सूर्य-पुत्र शनि मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं । मेष राशि मंदगामी शनि देव की नीच व् तुला उच्च राशि है । धनु लग्न कुंडली में मंदगामी शनि दुसरे और तीसरे भाव के स्वामी हैं । अतः शनि देव इस लग्न कुंडली में एक अति मारक गृह हैं । इस लग्न कुंडली के जातक को किसी भी सूरत में नीलम रत्न धारण नहीं करना है । ग्रह बलाबल में सुदृढ़ होने पर अधिक शुभ या अधिक अशुभ फल प्रदान करते हैं । इसके विपरीत यदि ग्रह बलाबल में कमजोर हों तो कम शुभ या कम अशुभ फल प्रदान करते हैं । इस प्रकार कारक ग्रह का बलाबल में सुदृढ़ होना और शुभ स्थित होना उत्तम जानना चाहिए और मारक गृह का बलाबल में कमजोर होना उत्तम जानें । कुंडली के उचित विश्लेषण के बाद ही उपाय संबंधी निर्णय लिया जाता है की उक्त ग्रह को रत्न से बलवान करना है , दान से ग्रह का प्रभाव कम करना है , कुछ तत्वों के जल प्रवाह से ग्रह को शांत करना है या की मंत्र साधना से उक्त ग्रह का आशीर्वाद प्राप्त करके रक्षा प्राप्त करनी है । मंत्र साधना सभी के लिए लाभदायक होती है । आज हम धनु लग्न कुंडली के १२ भावों में शनि देव के शुभाशुभ प्रभाव को जान्ने का प्रयास करेंगे ….
लग्न में शनि देव के आने से जातक बहुत मेहनती होता है , धन , कुटुंब का सहयोग पाता है , वाणी थोड़ी उत्तेजना लिए होती है । वैवाहिक जीवन उलझनों भरा रहता है , साझेदारी के काम से मुनाफा नहीं मिलता है। प्रोफेशन में देर से उन्नति होती है । ऐसी जातक कभी कभी अपनी ही धुन में रहने वाले या मूड़ी स्वभाव के देखे गए हैं ।
ऐसे जातक को धन , परिवार कुटुंब का भरपूर साथ मिलता है । जातक की वाणी उग्र होती है । माता से मन मुंताव लगा रहता है । मकान, वाहन , भूमि का सुख कम ही प्राप्त हो पाता है । रुकावटें लगी रहती हैं , बड़े भाई बहनों का साथ नहीं मिलता है।
जातक बहुत परिश्रमी होता है । जातक का भाग्य बहुत परिश्रम के बाद ही उसका साथ देता है । अपनी मेहनत से सुख के साधनो में मंद गति से वृद्धि करता है । जातक बात बात में उत्तेजित हो जाता है , संतान प्राप्ति में विलम्ब होता है । पिता से मन मुटाव रहता है , जीवन में अधिक मेहनत के चलते जातक कभी कभी नास्तिक भी देखा गया है , फिजूल खर्च व् विदेश यात्रा होती रहती है ।
माता से मन मुटाव लगा ही रहता है । भूमि , मकान , वाहन के सुख में कमी आती है । काम काज की स्थिति अच्छी नहीं होती है । प्रतियोगिता , नौकरी में शनि देव अच्छा नहीं कर पाते हैं । जातक का स्वास्थ्य खराब रहने का योग बनता है ।
मेष राशि शनि देव की नीच राशि है । प्रेम विवाह में कामयाबी नहीं मिलती है । पुत्री का योग बनता है । संतान से / को परेशानी रहती है । अचानक हानि की स्थिति बनती है । जातक की याददाश्त बहुत कमजोर होती जाती है । पत्नी , पार्टनर्स से संबंध मधुर नहीं रहते हैं । बड़े भाई बहन से नहीं निभती है , लाभ प्राप्त नहीं होता है , धन में कमी होती है , कुटुंब जनों का सहयोग नहीं मिलता है । वाणी उग्र हो जाती है । जातक के पेट में जल्दी प्रॉब्लम आती है । छोटे भाई बहन व् कुटुंबजनों को अचानक हानि की संभावना बनती है ।
बहुत मेहनत करने पर भी परिणाम नकारात्मक रहते हैं । लोन वापसी का रास्ता नहीं दिखता , फिजूल व्यय , हर काम में रुकावट आती है , कोर्ट केस , हॉस्पिटल में व्यय होता है , बहुत परिश्रम के बाद भी शुभ परिणाम की कमी रहती है । कोर्ट केस में बहुत लम्बा समय लगने के बाद भी जीत निश्चित नहीं होती है । कुटुंबजनों व् छोटे भाई बहन के परेशान रहने का योग बनता है ।
