अपने अभी तक जाना की जब गुरुचंद्र जन्मपत्री के योगकारक होकर किसी शुभ भाव में स्थित हो जाएँ तो गजकेसरी योग का निर्माण होता है । कन्या लग्न की जन्मपत्री में चंद्र एकादशेश होकर एक अकारक गृह बनते हैं । वहीँ गुरु चतुर्थेश, सप्तमेश होकर एक सम गृह जाने जाते हैं । शुभ स्थित होने पर गुरु की दशाओं में जातक निसंदेह शुभ फल प्राप्त करता है, परन्तु चन्द्रमा की दशाओं में नहीं । कन्या लग्न की जन्मपत्री में गजकेसरी योग नहीं बनता । गुरु का बलाबल में सुदृढ़ होना जन्मपत्री को बल प्रदान करता है, वहीँ चन्द्रमा के बलाबल में कमी होने से कुंडली की शुभता में वृद्धि होती है । ऐसे में चंद्र देव अशुभता प्रकट करने सक्षम नहीं होते अथवा बुरे फल अल्प मात्रा में प्रदान करते हैं । परन्तु यदि चन्द्रमा का बलाबल अधिक हो तो जातक बेचैन रहता है, ओवर इमोशनल होता है, माता व् परिवार के सुख में भी कमी आती है ।
प्रथम भाव में चन्द्र जातक को आकर्षक बनाता है। चंद्र की दशाओं में प्रथम व् सप्तम भाव सम्बन्धी शुभ फलों में कमी आती है, जातक अत्यधिक कल्पनाशील रहता है । वहीँ गुरु की दशाओं में प्रेम विवाह के योग बनते है । पहले, पांचवें, सातवें और नौवें भाव सम्बन्धी शुभ फलों में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है ।
गुरु की दशाओं में कुटुंब में सुख, समृद्धि आती है, धन लाभ होता है, प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त होती है, रुकावटें दूर होती हैं, भाग्य का साथ प्राप्त होता है, व्यापार से लाभ होता है । चंद्र की दशाओं में मानसिक कष्ट में इज़ाफ़ा होता है ।
तीसरे भाव में गुरुचंद्र की युति से कोई योग नहीं बनता, वृहस्पति को केन्द्राधिपति दोष लगता है, गुरु की दशाओं में परिश्रम से अल्प लाभ होता है परन्तु इस भाव में चंद्र वृश्चिक राशि में आने से नीच के हो जाते हैं । चंद्र की दशाओं में परिश्रम का लाभ बहुत ही अल्प मात्रा में प्राप्त होता है, छोटे भाई बहन से अनबन रहती है । गजकेसरी योग नहीं बनता ।
वृहस्पति देव की दशाओं में जातक को परिवार का साथ प्राप्त होता है । सुख सुविधाओं में वृद्धि होती है । नए मकान, वाहन का योग भी बनता है । ऐसे जातक का माता से बहुत लगाव होता है । वहीँ चंद्र की दशाओं में जातक बहुत कष्ट झेलता है । माता से भी अनबन होती है । माता व् जातक दोनों को कष्ट भोगना पड़ता है ।
चन्द्र गुरु की दशाओं में जातक मानसिक रूप से परेशान रहता है । प्रेम संबंधों में असफलता हाथ आती है, अचानक घाटा ( नुक्सान ) होने की संभावनाएं बनती हैं । नीच राशि के गुरु पारिवारिक सुख में कमी लाते हैं, पिता से संबंधों में खटास आ जाती है, जातक का स्वास्थ्य भी उत्तम नहीं रहता ।
त्रिक भावों में कोई योग नहीं बनता । पारिवारिक सुख में कमी आती है, पार्टनरशिप से लाभ प्राप्त नहीं हो पाता, परिवार का कोई सदस्य अस्वस्थ हो सकता है, कोर्ट केस में भी पैसा व्यय होने के चान्सेस बनते हैं ।
स्वराशिस्थ गुरु की दशाओं में व्यापार से लाभ के योग बनते हैं । लाभ में इज़ाफ़ा होता है, यात्राओं से भी लाभ होता है । चंद्र की दशाओं में लाइफ पार्टनर और बिज़नेस पार्टनर के साथ संबंधों में खटास आ जाती है, स्वास्थ्य खराब होने की सम्भावना बनती है । साझेदारी के व्यापार से घाटा होता है । जातक का स्वास्थ्य भी उत्तम नहीं रहता है ।
आठवाँ भाव त्रिक भाव में से एक होता है, शुभ नहीं कहा जाता है । इस भाव में गुरु चंद्र की युति से कोई योग नहीं बनता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में जातक मृत्यु तुल्य कष्ट भोगता है ।
चन्द्र्गुरु की नवम भाव में युति से गुरु की दशाओं में जातक का पिता से बहुत लगाव होता है, परिश्रम का फल भी अवश्य प्राप्त होता है, विवाह के बाद जातक का भाग्य उसका भरपूर साथ देता है । यात्राओं से लाभ होता है उच्च शिक्षा प्राप्ति व् पुत्र प्राप्ति के योग बनते हैं । उच्च के चंद्र की दशाओं में यात्राएं होती हैं, यात्राओं से लाभ अल्प मात्रा में प्राप्त होता है।
चंद्र की दशाएं मानसिक कष्ट पहुँचाने वाली रहती हैं, लाभ में कमी आती है, माता से भी नहीं बनती । गुरु की दशाओं में सभी सुःख प्राप्त होते हैं । जातक का माता से बहुत लगाव होता है । गुरु की दशाएं प्रतियोगिताओं में सफलतादायक होती हैं । धन लाभ होता है ।
चंद्र की दशाओं में पुत्री व् गुरु की दशाओं में पुत्र का योग बनता है । स्वराशि चंद्र की दशाओं में लाभ के योग अवश्य बनते हैं, इच्छापूर्ति होती है, मन विचलित ही रहता है । वहीँ गुरु की दशाएं उन्नति लेकर आती हैं, लव मैरिज होती है, व्यापार साझेदारी से लाभ प्राप्त होता है, जातक के परिश्रम का उचित फल प्राप्त होता है ।
बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, शुभ नहीं माना जाता है । बारहवें भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता । दोनों ग्रहों की दशाओं में व्यर्थ का व्यय लगा ही रहता है । कोर्ट केस में धन व्यय होने के योग बनते हैं ।
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