ज्योतिषहिन्दी.इन के नियमित पाठकों का ह्रदय से अभिनन्दन । आज हम एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय को लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत हो रहे हैं । यह विषय है “नक्षत्रों का शरीर के अंगों पर प्रभाव” Nakshtras effects on different body parts । अभी तक आप जान ही चुके हैं की प्रत्येक राशि के अंतर्गत सवा दो नक्षत्र आते हैं । इस प्रकार से अभिजीत को जोड़कर अट्ठाईस नक्षत्रों को बारह राशियों में विभक्त किया गया है । आज हम आपसे साझा करने जा रहे हैं की इन नक्षत्रों के अंतर्गत शरीर के कौन से अंग आते हैं अथवा ये नक्षत्र हमारे शरीर के कौन कौन से अंगों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं ।
साधारणतया नक्षत्रों की गणना अश्विनी नक्षत्र से की जाती है परन्तु परंपरागत ज्योतिष में अश्विनी नक्षत्र का प्रभाव पैरों के ऊपरी भाग से सम्बंधित कहा गया है जो हमें तर्कसंगत भी प्रतीत होता है । अतः हम अपना लेख सूर्य के नक्षत्र कृतिका से आरम्भ करते हैं । श्री रामजी….
कृत्तिका Kritika Nakshatra :
इस नक्षत्र के स्वामी सूर्य देव हैं । कृतिका नक्षत्र का प्रभाव क्षेत्र हमारे सर पर कहा गया है । यदि कृतिका नक्षत्र पाप प्रभाव में आ जाये तो सर से सम्बंधित समस्या की सम्भावना प्रबल रहती है ।
रोहिणी Rohini Nakshatra :
रोहिणी नक्षत्र के स्वामी चंद्रमा होते हैं । इसका प्रभाव क्षेत्र माथा या ललाट माना जाता है । जन्मकालीन रोहिणी नक्षत्र यदि पीड़ित हो जाए अथवा गोचर में यह नक्षत्र पीड़ित होता है तो शरीर के इस भाग को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है । जातक को इस नक्षत्र से सम्बंधित क्षेत्र में तकलीफ रहती है ।
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मृगशिरा Mrigasira Nakshatra :
मृगशिरा के स्वामी मंगल है । भौहों को इस नक्षत्र के प्रभाव के अंतर्गत गिना जाता है । मृगशिरा नक्षत्र के पीड़ित होने पर जातक को भौहों से सम्बंधित परेशानी की सम्भावना विकसित होती है ।
आर्द्रा Ardra Nakshatra :
आर्द्र नक्षत्र का स्वामित्व राहु देवता के पास है । इस नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में जातक की आँखें आती हैं । यदि आर्द्र नक्षत्र किसी प्रकार पीड़ित है तो जातक को आँखों से सम्बंधित रोग होते हैं ।
पुनर्वसु Punarvasu Nakshatra :
पुनर्वसु के स्वामी ग्रह बृहस्पति देव हैं । इस नक्षत्र का प्रभाव जातक की नाक पर कहा गया है । इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर जातक को नाक से सम्बंधित बीमारी या परेशानी रहने का योग बनता है ।
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पुष्य Pushya Nakshatra :
पुष्य नक्षत्र के स्वामी कर्मफलदाता शनि देव हैं । इस नक्षत्र के नकारात्मक रूप से प्रभावित होने पर जातक कोक चेहरे से सम्बंधित तकलीफ का सामना करना पड़ता है ।
आश्लेषा Ashlesha Nakshatra :
इस नक्षत्र के स्वामी राजकुमार बुध देव हैं । इसका अधिकार क्षेत्र कान है । यदि नक्षत्र किसी प्रकार से पाप ग्रसित है तो कानों में शिकायत रहती है ।
मघा Magha Nakshatra :
मघा के स्वामी ग्रह केतु देव हैं । इस नक्षत्र के अन्तर्गत ओंठ और ठुड्डी आते हैं । पाप गृह से प्रभावित होने पर इन जगहों से सम्बंधित तकलीफ रहती है ।
पूर्वाफाल्गुनी Poorva Phalguni Nakshatra :
