अशुभ भावस्थ हो जाए, पाप कर्त्री से प्रभावित हो जाए अथवा केतु अपनी नीच राशि वृष या मिथुन में हो तो जातक/जातिका को निम्लिखित फल प्राप्त होने संभावित होते हैं … मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त होते हैं । मानसिक कष्ट होता है । जातक को रोगी बनाता है । अपमानित करवाता है । धन की हानि होती है । पत्नी को कष्ट होता है । संतान को पीड़ा होती है । बिज़नेस में हानि व् नौकरी में डिमोशन करवाता है । राजदंड हो सकता है । माता पिता को कष्ट होता है । माता पिता से वियोग हो सकता है । एक्सीडेंट हो सकता है । ऑपरेशन की सम्भावना बनती है । ऋण बढ़ जाता है । कोर्ट केस हो सकता है । प्रमेह अथवा जननांग सम्बन्धी बीमारी लग जाती है । आँखों से सम्बंधित समस्या हो सकती है । हड्डियों में दर्द होता है । पेशाब की बीमारी, जोड़ों का दर्द, संतान उत्पति में रुकावट और गृहकलह करवाता है । जातक चुभने वाली बातें करने लगता है, अपने दुश्मन स्वयं ही बना लेता है । पैर, कान, रीढ़, घुटने, लिंग, किडनी और जोड़ के रोग पैदा हो सकते हैं ।
काले तिल, तेल, शस्त्र, बकरा, नारियल, उड़द की दाल और केतु रत्न लहसुनिया का दान करें ।
कुत्ते को घी से चुपड़ी रोटी खिलाएं ।
बुजुर्गों का आशीर्वाद प्राप्त करें ।
गणेश जी की पूजा आराधना करें ।
मंगलवार का व्रत रखें ।
ज़रूरतमंद की सहायता करें, भूखे को रोटी खिलाएं ।
संतान का भली प्रकार ध्यान रखें । सुख दुःख में उनके साथ रहें ।
कान छिदवाएँ ।
” ॐ केँ केतवे नमः ” का 108 बार नियमित जाप करें ।
ॐ नमः शिवाय का नियमित जाप लाभदायक होता है ।
ध्यान देने योग्य है की किसी भी गृह की से सम्बंधित पूजा, पाठ, व्रत, प्रार्थना की जा सकती है भले ही वह गृह लग्नेश का मित्र हो अथवा नहीं । स्टोन केवल लग्नेश के मित्र शुभ स्थानस्थ गृह अथवा कुछ विशेष परिस्थितियों में शुभ स्थानस्थ सम गृह का ही धारण किया जाता है । दान लग्नेश के शत्रु अकारक गृह से सम्बंधित वस्तुओं का किया जाता है और यदि अकारक गृह बहुत प्रभावशाली हो तो उसे शांत करने के लिए गृह से सम्बंधित वस्तुओं का जल प्रवाह किया जाता है ।
यहाँ हमने ( Jyotishhindi.in ) केवल केतु की महादशा में प्राप्त होने वाले फलों की संभावना व्यक्त की है । किसी भी उपाय को अपनाने अथवा कोई स्टोन धारण करने से पूर्व किसी योग्य विद्वान से कुंडली विश्लेषण करवाना परम आवश्यक है ।
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