भार्या थोड़ी उग्र स्वभाव की हो सकती है , वैवाहिक जीवन में कलह आती हैं व् साझेदारों से लाभ नहीं मिलता है , दैनिक आय में अवनति होती है । जातक पितृ भक्त , धार्मिक नहीं होता है , पिता का सहयोग नहीं मिलता है , भाग्य साथ नहीं देता है , मकान ,वाहन , सम्पत्ति के सुख में कमी होती है ।
हर काम में रुकावट आती है , टेंशन बनी रहती है । वाणी बहुत खराब होती है , परिवार , कुटुंब साथ नहीं देता है । काम काज ठप हो जाता है । संतान को/से कष्ट मिलता है , अचानक हानि होती है , जातक को भूलने की बीमारी हो सकती है ।
ऐसा जातक धर्म को नहीं मानता है , जीवन साथी , पिता से नहीं बनती है , भाग्य जातक का साथ नहीं देता है । जातक बहुत परिश्रमी होता है , विदेश यात्राएं करने वाला होता है , बड़े भाई बहन से नहीं निभती है , प्रतियोगिता में परिश्रम के बाद भी जीत नहीं होती है। कोर्ट केस में पैसा व्यय होता है । दुर्घटना का भय होता है ।
शनि की महादशा में जातक का काम काज बहुत बुरी अवस्था में आ जाता है । विदेश सेटलमेंट का योग बनता है , विदेश से लाभान्वित काम ही होंगे। भूमि , मकान , वाहन के सुख में कमी होती है । सातवें भाव सम्बन्धी सभी लाभ हानि में बदल जाते हैं , दाम्पत्य सुख , दैनिक आय में उन्नति होती नहीं हो पाती है , पार्टनरशिप से लाभ प्राप्त नहीं होगा । व्यय बना रहता है । प्रोफेशन में बदलाव आ सकता है या थोड़ा बदलाव होने का योग बनता है ।
धन का लाभ प्राप्त होता है । स्वास्थ्य खराब रहता है , पुत्री प्राप्ति का योग बनता है, यादाश्त अच्छी नहीं होती है , संकल्प शक्ति मजबूत नहीं होती है। बात बात में रुकावटों का सामना करना पड़ता है । जातक की आयु लम्बी होती है ।
शनि की महादशा में विदेश सेटलमेंट का योग बनता है , काम काज ठप हो जाता है , कोर्ट केस चलता है , फिजूल खर्च होते है । परिवार का साथ नहीं मिलता , वाणी बहुत खराब होती है , कुटुंब के सयोग में कमी आ जाती है । प्रतियोगिता में हार होती है , जातक नास्तिक होता है , पिता से रुष्ट रहता है ।
शनि के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए । मारक गृह का रत्न किसी भी सूरत में धारण नहीं किया जाता है । इस लग्न कुंडली में शनि एक मारक गृह हैं । अतः नीलम रत्न धारण नहीं किया जा सकता । नीलम धारण कर अपनी मुसीबतें न बढ़ाएं ।
यदि शनि देव कुंडली के मारक गृह हैं या कारक होकर ३,६,८,१२ भाव या अपनी नीच राशि मेष में स्थित हों या लग्नेश के शत्रु हों और उनकी दशा महादशा / अन्तर्दशा चल रही है तो कोई रत्न धारण करने के बजाये किसी जरूतमंद को काले रंग की गर्म स्लेक्स दान करें , या गर्म जुराब या गर्म कम्बल दिया जा सकता है । चींटीओं को काले तिल खिलाएं । ताया जी से सम्बन्ध मधुर रखें , किसी गरीब या फोर्थ क्लास इम्प्लॉई को कभी दुखी न करें हो सके तो किसी तरह से रिलीफ पंहुचने की कोशिश करें । किसी की ज़मीन न हड़पें , वरना खुद भगवान् भी आपको नहीं बचा सकता है , यदि ऐसा किया हो तो समय रहते माफ़ी मांगकर वापिस करें । किसी बुजुर्ग को लाठी भेंट करें , जामुन का पेड़ लगाएं । यदि समस्या अधिक हो तो किसी बीमार को दवाई उपलब्ध करवाएं । अपने आपको चुस्त रखें , किसी का दिल न दुखाएं । शनि वार का व्रत अवश्य रखें । नित्य संध्या वेला में काले आसान पर शनि देव के मंत्र का जाप करें ।