ज्योतिषहिन्दी के नियमित पाठकों को ह्रदय से नमन । आज हम आपके साथ फलादेश की एक ऐसी तकनीक साझा करने जा रहे हैं जिससे आप ग्रहों की महादशा में प्राप्त होने वाले फलों की जानकारी तो प्राप्त करेंगे ही, साथ ही साथ आपको जन्मपत्री के सूक्ष्म अध्ययन सम्बन्धी अत्यंत मह्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी ।जैसा की आप जानते ही हैं की फलादेश करते समय हम मुख्यतया ध्यान रखते हैं की अमुक गृह कौन कौन से घरों का स्वामी है और कौन से भाव में विराजमान है । यानि आज हम आपसे स्थूलाधिपति के विषय में समझने का प्रयास करेंगे । फलादेश के समय स्थूलाधिपति गृह का अध्यन बहुत आवश्यक होता है क्यूंकि फलित में इसका अपना विशेष प्रभाव रहता है । विभिन्न ज्योतिष ग्रंथों के अध्यायों में ऐसा वर्णित है की जिस राशि में गृह विराजमान है उसका भी अध्ययन अवश्य करें । उदाहरणार्थ :
यदि कोई गृह मेष राशि में कृतिका नक्षत्र में विराजमान है तो मेष राशि का स्वामी मंगल हुआ स्थूलाधिपति और कृतिका नक्षत्र के स्वामी सूर्य हुए सूक्ष्माधिपति ।
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एक और उदाहरण के साथ समझने का प्रयास करते हैं :
यदि कोई गृह वृष राशि में रोहिणी नक्षत्र में स्थित है तो तो वृष राशि के स्वामी शुक्र स्थूलाधिपति हुए और रोहिणी नक्षत्र के स्वामी चंद्र बने सूक्ष्माधिपति ।
अब आपको देखना यह है की स्थूलाधिपति और सूक्ष्माधिपति एक दुसरे से क्या सम्बन्ध बनाते हैं । यदि किसी गृह के स्थूलाधिपति और सूक्ष्माधिपति एक दुसरे के साथ ही बैठे हैं तो यह गृह बलि होगा और उसकी दशा में आपको इस गृह से सम्बंधित पूर्ण फल प्राप्त होंगे । ध्यान दीजियेगा यहाँ पूर्ण फलों या स्ट्रांग फलों की बात हो रही है । शुभ या अशुभ फलों की जानकारी के लिए और पहलुओं का भी ध्यान रखना पड़ता है ।