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कर्क लग्न की कुंडली में गुरुचण्डाल योग – Guruchandal yoga Consideration in Cancer/Kark

कर्क लग्न की कुंडली में गुरु छठे और नवें भाव के मालिक होकर एक योगकारक गृह बनते हैं । आइये विस्तार से जानते हैं गुरु व् राहु की युति से किन भावों में बनता है गुरुचण्डाल योग, किस गृह की की जायेगी शांति….



कर्क लग्न की कुंडली में प्रथम भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in first house in Cancer/Kark lgna kundli :

कर्क राशि में गुरु उच्च के हो जाते हैं । शुभ फल प्रदान करते हैं । जिन भावों से दृष्टि सम्बन्ध बनाते हैं उनसे सम्बन्धित शुभ फलों में वृद्धिकारक हो जाते हैं । यहाँ स्थित होने पर राहु की शांति करवाई जायेगी क्यूंकि राहु अपने शत्रु चंद्र के घर में आये हैं ।

कर्क लग्न की कुंडली में द्वितीय भाव में गुरुचण्डाल योग Gajkesari yoga in second house in Cancer/Kark lgna kundli :

सिंह राशि में गुरु शुभ फल प्रदान करते हैं । गुरु की दशाओं में जातक बहुत अधिक उन्नति करता है । यहाँ राहु की शांति करवानी होगी ताकि गुरु भी पूर्ण रूप से शुभ फल प्रदान कर सकें ।

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कर्क लग्न की कुंडली में तृतीय भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in third house in Cancer/Kark lgna kundli :

तीसरे भाव में गुरु राहु की युति परिश्रम में वृद्धिकारक होती है । गुरु की दशाओं में कड़े परिश्रम के बाद शुभ फल प्राप्त होते हैं । राहु की दशाओं में भी मेहनत का उचित फल मिलता है यदि बुद्ध विपरीत राजयोग की स्थिति में आ जाएँ तो । बुद्ध की स्थिति यदि ठीक नहीं है तो राहु की दशाओं में बहुत परिश्रम का फल भी प्राप्त नहीं हो पाता । दोनों ग्रहों के उपाय करने पड़ते हैं । फिर भी यहाँ गुरु की शांति नहीं करवाई जाती, पूजा पाठ से ही गुरु देव को प्रसन्न करके शुभ फल प्राप्त किये जाते हैं ।

कर्क लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in fourth house in Cancer/Kark lgna kundli :

तुला राशि में गुरुराहु दोनों ही शुभफल प्रदान करने के लिए बाध्य हैं । इसलिए किसी की शांति नहीं करवाई जायेगी ।

कर्क लग्न की कुंडली में पंचम भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in fifth house in Cancer/Kark lgna kundli :

वृश्चिक राशि में राहु नीच की माने जाते हैं । गुरु की दशाओं में जातक बहुत उन्नति करता है । पुत्र प्राप्ति का योग बनता है । अचानक लाभ होते हैं । यहाँ राहु की शांति करवाई जाती है ।

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कर्क लग्न की कुंडली में छठे भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in sixth house in Cancer/Kark lgna kundli :

इस भाव में दोनों की दशाएं अशुभ फलकारी हैं । दोनों की शांति अनिवार्य है । हाँ यदि गुरु विपरीत राजयोग बना लें तो इनकी दशाएं शुभ फल प्रदान करने वाली होती हैं । राहु के नीच राशिस्थ होने से इनकी शांति अनिवार्य है ।

कर्क लग्न की कुंडली में सातवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in seventh house in Cancer/Kark lgna kundli :

सप्तम भाव में गुरु अपनी नीच राशि में आ जाते हैं और अशुभफल प्रदायक होते हैं । इस भाव में गुरु की शांति करवाई जानी चाहिए । राहु अपनी मित्र राशि में हैं इसलिए इनकी दशाएं शुभफलकारी होती हैं ।


कर्क लग्न की कुंडली में आठवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in eighth house in Cancer/Kark kundli :

आठवाँ भाव त्रिक भाव में से एक होता है, शुभ नहीं कहा जाता है । आठवाँ भाव वैसे ही भौतिक दृष्टि से शुभ नहीं कहा गया है । राहु भी इस भाव में अशुभता में ही वृद्धिकारक होते हैं । इस वजह से यहाँ स्थित होने पर राहु व् गुरु दोनों की शांति करवाई जाती है । गुरु आठवें भाव में भी विपरीत राजयोग की स्थिति में आ जाएँ तो शुभ फलदायक हो जाते हैं ।

कर्क लग्न की कुंडली में नौवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in ninth house in Cancer/Kark lgna kundli :

नवम भाव में स्वराशिस्थ गुरु शुभफलदायक होते हैं । यहाँ राहु की शांति करवाई जाती है ।

कर्क लग्न की कुंडली में दसवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in tenth house in Cancer/Kark lgna kundli :

दशम भाव में गुरु के स्थित होने पर गुरु की दशाओं में बहुत शुभ फल प्राप्त होते हैं । राहु की शांति करवाना न भूलें ।

कर्क लग्न की कुंडली में ग्यारहवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in eleventh house in Cancer/Kark lgna kundli :

ग्यारहवें भाव में गुरु राहु की युति होने पर किसी गृह से सम्बंधित उपाय नहीं करवाया जाएगा । दोनों ग्रहों की दशाएं शुभ फल प्रदान करती हैं ।

कर्क लग्न की कुंडली में बारहवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in twelth house in Cancer/Kark lgna kundli :

बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, शुभ नहीं माना जाता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में व्यर्थ का व्यय लगा ही रहता है । कोर्ट केस में धन व्यय होने के योग बनते हैं । इस भाव में आने पर राहु व् गुरु दोनों की शांति अनिवार्य है । यदि बुद्ध विपरीत राजयोग बना लें तो राहु भी शुभ फलदायक हो जाते हैं ।

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