कर्क लग्न कुंडली में देव गुरु वृहस्पति षष्ठेश (छठे भाव के स्वामी ) , नवमेश ( नवें भाव के स्वामी ) होते हैं । अतः एक कारक गृह हैं । ध्यान दें की कारक ग्रह का बलाबल में सुदृढ़ होना और शुभ स्थित होना उत्तम जानना चाहिए और मारक गृह का बलाबल में कमजोर होना उत्तम जानें । कुंडली के उचित विश्लेषण के बाद ही उपाय संबंधी निर्णय लिया जाता है की उक्त ग्रह को रत्न से बलवान करना है , दान से ग्रह का प्रभाव कम करना है, कुछ तत्वों के जल प्रवाह से ग्रह को शांत करना है या की मंत्र साधना से उक्त ग्रह का आशीर्वाद प्राप्त करके रक्षा प्राप्त करनी है । मंत्र साधना सभी के लिए लाभदायक होती है । जानने का प्रयास करते हैं की वृहस्पति देव कर्क लग्न कुंडली को किस प्रकार प्रभावित कर सकते हैं :
कर्क राशि देव गुरु की उच्च राशि है साथ ही लग्न में स्थित होने पर गुरु को दिशा बल मिलता है । यदि लग्न में गुरु हो तो जातक ज्ञानवान , आस्थावान और पितृभक्त होता है । गुरु की महादशा , अंतर्दशा में पुत्र प्राप्ति का योग बनता है , स्वास्थ्य अच्छा रहता है , संकल्पशक्ति मजबूत होती है , दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है, साझेदारी के काम में लाभ मिलता है , विदेश यात्राएं होती हैं और प्रेम विवाह का योग बनता है । उच्च राशिस्थ होने से शुभ फलों में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है ।
ऐसे जातक को धन , परिवार कुटुंब का भरपूर साथ मिलता है । मधुर वाणी होती है । अपनी ऊर्जा , प्रभाव , वाणी , निर्णय क्षमता से सभी मुश्किलों को पार करलेता है । प्रतियोगिता , कोर्ट केस में जीत होती है । रुकावटें दूर होती हैं और प्रोफेशनल लाइफ में उन्नति होती है ।
जातक बहुत परश्रमी होता है । जातक का भाग्य खूब मेहनत के बाद ही उसका साथ देता है ।। छोटे भाई का योग बनता है । धार्मिक प्रवृत्ति का होता है । दाम्पत्यजीवन में रूखापन आता है , साझेदारी के काम में परेशानियां आती हैं। जातक पितृ भक्त , विदेश यात्राएं करने वाला होता है । बड़े भाई बहनो का सहयोग व् लाभबहुत मेहनत के बाद ही मिलता है। जातक को बहुत परिश्रम करने पर कुछ परिणाम प्राप्त होते हैं ।
चतुर्थ भाव में गुरु होने से जातक को भूमि, मकान, वाहन व् माता का पूर्ण सुख मिलता है । काम काज भी बेहतर स्थिति में होता है । विदेश यात्रा/सेटलमेंट कीसम्भावना बनती है । रुकावटें दूर होती हैं , प्रोफेशनल लाइफ में उन्नति होती है ।
पुत्र प्राप्ति का योग बनता है, स्वास्थ्य उत्तम रहता है, संकल्प शक्ति मजबूत होती है । अचानक लाभ की स्थिति बनती है । जातक बहुत बुद्धिमान होता है, धार्मिकप्रवृत्ति का, पितृभक्त होता है । बड़े भाइयों बहनो से संबंध मधुर रहते हैं ।
यहां विपरीत राजयोग की स्थिति में गुरु शुभ परिणाम प्रदान करते हैं अन्यथा शुभ फलों में कमी आ जाती है । कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना काभय बना रहता है । प्रोफेशनल लाइफ खराब होती जाती है । परिवार का साथ नहीं मिलता है । धन हानि होती है ।
दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं होता है , साझे दारी के काम में हानि का योग बनता है । बड़े भाई बहन से संबंध बिगड़ जाते है । जातक को बहुत मेहनत के बाद कुछ शुभपरिणाम प्राप्त होते हैं , छोटे भाई बहन से संबंध खराब ही जाते हैं ।
यहां विपरीत राजयोग की स्थिति में गुरु शुभ परिणाम प्रदान करते हैं अन्यथा शुभ फलों में कमी आ जाती है । यहां गुरु के अष्टम भाव में स्थित होने की वजह सेजातक के हर काम में रुकावट आती है । गुरु की महादशा में टेंशन बनी रहती है । बुद्धि साथ नहीं देती है । फिजूल खर्चा होता है , परिवार का साथ नहीं मिलता है ।सुख सुविधाओं का अभाव रहता है । विदेश सेटेलमेंट हो सकती है ।
जातक बुद्धिमान, धार्मिक, पितृ भक्त व् परिश्रमी होता है । विदेश यात्रा होती है , छोटे भाई बहन से प्रेम भाव रखने वाला होता है । पुत्र प्राप्ति का योग बनता है ।
जातक को भूमि, मकान, वाहन का पूर्ण सुख मिलता है । माता से बहुत लगाव रखने वाला होता है । काम काज बेहतर स्थिति में आ जाता है । परिवार साथ देताहै, धन का अभाव नहीं रहता है । कोर्ट केस में जीत होती है ।
यहां स्थित होने पर बड़े भाई बहनो का स्नेह बना रहता है लाभ मिलता है। छोटे भाई बहनों से लाभ, पुत्र प्राप्ति का योग बनता है । गुरु की महादशा में अचानक धनलाभ की संभावना बनती है । पत्नी साझेदारों से भी लाभ मिलता है ।
पेट में बीमारी लगने की संभावना रहती है । मन परेशान रहता है । कोर्ट केस, हॉस्पिटल में खर्चा होता है । कम्पटीशन, कोर्ट केस में असफलता हाथ लगती है, भूमि, मकान , वाहन का सुख नहीं मिलता है । माता के सुख में कमी आती है । सभी कार्यों में रूकावट आती है और टेंशन-डिप्रेशन बना रहता है । यहां विपरीत राजयोगकी स्थिति में गुरु शुभ परिणाम प्रदान करते हैं अन्यथा शुभ फलों में कमी समझनी चाहिए ।
गुरु के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए । गुरु के 3, 6, 8, 12 भाव में स्थित होने पर पुखराज धारण न करें ।