राशि चक्र की छठी राशि कन्या का स्वामी बुध है । इसका विस्तार 150 से 180 अंश है। इसका चिन्ह नाव खेती हुई कुंवारी कन्या है! कुछ ज्योतिषियों के मतानुसार इस कन्या एक एक हाथ में गेहूं की डाली व् दुसरे हाथ में लालटेन है और ये नाव में कहीं जा रही है, अन्य ज्योतिषियों का मानना है की एक हाथ में गेहूं की डाली व् दुसरे हाथ से ये नाव खेती है ( नाव चला रही है ), वहीँ कुछ हाथ मे फ़ूल की डाली लिये कन्या मानते हैं । यह एक द्विस्वभावी पृथ्वी तत्व राशि है! वैश्य वर्ण की इस राशि के अंतर्गत उत्तराफ़ाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण,चित्रा के पहले दो चरण और हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते है।
कन्या राशि का स्वामी बुध होने से ऐसे जातक बुद्धिमान होते हैं । वाद विवाद में कुशल व् अच्छे वक्त होते हैं । कालपुरुष की कुंडली में कन्या राशि छठे भाव में आने से ऐसे जातकों के जीवन में संघर्ष अपेक्षाकृत अधिक रहता है, शत्रुओं व् बीमारियों से दो चार होना पड़ता है! कोर्ट कचहरी के चक्करों में भी उलझने की सम्भावना बनी रहती है । कन्या राशि के जातक कैलकुलेशन में फ़ास्ट होते हैं व् इन्हे बुद्धि से जुड़े कार्यों में ज्यादा आनंद आता है! पृथ्वी तत्त्व होने से ये धैर्यवान होते हैं! जल्दबाजी में कोई कार्य करना पसंद नहीं करते! ये राशि निरंतर आगे बढ़ते रहने व् दूसरों के घाव भरने की प्रेरणा देती है! यदि लग्न कुंडली में बुद्ध कमजोर हो जाये तो ऐसे जातक बुद्धि के बजाये ह्रदय से काम लेने लगते है जो भौतिक लाभ के लिए बाधक हो जाता है ।
कन्या राशि के अंतर्गत उत्तराफ़ाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण,चित्रा के पहले दो चरण और हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते है।
इसका विस्तार 150 से 180 अंश है।
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक गृह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक गृह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे, आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
बुध Mercury :
लग्नेश होने से बुद्ध कन्या लग्न की कुंडली में कारक बनता है ।
शुक्र Venus :
दुसरे व् नवें भाव का स्वामी व् लग्नेश बुद्ध का अति मित्र होने से कारक गृह बनता है ।
शनि Saturn :
पांचवे , छठे का स्वामी है । अतः कारक है ।
गुरु Jupiter :
चौथे व् सातवें का स्वामी होने से कन्या लग्न में सम गृह होता है ।
मंगल Mars :
तीसरे व् आठवें घर का स्वामी व् लग्नेश का अति शत्रु है । अतः मारक है ।
चंद्र Moon :
ग्यारहवें घर का स्वामी है । अतः मारक है ।
सूर्य Sun :
बारहवें घर का स्वामी होने से मारक होता है ।
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व कुंडली का उचित विवेचन अवश्य करवाएं । आपका दिन शुभ व् मंगलमय हो ।