कन्या लग्न की कुंडली में गुरु  – kanyaa lagn kundali me guru (jupiter)

कन्या लग्न की कुंडली में गुरु – Kanyaa Lagn Kundali me Guru (Jupiter)

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  • ज्योतिष विशेष, लग्न विचार
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  • भारत देश में प्रचलित पौराणिक ज्योतिष मान्यताओं में वृहस्पति को देवगुरु की उपाधि प्राप्त है। स्वभाव से साधू देव गुरु धनु व् मीन राशि के स्वामी हैं जो कर्क में उच्च व् मकर राशि में नीच के माने जाते हैं । कन्या लग्न की कुंडली में गुरु चतुर्थेश , सप्तमेश होकर एक सम गृह के रूप में मान्य हैं । यदि गुरु शुभ स्थित होकर बलाबल में कमजोर हों तो इस लग्न कुंडली के जातक को पुखराज धारण करना चाहिए। आपको बताते चलें की जन्मपत्री के उचित विश्लेषण के बाद ही उपाय संबंधी निर्णय लिया जाता है की उक्त ग्रह को रत्न से बलवान करना है , दान से ग्रह का प्रभाव कम करना है , कुछ तत्वों के जल प्रवाह से ग्रह को शांत करना है या की मंत्र साधना से उक्त ग्रह का आशीर्वाद प्राप्त करके रक्षा प्राप्त करनी है आदि । मंत्र साधना सभी के लिए लाभदायक होती है । आज हम कन्या लग्न कुंडली के १२ भावों में देवगुरु के शुभाशुभ प्रभाव को जानने का प्रयास करेंगे …




    कन्या लग्न – प्रथम भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Gurul pratham bhav me :

    यदि लग्न में गुरु हो तो जातक की बुद्धि बहुत शार्प हो जाती है ,पुत्र प्राप्ति का योग बनता है। दाम्पत्य जीवन के लिए गुरु शुभता प्रदान करते है और साझेदारी के काम से लाभ का योग बनता है । भाग्य जातक का साथ देता है । जातक विदेश यात्राएं करता है ।

    कन्या लग्न – द्वितीय भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Guru dwitiya bhav me :

    ऐसे जातक को धन , परिवार कुटुंब का साथ मिलता है । जातक के परिवार में धन का आगमन होता रहता है । वाणी बहुत उम्दा होती है । गुरु की महादशा में रुकावटें जातक का सामना नहीं कर पाती हैं , भाग्य जातक का पूर्ण साथ देता है ।

    कन्या लग्न – तृतीय भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Guru tritiy bhav me :

    जातक बहुत परश्रमी , पराक्रमी होता है । परिश्रम के बाद जातक का भाग्य उसका साथ अवश्य देता है । छोटे भाई का योग बनता है । दाम्पत्य जीवन , पार्टनरशिप में दिक्कतें आती है। जातक पितृभक्त नहीं होता , धार्मिक होता है । बड़े भाई बहन से मन मुटाव रहता है ।

    कन्या लग्न – चतुर्थ भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Guru chaturth bhav me :

    गुरु की महदशा में चतुर्थ भाव में गुरु होने से जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का सुख प्राप्त होता है । रुकावटें दूर होती हैं । काम काज भी बेहतर स्थिति में होता है । विदेश यात्राएं होती रहती हैं , विदेश सेटलमेंट की सम्भावना भी बनती है । जातक दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करता है ।

    कन्या लग्न – पंचम भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Gurul pncham bhav me :

    नीच राशिस्थ होने पर गुरु की महादशा में जातक का स्वास्थ्य खराब रहता है । माता , जीवन साथी , पार्टनर्स पिता , बड़े भाई बहन से संबंधों में खटास आती है । जातक का मन अशांत रहता है ।



    कन्या लग्न – षष्टम भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Guru shashtm bhav me :

    माता , पत्नी का स्वास्थ्य खराब रहता है । कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । प्रतियोगिता में बहुत मेहनत के बाद विजयश्री हाथ आती है । प्रोफेशन बत्तर स्थिति में आ जाता है , जातक धार्मिक नहीं रहता है । गुरु की महदशा में कोई न कोई टेंशन बनी रहती है । कुटुंबजन को समस्याएँ आती हैं । कुटुंब का साथ प्राप्त नहीं होता और विदेश सेटेलमेंट का योग भी बनता है ।

