जातक के जीवन में घटने वाली विभिन्न घटनाओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए देश, काल, परिस्थिति के साथ साथ सम्पूर्ण कुंडली विश्लेषण नितांत आवश्यक है । चूंकि प्रत्येक घटना का सम्बन्ध विभिन्न भावों, भावेशों,युतियों व् दृष्टियों से होता है इस कारणवश किसी भाव भावेश को शुभ या अशुभ नहीं कहा जा सकता । लग्न कुंडली के छह, आठ अथवा बारह भावों को त्रिक भाव कहा गया है । इन त्रिक भावों में भी सबसे अधिक अशुभ स्थान है अष्टम भाव । जीवन में आने वाले सभी प्रकार के कष्टों में कहीं न कहीं आठवें भाव का रोल देखा जा सकता है । जातक के जीवन में घटने वाली घटनाओं में जब जब आठवां भाव एक्टिवेशन में आता है तो कुछ न कुछ अशुभ होने की संभावना बनती है । या तो कार्य होता ही नहीं है , या मन मुताबिक नहीं होता है, लेट हो जाता है, पेमेंट कम मिलता है, कोई दुर्घटना हो जाती है आदि अनेक कारणों से शुभ परिणाम प्राप्त नहीं हो पाते हैं । असेंडेंट का मृत्यु भाव होने से भी इस भाव को अशुभ कहा गया है । यहाँ मृत्यु भाव से आशय है मृत्यु तुल्य कष्ट प्रदान करने वाला भाव । यदि अष्टम अष्टमेश अशुभ होकर बहुत बलशाली भी हों तो अपनी दशा अन्तर्दशा में जीना दूभर कर देते हैं या यूँ कह लीजिये की मृत्यु तुल्य कष्ट प्रदान करते हैं ।
कालपुरुष कुंडली में अष्टम भाव में वृश्चिक राशि आती है । अतः अष्टम स्थान से शरीर सुख की जानकारी प्राप्त की जाती है । किसी अशुभ के बाद मिलने वाले लाभ की जानकारी इस भाव से प्राप्त की जाती है । जैसे पिता की मृत्यु के पश्चात् प्राप्त होने वाली पूँजी या प्रॉपर्टी । रेस कोर्स या शेयर मार्किट के उछाल से मिलने वाला लाभ, दुर्घटना का मुआवजा, नौकरी छुटने पर ग्रेच्युटी की प्राप्ति, बीमा से प्राप्त होने वाला धन, पत्नी से प्राप्त होने वाला धन आदि ।
अष्टम भाव से जुड़े अन्य पक्ष other aspects related to eighth house:
रहस्य्मयी घटनाओं के अध्यन में अष्टम भाव का अध्यन बहुत आवश्यक हो जाता है, जैसे काला जादू (ब्लैक मैजिक), गुप्त रहस्य, षड्यंत्र, साजिश, गुप्त शत्रु, अवैध सम्बन्ध, गुप्त प्रेम सम्बन्ध, दुर्घटनाएं,जासूसी, आपरेशन, एबॉर्शन आदि । छोटे भाई बहन का स्वास्थ्य, नौकरी या ऋण संबंधी जानकारी, बड़े भाई के प्रमोशन, प्रतिष्ठा, मित्रों की मान प्रतिष्ठा, यश, सम्मान की जानकारी आठवें भाव से प्राप्त की जाती है । नवम से बारहवां होने से उच्चस्तरीय शिक्षा में बाधक माना जाता है, धर्म कर्म या धार्मिक यात्राओं में बाधा उत्पन्न करता है या देरी करवाता है, आठवें भाव का छठे अथवा बारहवें भाव से योग अशुभता में वृद्धिकारक होता है । अष्टम भाव से शनि की युति दीर्घायु प्रदान करती है , यदि बीमारी हो तो बहुत लम्बी चलती है । यदि मंगल हों तो असेंडेंट की मृत्यु अचानक होने की संभावना रहती है, राहु या केतु अष्टम भाव में हों तो मृत्यु रहस्य्मयी ढंग से होगी या मृत्यु के असल कारण की जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती है । यदि अष्टम में चंद्र, गुरु या शुक्र हों और अष्टम शुभ गृह से दृष्ट हो तो जाना जा सकता है की जातक को मृत्यु के समय में अल्प कष्ट होगा । किसी भी पापी या शुभ गृह के अष्टमस्थ होने पर उस गृह विशेष के स्वयं के घर, कारकत्व मारकत्व, अन्य घरों पर पड़ने वाली दृष्टियां, अष्टम पर पड़ने वाली दृष्टियां, ग्रहयुतियाँ, नक्षत्र स्वामी,अष्टमेश की स्थिति आदि का भली प्रकार विश्लेषण करना अत्यंत आवश्यक है ।