कर्क लग्न की कुंडली में मंगल पांचवें व् दसवें भाव के स्वामी होते हैं । कुंडली के दो शुभ भावों के स्वामी होने की वजह से इस लग्न कुंडली में मंगल एक कारक गृह कहे जाते हैं । कर्क राशि मंगल देवता की नीच राशि कही जाती है अर्थात कर्क राशि में मंगल नीच के हो जाते हैं और अपनी शुभता खो देते हैं । अब यदि मंगल प्रथम भाव में हों और सातवीं दृष्टि से सप्तम भाव को देखते हों तो मांगलिक दोष की निर्मिति कही जायेगी । यहाँ स्थित मंगल सातवें भाव और सातवें भाव के कारकत्व को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं । मांगलिक दोष के कैंसलेशन पॉइंट्स को ध्यान से देखने परखने के बाद ही मांगलिक दोष का निर्धारण करना उचित व् तर्कसंगत रहता है । इन्हें अनदेखा न करें ।
यही मंगल यदि चतुर्थ भाव में आ जाएँ तो एक शुभ गृह होने की वजह से चौथे भाव सम्बन्धी शुभ फल तो प्रदान करते ही हैं, साथ ही जब अपनी चौथी दृष्टि से सातवें भाव को देखते हैं तो उसे भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं और सप्तम भाव सम्बन्धी शुभ फलों में वृद्धिकारक होते हैं । इस प्रकार यदि कर्क लग्न की कुंडली में मंगल चौथे भाव में हो तो मांगलिक दोष नहीं बनता है । इसके अतिरिक्त मंगल सातवीं दृष्टि से दसवें भाव ( मेष राशि ) को देखते हैं और दसवें भाव के शुभ फलों में वृद्धिकारक हो जाते हैं । आठवीं दृष्टि से ग्यारहवें भाव को देखते हैं और ग्यारहवें भाव सम्बन्धी शुभ फलों में भी बढ़ौतरी करते हैं ।
इसी लग्न कुंडली में यदि मंगल सातवें भाव में अपनी उच्च राशि मकर में स्थित हो जाएँ तो मंगल देव की शुभता में और अधिक वृद्धि हो जाती है । केंद्र व् त्रिकोण के मालिक होने और अपनी उच्च राशि में स्थित होने पर मंगल सातवें भाव सम्बन्धी शुभ फलों में वृद्धिकारक हो जाते हैं । इसलिए यहाँ मांगलिक दोष की निर्मिती नहीं होगी वरन मंगल सातवें भाव की रक्षा स्वयं करेंगे और इस भाव सम्बन्धी शुभ फल ही प्रदान करेंगे । इसके अतिरिक्त मंगल चौथी दृष्टि से दसवें भाव को , सातवीं से लग्न भाव को और आठवीं दृष्टि से अपनी शत्रु राशि कर्क को देखते हैं और दसवें, पहले तथा दुसरे भाव सम्बन्धी शुभ फलों में बढ़ौतरी करते हैं । अपनी महादशा अथवा अन्तर्दशा में इन भावों सम्बन्धी शुभ फल ही प्रदान करते हैं ।
कर्क लग्न की कुंडली में आठवें भाव में मंगल के स्थित होने पर मांगलिक दोष बनता है । मंगल भौतिक शरीर का कारक होता है और आठवां भाव त्रिक भाव में से एक होता है कुंडली का एक अशुभ स्थान कहा जाता है जिस वजह से यहाँ मांगलिक दोष बनेगा । ऐसा मंगल अपनी महादशा या अन्तर्दशा में ग्यारहवें, दुसरे व तीसरे भाव सम्बन्धी अशुभ फल प्रदान करता है ।
इसी लग्न कुंडली में यदि मंगल द्वादशस्थ हो जाए तो मांगलिक दोष माना जाता है । बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, कुंडली का शुभ स्थान नहीं माना जाता है । कर्क लग्न की कुंडली में बारहवें भाव में मंगल का स्थित होना अशुभता में ही वृद्धि करता है । यहां से मंगल अपनी आठवीं दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है और मांगलिक दोष का निर्माण करता है ।
इस प्रकार हमने जाना की कर्क लग्न की कुंडली में मंगल पहले, आठवें और बारहवें भाव में स्थित होने पर मांगलिक दोष का निर्माण करता है । वहीँ यह मंगल लग्न से चौथे व् सातवें भाव में स्थित होने पर मांगलिक दोष का घोतक नहीं होता है ।
ध्यान दें किसी भी कुंडली के मांगलिक दोष को निर्धारित करते समय मांगलिक दोष के कैंसलेशन पॉइंट्स जरूर देख लें । इनकी जानकारी आपको नेट पर आसानी से उपलब्ध हो जायेगी । मांगलिक दोष के कैंसलेशन पॉइंट्स जानने के लिए आप हमारी वेबसाइट jyotishhindi.in पर भी लॉगिन कर सकते हैं ।
आशा है की आज का विषय आपके लिए ज्ञानवर्धक रहा । आदियोगी का आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो । ज्योतिषहिन्दी.इन ( Jyotishhindi.in ) पर विज़िट करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।