    कन्या लग्न – सप्तम भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Guru saptam bhav me :

    जातक / जातीका का जीवन साथी समझदार होता है , व्यवसाय व् साझेदारों से लाभ प्राप्ति का योग बनता है । बड़े भाई बहन से सम्बन्ध अच्छे रहते हैं , जातक सूझवान होता है , मेहनती होता है , छोटे भाई का योग बनता है ।

    कन्या लग्न – अष्टम भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Guru ashtam bhav me :

    यहां गुरु के अष्टम भाव में स्थित होने की वजह से माता , पत्नी का स्वास्थ्य खराब रहता है । जातक के हर काम में रुकावट आती है । फिजूल का व्यय होता रहता है । कुटुंब का साथ नहीं मिलता है , धन की हानि होती है । पार्टनरशिप के बिज़नेस में परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं । भूमि , मकान , वाहन के सुख में कमी आती है , माता के साथ संबंधों में भी कड़वाहट रहती है । जातक के घर से दूर रहने का योग भी बनता है ।

    कन्या लग्न – नवम भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Guru nvm bhav me :

    जातक आस्तिक व् पितृ भक्त होता है । पिता से जुड़कर काम करे तो अधिक लाभ होता है । गुरु की पंचम दृष्टि जातक को सूझवान बनाती है , सप्तम मेहनती और नवम दृष्टि से पुत्र प्राप्ति का योग बनता है , अचानक लाभ मिलता है , स्वास्थ्य उत्तम रहता है । विवाह के बाद भाग्योदय अवश्य होता है । जातक भूमि , मकान , वाहन सम्बन्धी सभी सुख भोगता है ।

    कन्या लग्न – दशम भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Guru dasham bhav me :

    जातक का प्रोफेशन उत्तम रहता है , कोई नया काम शुरू होने का योग बनता है । धन , परिवार , कुटुंब का पूर्ण साथ मिलता है । जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का पूर्ण सुख मिलता है । कॉम्पिटिशन , कोर्ट केस में विजय होती है और रोग से छुटकारा मिलता है , लोन का भुक्तान समय पर होता है ।

    कन्या लग्न – एकादश भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Guru ekaadash bhav me :

    अपनी महादशा / अन्तर्दशा में बड़े-छोटे भाई बहनो से संबंध मधुर रहते है । पेट में छोटी मोटी बीमारी लगने की संभावना रहती है जो बाद में ठीक भी हो जाती है । पुत्र प्राप्ति का योग बनता है । बुद्धि , जातक बहुत मेहनती होता है । दाम्पत्य सुख प्राप्त होता है , पार्टनरशिप से लाभ मिलता है , दैनिक आय में इजाफा होता है ।

    कन्या लग्न – द्वादश भाव में गुरु – Kanyaa Lagan – Guru dwadash bhav me :

    हमेशा कोई ना कोई टेंशन बनी रहती है । माता का स्वास्थ्य खराब हो सकता है। मन परेशान रहता है । माता को / से कष्ट प्राप्त होता है , मकान , वाहन भूमि का सुख नहीं मिलता है । कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । गुरु की महदशा में व्यर्थ का खर्च बना रहता है । हर काम में रुकावट आती है ।

    कृपया ध्यान दें ….गुरु के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए । गुरु के ३,५,६,८,१२ भाव में स्थित होने पर किसी भी सूरत में पुखराज रत्न धारण न करें ( अस्त हो जाए तो पहना जा सकता है ) । गुरु जनों का सम्मान करें , पूजा पाठ में मन लगाएं , गुरूवार का व्रत रखें , पीले चावल का सेवन करें । ये उपाय सभी के लिए लाभदायक हैं । किसी योग्य विद्वान से कुंडली विश्लेषण आवश्य करवाएं तत्पश्चात उपाय सम्बन्धी कार्यवाही अमल में लाएं । सभी का मंगल हो ।

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