कन्या लग्न की कुंडली में महालक्ष्मी योग – mahalakshmi yoga consideration in virgo/kanya

कन्या लग्न की कुंडली में महालक्ष्मी योग – Mahalakshmi yoga Consideration in Virgo/Kanya

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  • कन्या लग्न की कुंडली में चंद्र एकादशेश ( ग्यारहवें भाव के स्वामी ) हैं, साथ ही लग्नेश बुद्ध के शत्रु भी हैं । इसलिए एक अकारक गृह बनते हैं । मंगल तीसरे और आठवें भाव के स्वामी हैं जिस वजह से मंगल भी एक अकारक गृह बने । इस प्रकार चंद्र व् मंगल दोनों ही अपनी दशाओं में जातक को अधिकतर अशुभ फल प्रदान करते हैं । स्पष्ट हो जाता है की कन्या लग्न की कुंडली में महालक्ष्मी योग नहीं बनेगा । जानने काप्रयास करते हैं की कन्या लग्न की कुंडली के विभिन्न भावों में चन्द्रमंगल के एक साथ स्थित होने पर कैसे परिणाम आने की सम्भावना रहती है….




    कन्या लग्न की कुंडली में प्रथम भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in first house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    लग्न में स्थित चंद्र जातक को आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बनाता है, साथ ही अपनी महादशा में सातवें भाव सम्बन्धी अशुभ फल प्रदान करता है । मंगल अपनी दशाओं में तीसरे, चौथे, सातवें, आठवें भाव सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न करते है । कन्या लग्न की कुंडली में प्रथम भाव में चन्द्रमंगल की युति जातक को मानसिक रूप से कमजोर करती है ।

    कन्या लग्न की कुंडली में द्वितीय भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in second house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    द्वितीयस्थ मंगल धन परिवार कुटुंब को/से हानि पहुंचाते हैं । मंगल की चतुर्थ से पुत्र प्राप्ति का योग बनता है बनता है , जातक झगड़ालू होता है, सातवीं दृष्टि से अष्टम भाव को देखने की वजह से हर काम में रुकावटें आती हैं, आठवीं दृष्टि से विदेश यात्रा का योग अवश्य बनाता है परन्तु लाभ में बहुत कमी रहती है या लाभ होता ही नहीं, जातक पिता व् गुरुजनों का मान नहीं करता है । वहीँ चंद्र की महादशा अन्तर्दशा में जातक को धन लाभ तो होता है, किन्तु कुटुंब सम्बन्धी परेशानियां बढ़ती है ।

    कन्या लग्न की कुंडली में तृतीय भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in third house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    कन्या लग्न की कुंडली में तृतीय भाव में भी महालक्ष्मी योग नहीं बनता । चंद्र का नीच भंग हो जाता हैं लेकिन वो तीसरे व् नवें भाव सम्बन्धी अशुभ ही फल प्रदान करते हैं व् मंगल अपनी दशाओं में पराक्रम में वृद्धि करता है, परिश्रम करवाता है, जातक का काम यात्राओं से जुड़ा हो सकता है, पिता व् गुरुजनों से अनबन रहती है । मंगल की महादशा में जातक परिश्रम बहुत करता है लेकिन उस अनुपात में लाभ बहुत कम रहते हैं । वर्किंग प्लेस में भी समस्याएं बनी ही रहती हैं ।

    कन्या लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in fourth house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    चंद्र अपनी दशा अन्तर्दशा में जातक का माता से मन मुटाव बनाये रखते हैं, परिवार के सुख में कमी होती है । मंगल की दशाओं में जातक माता से मनमुटाव बढ़ता है, डिमोशन हो सकती है, मकान, वाहन, भूमि से हानि होने की सम्भावना बनती है । मंगल की दशाओं में मंगल के अन्य भावों के साथ दृष्टि सम्बन्ध से भी अशुभ फल प्राप्त होते हैं, बड़े भाई बहन से भी सम्बन्ध खराब हो जाते हैं ।

    कन्या लग्न की कुंडली में पंचम भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in fifth house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    चन्द्रमा की दशाओं में अचानक हानि होती है । बुद्धि शांत नहीं रहती है । मन खिन्न रहता है । यहाँ स्थित मंगल अपनी दशाओं में अधिकतर नुक्सान ही पहुंचते हैं । प्रेम संबंधों में जातक असफल होते हैं, अचानक हानि पहुंचाते हैं । बड़े भाई बहन से अनबन बनी रहती है । चन्द्रमंगल अपने बलाबल के अनुसार पुत्र पुत्री का योग बनाते हैं ।

