कर्क लग्न की कुंडली में चंद्र लग्नेश होकर एक योगकारक गृह बनते हैं । मंगल पांचवें और दसवें भाव के स्वामी हैं, इस लग्न कुंडली में एक अति योग कारक गृह हैं । इस प्रकार दोनों ही गृह बहुत शुभ है और अपनी दशाओं में जातक को शुभ फल प्रदान करने के लिए बाध्य हैं । ककर लग्न की कुंडली में महालक्ष्मी योग अवश्य बनता है और जातक को सभी सुख, ऐश्वर्य, सम्पदा, मान, प्रतिष्ठा प्रदान करता है । योगों की क्रमबद्ध श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हम जानेंगे की कर्क लग्न की कुंडली में किन किन भावों में बनता है महालक्ष्मी योग ? किस प्रकार यह योग जातक के जीवन को प्रभावित करता है…..
लग्न में स्थित चंद्र जातक को आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बनाता है । चंद्र की दशाओं में जातक को पहले व सातवें भाव सम्बन्धी सभी लाभ प्राप्त होते हैं । मंगल कर्क राशि में नीच के हो जाते हैं । नीच भंग की स्थिति में भी मंगल जातक की बुद्धि कमजोर करता है, प्रोफेशनल लाइफ में परेशनियां देता है । माता को/से कष्ट मिलता है, जीवासाथी से निभने में प्रॉब्लम आती है, पार्टनरशिप में घाटा होता है । मंगल की दशाओं में हर का में रूकावट आती है । कर्क लग्न की कुंडली में प्रथम भाव में महालक्ष्मी योग नहीं बनता ।
द्वितीयस्थ चंद्रमंगल धन परिवार कुटुंब को/से लाभ पहुंचते हैं । मंगल की चतुर्थ से पुत्र प्राप्ति का योग बनता है, सातवीं दृष्टि से अष्टम भाव को देखने की वजह से रुकावटें दूर होती हैं, आठवीं दृष्टि से विदेश यात्रा का योग अवश्य बनाता है, जातक पिता व् गुरुजनों का सम्मान करता है । चंद्र की महादशा अन्तर्दशा में जातक की ज़ुबान सॉफ्ट रहती है । मंगल की दशाओं में जातक की ज़ुबान व् बुद्धि तेज तर्रार हो जाती है । कर्क लग्न की कुंडली में दुसरे भाव में भाव में महालक्ष्मी योग अवश्य बनता है ।
कर्क लग्न की कुंडली में तृतीय भाव में महालक्ष्मी योग नहीं बनता । चंद्र परिश्रम बढ़ाते हैं व् मंगल अपनी दशाओं में पराक्रम में वृद्धि करता है, यात्राओं से लाभ प्राप्त होता है, जातक पिता व् गुरुजनों का सम्मान करता है । प्रोफेशन में भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है ।
कर्क लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में महालक्ष्मी योग बनता है । चंद्र व् मंगल अपनी दशा अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करते हैं । जातक का माता से बहुत लगाव रहता है, परिवार के सुख में वृद्धि होती है । चंद्र मंगल की दशाओं में चंद्र व मंगल के अन्य भावों के साथ दृष्टि सम्बन्ध से शुभ फल प्राप्त होते हैं, बड़े भाई बहन से लाभ प्राप्त होता है ।
चन्द्रमा की दशाओं में अचानक हानि होती है । बुद्धि शांत नहीं रहती है । मन खिन्न रहता है । यहाँ स्थित मंगल अपनी दशाओं में प्रेम संबंधों में सफलता प्रदान करते हैं, विदेश यात्रा करवाते हैं, प्रोफेशनल लाइफ में भी कामयाबी प्रदान करते है । इस प्रकार चंद्र मंगल के पंचम भावस्थ होने पर भी महालक्ष्मी योग नहीं बनेगा । चन्द्रमा के नीच भंग होने पर भी चंद्र शुभ परिणाम कम ही दे पाता है ।
छठा भाव् त्रिक भाव में से एक भाव होता है, शुभ नहीं माना जाता है । यहाँ स्थित होने पर चंद्र व् मंगल दोनों की महादशा में जातक पीड़ा ही भोगता देखा गया है । इस प्रकार छठे भाव में चन्द्रमंगल की युति से महालक्ष्मी योग नहीं बनेगा ।
चन्द्रमंगल की सप्तम भाव में युति महालक्ष्मी योग बनाती है । इनकी दशाओं में चंद्र व् मंगल के अन्य भावों से दृष्टि सम्बन्ध शुभता में ही वृद्धि करते हैं ।
आठवाँ भाव् त्रिक भाव में से एक भाव होता है, शुभ नहीं माना जाता है । यहाँ स्थित होने पर चंद्र व् मंगल दोनों की महादशा में जातक पीड़ा ही भोगता है । यहाँ स्थित होने पर महालक्ष्मी योग किसी भी सूरत में नहीं बनता है । जातक मृत्यु तुल्य कष्ट भोगता है ।
नवम भाव जन्मकुंडली का एक शुभ भाव माना जाता है । क्यूंकि दोनों जन्मकुंडली के कारक गृह हैं इसलिए यहाँ स्थित होने पर महालक्ष्मी योग अवश्य बनता है। चंद्र व् मंगल के अन्य भावों से दृष्टि सम्बन्ध शुभता में ही वृद्धि करते हैं ।
इस भाव में चंद्र मंगल की युति होने पर चंद्र व् मंगल दोनों की दशाओं में शुभ फल प्राप्त होते हैं । राज्य से लाभ प्राप्त होता है, चंद्र मंगल की महादशा अन्तर्दशा में परिवार में सुख समृद्धि का माहौल बनता है व् माता से जातक का बहुत लगाव होता है । यहाँ भी महालक्ष्मी योग अवश्य बनता है ।
कर्क लग्न की कुंडली में ग्यारहवें भाव में महालक्ष्मी योग बनता है । मंगल की महादशा अन्तर्दशा में पुत्र प्राप्ति का योग बनता है, अचानक लाभ प्राप्ति होती है, प्रतियोगिता में विजय हासिल होती है, कोर्ट केस में जीत होती है । ऐसा जातक दोनों ग्रहों की महादशा अन्तर्दशा में शुभ फल प्राप्त करता है । यदि चंद्र का बलाबल अधिक हो तो पुत्री प्राप्ति का योग बनता है यदि मंगल बलवान हो तो पुत्र ।
कर्क लग्न की कुंडली में बारहवें भाव में महालक्ष्मी योग नहीं बनेगा क्यूंकि बारहवां भाव भाव् त्रिक भाव में से एक भाव होता है, शुभ नहीं माना जाता है । चंद्र व् मंगल दोनों की महादशा में जातक पीड़ा ही भोगता है ।
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