गुरु व् चंद्र के योगकारक होकर शुभ भाव में स्थित होने से बनता है गजकेसरी योग । गजकेसरी योग की निर्मिति के लिए चंद्र और गुरु दोनों का योगकारक होना, और किसी शुभ भाव में युति बनाकर स्थित होना आवश्यक होता है । दोनों ही ग्रहों में जितना बल होता है उसी के अनुरूप यह योग अपना फल प्रदान करता है । दोनों ग्रहों में से एक भी गृह यदि अस्त हो जाए अथवा बलाबल की दृष्टि से बहुत कमजोर हो तो इस योग को पूर्णतया बना हुआ नहीं कहा जा सकता, न ही इस योग के शुभ फल ही प्राप्त हो पाते हैं ।
धनु लग्न की जन्मपत्री में चंद्र अष्टमेश होकर एक अकारक और गुरु लग्नेश, चतुर्थेश होकर योगकारक गृह बनते हैं । अतः गुरु की दशाएं जातक को शुभ फल प्रदान करने वाली हैं और चंद्र की अशुभ । चंद्र यदि विपरीत राजयोग बना लें तो छह, आठ या बारहवें भाव में स्थित होकर शुभफलदायक होते हैं । धनु लग्न की जन्मपत्री में गजकेसरी योग नहीं बनेगा ।
प्रथम भाव में अकारक चन्द्र जातक को आवश्यकता से अधिक काल्पनिक बना देते हैं, लाइफ व् बिज़नेस पार्टनर्स के साथ इनकी अनबन रहती है । वहीँ गुरु की दशाओं में पहले, पांचवें, सातवें और नौवें भाव सम्बन्धी शुभ फलों में इज़ाफ़ा होता है । गुरु पुत्र संतान प्रदान करते हैं, धन धान्य में वृद्धिकारक होते हैं । धनु लग्न की कुंडली में प्रथम भाव में गजकेसरी योग बनता है ।
चंद्र की दशाओं में रुकावटें दूर होती हैं, धन का आगमन होता है । धनु लग्न की कुंडली में द्वितीय भाव में गजकेसरी योग अवश्य बनता है । गुरु की दशाओं में अशुभ फलों में वृद्धि होती है क्यूंकि मकर राशि में गुरु नीच अवस्था में आ जाते हैं ।
यहाँ गुरु चंद्र परिश्रम में वृद्धिकारक हो जाते हैं, दोनों ग्रहों की दशाओं में परिश्रम में वृद्धि होती है । गजकेसरी योग नहीं बनता ।
गुरु की दशाओं में जातक को परिवार का साथ प्राप्त होता है । सुख सुविधाओं में वृद्धि होती है । नए मकान, वाहन का योग भी बनता है । ऐसे जातक का माता से बहुत लगाव होता है । नौकरी व्यापार में उन्नति के योग बनते हैं । परन्तु धनु लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में भी गजकेसरी योग नहीं बनता है । इसका मुख्य कारण है चंद्र देव का अकारक होना । चंद्र की दशाओं में माता व् जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट भोगना पड़ता है ।
गुरु की दशाओं में जातक की विल पावर मजबूत होती है । प्रेम संबंधों में सफलता हाथ आती है, अचानक कहीं से लाभ होने की संभावनाएं बनती हैं । जातक का स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है । उच्च शिक्षा प्राप्ति के अथवा रिसर्च के योग बनते हैं । ऐसे जातक का संकल्प बहुत मजबूत होता है । चन्द्रमा की दशा में अचानक हानि होती है, पुत्री प्राप्ति का योग बनता है, मानसिक संयुलान उचित नहीं रहता । धनु लग्न की कुंडली में पंचम भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता है ।
त्रिक भावों में कोई योग नहीं बनता । कोर्ट केस में भी पैसा व्यय होने के चान्सेस बनते हैं । नौकरी/व्यापार में पैशानियाँ बढ़ती हैं । विपरीत राजयोग की स्थिति में चंद्र शुभ फलदायक होते हैं । अतः धनु लग्न की कुंडली में छठे भाव में गजकेसरी योग नहीं बनेगा ।
गुरु की दशाओं में व्यापार से लाभ के योग बनते हैं । गुरु की दशाओं में लाइफ पार्टनर और बिज़नेस पार्टनर के साथ संबंधों में मधुरता रहती है । साझेदारी के व्यापार से भी लाभ होता है । नए मकान वाहन का योग बनता है । चंद्र की दशाएं शुभफलदायी नहीं होती हैं । व्यापार बंद होने के कगार पर आ जाता है, पार्टनर्स से नहीं बनती, स्वयं का मन भी खिन रहता है ।
आठवाँ भाव त्रिक भाव में से एक होता है, शुभ नहीं कहा जाता है । इस भाव में गुरु चंद्र की युति से कोई योग नहीं बनता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में जातक मृत्यु तुल्य कष्ट भोगता है । केवल विपरीत राजयोग की स्थिति में चंद्र शुभ फल प्रदान करता है ।
गुरु की दशाओं में जातक पिता की सुनता है, परिश्रम का फल भी प्राप्त होता है, यात्राओं से लाभ होता है, पुत्र प्राप्ति का योग अवश्य बनता है । चंद्र की दशाओं में यात्राएं होती हैं, यात्राओं से लाभ प्राप्त नहीं होता है। पिता से भी अनबन रहती है, पिता को कष्ट के योग बनते हैं । धनु लग्न की कुंडली में नौवें भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता है ।
गुरु की दशाएं लाभ पहुँचाने वाली रहती हैं, प्रोफेशन में उन्नति होती है, माता से बनती है, धन का अभाव नहीं रहता है, स्वास्थ्य उत्तम रहता है, परिवार का साथ भी प्राप्त होता है । चन्द्रमा की दशाओं में काम काज ठप होने के योग बनते हैं, पारिवारिक सुख में कमी आती है । धनु लग्न की कुंडली में दसवें भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता है ।
गुरु की दशाओं में पुत्र का योग बनता है, अचानक लाभ के योग बनते हैं, जातक को परिश्रम का उचित फल प्राप्त होता है । गुरु की दशाओं में जातक बहुत अधिक धन, मान, सम्मान अर्जित करता है । चंद्र की दशाओं में अचानक हानि होती है, पुत्री का योग बनता है । गजकेसरी योग नहीं बनता ।
बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, शुभ नहीं माना जाता है । बारहवें भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता । दोनों ग्रहों की दशाओं में व्यर्थ का व्यय लगा ही रहता है । कोर्ट केस में धन व्यय होने के योग बनते हैं । चंद्र यदि विपरीत राजयोग बना लें तो शुभ फलदाय हो जाते हैं ।
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