    कन्या लग्न की कुंडली में छठे भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in sixth house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    छठा भाव् त्रिक भाव में से एक भाव होता है, शुभ नहीं माना जाता है । यहाँ स्थित होने पर चंद्र व् मंगल दोनों की महादशा में जातक पीड़ा ही भोगता देखा गया है । इस प्रकार छठे भाव में चन्द्रमंगल की युति से महालक्ष्मी योग नहीं बनेगा । यदि मंगल विपरीत राजयोग बना लें तो अपनी दशाओं में जातक को शुभ फल प्रदान करते हैं ।



    कन्या लग्न की कुंडली में सातवें भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in seventh house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    मंगल की दशाओं में जिन भावों का मंगल मालिक है, जहाँ बैठा है और जिन भावों से दृष्टि सम्बन्ध बनाता है उन भावों से सम्बंधित अशुभ फलों में वृद्धि करता है । चंद्र पत्नी व् बिज़नेस पार्टनर्स से विच्छेद की स्थिति उत्पन्न करता है, दैनिक आय कम होती जाती है । जातक दोनों की दशाओं में कष्ट भोगता है ।

    कन्या लग्न की कुंडली में आठवें भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in eighth house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    आठवाँ भाव् त्रिक भाव में से एक भाव होता है, शुभ नहीं माना जाता है । यहाँ स्थित होने पर चंद्र व् मंगल दोनों की महादशा में जातक पीड़ा ही भोगता है । जातक मृत्यु तुल्य कष्ट भोगता है । छोटे भाई बहन से क्लेश बढ़ता है । यदि मंगल विपरीत राजयोग में आए जाएँ तो अपनी दशाओं में शुभ फल प्रदान करते है ।

    कन्या लग्न की कुंडली में नौवें भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in ninth house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    नवम भाव जन्मकुंडली का एक शुभ भाव माना जाता है । क्यूंकि दोनों जन्मकुंडली के कारक गृह नहीं हैं इसलिए यहाँ स्थित होने पर महालक्ष्मी योग नहीं बनता है। मंगल जिन भावों का स्वामी है और जहाँ बैठता है उन भावों संबंधी अशुभ फल प्रदान करता है और मंगल के अन्य भावों से दृष्टि सम्बन्ध भी अशुभता में ही वृद्धि करते हैं । साथ ही चंद्र भी अपनी दशाओं में नौवें, ग्यारहवें व् तीसरे भाव सम्बन्धी अशुभ फल प्रदान करता है ।

    कन्या लग्न की कुंडली में दसवें भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in tenth house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    इस भाव में चंद्र मंगल की युति होने पर प्रोफेशन व् चतुर्थ, पंचम भाव सम्बन्धी अशुभ फल प्राप्त होते हैं । मंगल की दशाओं में राज्य से हानि होती है, सुखों में कमी आती है व् माता,पिता से अनबन रहती है । मंगल चौथे, पांचवें, दसवें, व् स्वयं के भावों सम्बन्धी अशुभ फल प्रदान करता है ।

    कन्या लग्न की कुंडली में ग्यारहवें भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in eleventh house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    मंगल की महादशा अन्तर्दशा में कुटुंबजनों को कष्ट होता है, पुत्र प्राप्ति का योग बनता है, अचानक हानि होती है, प्रतियोगिता में बहुत प्रयास के बाद विजय हासिल हो पाती है, बड़े भाई बहन को कष्ट होता है । ऐसा जातक चंद्र की महादशा अन्तर्दशा में ग्यारहवें भाव सम्बन्धी शुभ फल प्राप्त करता है । यदि चंद्र का बलाबल अधिक हो तो पुत्री प्राप्ति का योग बनता है यदि मंगल बलवान हो तो पुत्र का योग बनता है ।

    कन्या लग्न की कुंडली में बारहवें भाव में महालक्ष्मी योग Mahalakshmi yoga in twelth house in Virgo/Kanya lgna kundli :

    कन्या लग्न की कुंडली में बारहवें भाव में महालक्ष्मी योग नहीं बनेगा क्यूंकि बारहवां भाव भाव् त्रिक भाव में से एक भाव होता है, शुभ नहीं माना जाता है । चंद्र व् मंगल दोनों की महादशा में जातक पीड़ा ही भोगता है । यदि मंगल विपरीत राजयोग में आए जाएँ तो अपनी दशाओं में शुभ फल प्रदान करते है ।

    आशा है की उपरोक्त विषय आपके लिए ज्ञानवर्धक रहा । आदियोगी का आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो । ( Jyotishhindi.in ) पर विज़िट करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

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