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का स्वामित्व शुक्र गृह के पास है । इस नक्षत्र के अन्तर्गत दाएं हाथ को रक्खा गया है । यदि यह नक्षत्र किसी प्रकार से पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो दाएं हाथ का विचार किया जाता है ।
उत्तराफाल्गुनी Uttara Phalguni Nakshatra :
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के स्वामी सूर्य देव होते हैं और इनका प्रभाव बाएं हाथ पर होता है । इस नक्षत्र से बाएं हाथ का विचार करना चाहिए ।
हस्त Hasta Nakshatra :
हस्त नक्षत्र के स्वामी चंद्रमा देवता हैं और इसका प्रभाव हाथों की अंगुलियों पर कहा जाता है । नक्षत्र के पीड़ित होने पर अंगुलियों से सम्बंधित कोई परेशानी रहने की सम्भावना रहती है ।
चित्रा Chitra Nakshatra :
चित्रा के स्वामी मंगल हैं । जातक के गले पर इस नक्षत्र का प्रभाव देखा जा सकता है ।
स्वाति Swati Nakshatra :
स्वाति नक्षत्र के स्वामी राहु देव हैं । नक्षत्र का प्रभाव फेफड़ों पर कहा गया है ।
विशाखा Vishaka Nakshatra :
विशाखा के स्वामी देवगुरु बृहस्पति हैं । इस नक्षत्र का प्रभाव वक्षस्थल पर रहता है ।
अनुराधा Anuradha Nakshatra :
अनुराधा के स्वामी शनि देव हैं और प्रभाव क्षेत्र उदार यानी पेट है ।
ज्येष्ठा Jyeshta Nakshatra :
ज्येष्ठा नक्षत्र का स्वामित्व बुद्ध देवता के पास है और अधिकार क्षेत्र वक्ष के नीचे दायां हिस्सा है ।
मूल Moola Nakshatra :
मूल के स्वामी बुद्ध देव हैं और अधिकार क्षेत्र वक्ष के नीचे बायां हिस्सा होता है ।
पूर्वाषाढ़ा Poorvashada Nakshatra :
इसके स्वामी शुक्र और प्रभाव क्षेत्र पीठ पर कहा गया है ।
उत्तराषाढ़ा Uttarashada Nakshatra :
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के स्वामी सूर्य देव हैं और प्रभाव क्षेत्र कमर का निचला हिस्सा ( लोअर बैक ) होता है ।
श्रवण Shravana Nakshatra :
भचक्र के बाइसवें नक्षत्र के स्वामी चंद्रमा देवता होते हैं । नक्षत्र का प्रभाव गुप्तांगों पर रहता है ।
धनिष्ठा Dhanishta Nakshatra :
धनिष्ठा के स्वामी मंगल देवता होते हैं । इस नक्षत्र का प्रभाव जातक के गुदा स्थान पर रहता है ।
शतभिषा Satabhisha Nakshatra :
सौ तारों के समूह, शतभिषा नक्षत्र के स्वामी राहु देव हैं । इसका प्रभाव जातक की दाईं टांग पर कहा गया है ।
पूर्वाभाद्रपद Purva Bhadrapada Nakshatra :
यह नक्षत्र वृहस्पति देव के स्वामित्व के अंतर्गत आता है । इसका प्रभाव बाईं टांग पर रहता है ।
उत्तराभाद्रपद Uttara Bhadrapada Nakshatra :
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी शनि देव हैं और इस नक्षत्र का प्रभाव पिंडली के अगले हिस्से पर कहा जाता है ।
रेवती Revati Nakshatra :
रेवती नक्षत्र के स्वामी बुद्ध देव हैं और इसका प्रभाव एड़ी और घुटने पर भी कहा जाता है ।
अश्विनी Ashwini Nakshatra :
अश्विनी नक्षत्र के स्वामी केतु हैं और प्रभाव क्षेत्र तलवों के ऊपर की ओर या पैरों के ऊपरी भाग पर कहा जाता है ।
भरणी Bharani Nakshatra :
भरणी नक्षत्र के स्वामी शुक्र देवता होते हैं और इस नक्षत्र का प्रभाव तलवों पर नीचे के भाग की ओर कहा गया है ।
किसी भी नक्षत्र के पीड़ित अथवा शुभ अवस्था में होने पर उस नक्षत्र से सम्बंधित शरीर के हिस्से पर प्रभाव साफ़ तौर पर देखा जा सकता है । इन नक्षत्रों में बैठने वाले ग्रहों तथा नक्षत्रों के प्रतिनिधि भावों के अनुरूप फल जानने का प्रयास करें । प्रत्येक कुंडली में इनका प्रभाव विभिन्न तथ्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है ।