कालपुरुष कुंडली में चतुर्थ भाव में कर्क राशि आती है । कर्क के स्वामी चन्द्रमा को ज्योतिष विद्वानों ने बुद्ध की माता भी कहा है । सृष्टि में उपलब्ध सभी सुखों में श्रेष्ठ मात्र सुख का विचार फोर्थ हाउस से किया जाता है । इस भाव से माता से प्राप्त होने वाले सुख को और माता को प्राप्त होने वाले सुख को जाना जाता है । मात्र सुख के अतिरिक्त मकान, वाहन, प्रॉपर्टी आदि से प्राप्त होने वाले अनेक प्रकार के भौतिक भोगों की जानकारी इस भाव से प्राप्त की जाती है । जातक को घर का सुख प्राप्त होगा या नहीं, घर से दूर जाने के योग, नया वाहन खरीदने का योग, मकान बनाने का योग, मकान बनने में होने वाली देरी, यात्रा में प्रयोग होने वाला वाहन व् माता के स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रश्न आदि की जानकारी इस भाव के अध्ययन से प्राप्त की जाती है । चतुर्थ भाव जातक की शिक्षा के सम्बन्ध में भी जानकारी प्रदान करता है । यह चार केंद्रों में से एक केंद्र होता है । अतः शुभत्व प्रदान करने वाला कहा जाता है । मानव शरीर में इस भाव से छाती का विचार किया जाता है । इस शुभ भाव में यदि पापी गृह आ जाएँ तो उनकी अशुभता में कमी आ जाती है । यदि कुंडली में कहीं चन्द्रमा पीड़ित अवस्था में हो तो इसका चतुर्थ भाव सम्बन्धी शुभ फलों फलों पर नकारात्मक प्रभाव देखा गया है ।
चतुर्थ भाव से जुड़े अन्य पक्ष Other aspects related to fourth house:
यह पहले भाव से एंटीक्लॉकवाइज़ चतुर्थ भाव आता है । इस भाव से माता का स्वास्थ्य देखा जाता है, जातक को जीवन में प्राप्त होने वाले सुखों का अध्ययन किया जाता है । चतुर्थ भाव कुंडली के दुसरे का दूसरा भाव है तो इस भाव से कुटुंब का पराक्रम देखा जाता है । यह तीसरे भाव से दूसरा है तो छोटे भाई बहन की वृद्धि की जानकारी प्रदान करता है, पराक्रम में बढ़ौतरी दिखाता है । पंचम भाव से शिक्षा का विचार किया जाता है । पंचम से द्वादशेश होने पर यह सामान्य शिक्षा पर प्रकाश डालता है । संतान के विदेशी सम्बन्धो का भान देता है । लव अफेयर में नाकामयाबी दर्शाता है और संतान के सुख में दिक्कतों, परेशानियों को भी दिखाता है । छठे भाव का लाभेश होता है, इसलिए जातक के मामा को होने वाले लाभ की गणना इस भाव से की जाती है । यह सातवें भाव से दशम होता है, पार्टनर्स का कर्म भाव बनता है । पार्टनर्स को प्राप्त होने वाले राजकीय सम्मान व् उनकी प्रतिष्ठा को दिखाता है । अष्टम या अष्टमेश से चतुर्थ भाव का सम्बन्ध असेंडेट व् असेंडेंट की माता के जीवन में परेशानियों का घोतक है । नवम भाव से अष्टम भाव बनता है । षटाष्टक योग भी बनाता है । पिता के कष्टों की जानकारी देता है । ग्यारहवें से छठा भाव बनता है । जातक के बड़े भाई बहन और चाचा जी के स्वास्थ्य व् कठिन परिश्रम की क्षमता को प्रदर्शित करता है ।
असेंडेंट के घर में यदि चौथे भाव की जांच करनी हो तो जातक के घर में पानी रखने का स्थान चतुर्थ भाव का स्थान माना जाता है । यदि जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में कोई पापी या क्रूर गृह आता है तो उस गृह के पापत्व में कमी तो आती है लेकिन जातक को घर का सुख कम ही मिल पाता है । चतुर्थेश का सम्बन्ध त्रिक भावों में से किसी एक के साथ बनने से जातक के सुख में कमी आती है । माता के सुख में भी कमी आती है । कभी कभी तो जातक को घर से दूर विदेश में भी जाकर रहना पड़ता है ।