वैदिक ज्योतिष के अनुसार आध्यात्मिकता के कारक केतु देवता एक छाया गृह हैं और स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह के रूप में जाने जाते हैं । शरीर में अग्नितत्व है केतु । शक्ति ऐसी की साधारण से मनुष्य को भी देव तुल्य बना दें । इन्हें अनिश्चितता देने वाला गृह भी कहा जाता है क्योंकि ये लाभ हानि दोनों प्रदान करते हैं । ऐसी भी मान्यता है की कभी ,कभी मनुष्य को आध्यात्मिक मार्ग पर ले जाने के उद्देश्य से केतु जान बूझकर भी भौतिक अवनति के कारण बनते हैं । वृश्चिक, धनु राशि में केतु को उच्च व् वृष व् मिथुन राशि में केतु को नीच का माना जाता है । यदि जन्म कुंडली में केतु सहायक गृह है किन्तु कमजोर हो तो ऐसी स्थिति में लहसुनिया धारण करना उचित माना गया है । इसके लिए किसी ज्योतिष विद्वान से कुंडली का विश्लेषण करवाएं , इसके बाद यदि लहसुनिया रेकमेंड किया जाए तो आवश्य धारण करें ।
राशि स्वामित्व : छाया गृह होने से केतु की अपनी कोई राशि नहीं होती है । वृश्चिक व् धनु राशि में केतु को उच्च राशिस्थ व् वृष , मिथुन में नीच का जाने ।
शुभ होने पर भौतिक व् आध्यात्मिक दोनों प्रकार की उन्नति में केतु देवता अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं । मेहनती बनाते हैं व् लक्ष्य प्राप्ति में सहायक पराक्रम व् अनुशासन प्रदान करते हैं । गूढ़ रहस्यों को जान्ने की योग्यता प्रदान करते हैं । ऐसा जातक समाज में उच्च पदासीन , एक प्रतिष्ठित , साफ़ सुथरी छवि का स्वामी , निडर प्रवृत्ति का , बुद्धिमान व् शत्रु विजयी होता है । ऐसे जातक पर ब्लैक मजिक का भी असर नहीं हो पाता है ।
केतु अशुभ होने पर जातक जल्दी घबराने वाला होता है । ब्लैक मजिक का आसानी से शिकार हो जाता है । सुस्त , काहिल हर काम को देर से करने वाला , समाज में नकारा जाने वाला , बात बात में चिढ़ने वाला , साधारण फैसले लेने में भी घबराने वाला होता है । पैरो में कोई समस्या पैदा होने की संभावना बानी रहती है ।
लग्नकुंडली में केतु शुभ स्थित हो और बलाबल में कमजोर हो तो केतु रत्न लहसुनिया धारण करना उचित रहता है । इसे वैदूर्य मणि, सूत्र मणि, केतु रत्न, कैट्स आई, विडालाक्ष के नाम से भी जाना जाता है। लहसुनिया के उपरत्न कैट्स आई क्वार्ट्ज़ व् एलेग्जण्ड्राइट हैं। लहसुनिया के अभाव में उपरत्नो का उपयोग किया जा सकता है । किसी भी रत्न को धारण करने से पूर्व किसी योग्य ज्योतिषी से कुंडली का उचित निरिक्षण आवश्य करवाएं । यदि केतु खराब स्थित हो तो मंगलवार का व्रत रखें , मंगलवार को चींटियों को तिल खिलाएं , ऊं कें केतवे नम: का नित्य 108 बार जाप करें । कान छिदवाएँ । घी से चुपड़ी रोटी कुत्ते को खिलाएं । ये उपाय केतु की सम्पूर्ण महादशा में करते रहने से केतु के प्रकोप से आवश्य राहत मिलती है ।