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धनु लग्न की कुंडली में चंद्र – Dhanu Lagn Kundali me Chander (Moon)

भारत देश में प्रचलित पौराणिक ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार चंद्र मन , माता व् जल के कारक कहे गए हैं । शरीर में मौजूद ७४ – ७५ प्रतिशत जल को पूरी तरह से प्रभावित करने में चन्द्रमा पूरी तरह से सक्षम कहे गए हैं । स्वभाव से चंचल , ह्रदय से कोमल चंद्र देव वृष राशि में उच्च व् वृश्चिक में नीच के माने आते हैं । धनु लग्न की कुंडली में चन्द्रमा अष्टमेश होकर एक मारक गृह के रूप में मान्य हैं । धनु लग्न के जातक को किसी भी सूरत में चंद्र रत्न मोती धारण नहीं करना है । आपको बताते चलें की जन्मपत्री के उचित विश्लेषण के बाद ही उपाय संबंधी निर्णय लिया जाता है की उक्त ग्रह को रत्न से बलवान करना है , दान से ग्रह का प्रभाव कम करना है , कुछ तत्वों के जल प्रवाह से ग्रह को शांत करना है या की मंत्र साधना से उक्त ग्रह का आशीर्वाद प्राप्त करके रक्षा प्राप्त करनी है आदि । मंत्र साधना सभी के लिए लाभदायक होती है । आज हम धनु लग्न की कुंडली के १२ भावों में चन्द्रमा देवता के शुभाशुभ प्रभाव को जानने का प्रयास करेंगे …



धनु लग्न – प्रथम भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chander pratham bhav me :

चंद्र यदि लग्न में स्थित हो तो चन्द्रमा की महादशा में जातक का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता है । हर काम में रुकावट आती है | जीवनसाथी से मन मुटाव रहता है , दाम्पत्य जीवन के लिए चंद्र अशुभता प्रदान करते हैं । साझेदारी के काम से हानि का योग बनता है । दैनिक आय में कमी आती है । चंन्द्रमा की महादशा में चंद्र के बलाबलानुसार फलों में कमी या वृद्धि का अनुमान लगाएं । यहां चंद्र के बलाबल में कमी शुभत्व प्रदान करती है |

धनु लग्न – द्वितीय भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chandra dwitiya bhav me :

ऐसे जातक के कुटुंब में धन आगमन में कमी आती है , परिवार कुटुंब का भरपूर साथ कभी नहीं मिलता है , वाणी बहुत खराब होती है । रुकावटें दूर होने का नाम नहीं लेती हैं , चन्द्रमा की महादशा में प्रोफेशन सेटल होने में बहुत दिक्कत आती है |

धनु लग्न – तृतीय भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chander tritiy bhav me :

जातक को बहुत परिश्रम करना पड़ता है , पराक्रम में कमी आ जाती है । परिश्रम के बाद जातक का भाग्य उसका साथ कम ही देता है । छोटी बहन का योग बनता है । जातक धार्मिक नहीं होता , पिता से अनबन रहती है | विदेश यात्रा करता है ।

धनु लग्न – चतुर्थ भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chander chaturth bhav me :

चंद्र की महदशा में चतुर्थ भाव में चंद्र होने से जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का सुख प्राप्त नहीं होता है । माता से बहुत लगाव नहीं होता है । काम काज की स्थिति बत्तर हो जाती है ।

धनु लग्न – पंचम भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chander pncham bhav me :

जातक का मन अशांत रहता है , प्रोफेशन प्राइवेट हो सकता है , पुत्री प्राप्ति का योग बनता है , बड़े भाई बहन से संबंधों में मधुरता नहीं रहती है , लाभ प्राप्त नहीं होता है । अल्पकालीन व्याधि होती है ।

धनु लग्न – षष्टम भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chander shashtm bhav me :

कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । प्रतियोगिता में बहुत मेहनत के बाद विजयश्री हाथ आती है । विदेश सेटेलमेंट का योग भी बनता है । जेल जाना पड़ सकता है । विदेश यात्रा होती है । यदि लोन लिया हो तो वापसी का कोई रास्ता नहीं बनता है | मन खिन्न रहता है । ससुराल पक्ष में किसी का स्वास्थ्य भी खराब हो सकता है | यदि गुरु बलवान हो व शुभ स्थित हों तो विपरीत राजयोग का निर्माण होता है व चन्द्रमा शुभ फल प्रदान करते हैं |


धनु लग्न – सप्तम भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chander saptam bhav me :

जातक / जातीका का जीवन साथी सुन्दर , आकर्षक तो दिखता है , शत्रु राशि में आने पर दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं रहता है , साझेदारों से लाभ प्राप्ति का योग नहीं बनता है , दैनिक आय में कमी आती है ।

धनु लग्न – अष्टम भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chandra ashtam bhav me :

अपनी वाणी से सारे काम बिगाड़ लेता है । यहां चंद्र के अष्टम भाव में स्थित होने की वजह से जातक के हर काम में रुकावट आती है । फिजूल का व्यय होता रहता है । कुटुंब का साथ नहीं मिलता है , धन की हानि होती है । जातक के घर से दूर रहने का योग बनता है । जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट भोगना पड़ता है । चन्द्रमा का बलाबल में कमजोर होना शुभ होता है । प्रोफेशनल लाइफ में बहुत परेशानी आती है । चन्द्रमा की महादशा में किसी कुटुंबजन स्वास्थ्य खराब रहता है , माता को कष्ट हो सकता है , जातक के मन की स्थिति दयनीय हो जाती है | यदि गुरु बलवान हो व शुभ स्थित हों तो विपरीत राजयोग का निर्माण होता है व चन्द्रमा शुभ फल प्रदान करते हैं |

धनु लग्न – नवम भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chander nvm bhav me :

चंद्र यहां शुभ फल प्रदान नहीं करते हैं । पिता के स्वास्थ्य में गिरावट आती है , छोटे भाई बहन से संबंधों में मधुरता नहीं रहती है । यात्राओं से लाभ अर्जित नहीं हो पाता। छोटी बहन का योग बनता है ।

धनु लग्न – दशम भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chander dasham bhav me :

जातक का प्रोफेशन उत्तम स्थिति में नहीं रहता है , मन खिन्न रहता है । जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का पूर्ण सुख नहीं मिलता है । चन्द्रमा की महादशा में जातक तरक्की नहीं कर पाता । प्रोफेशनल लाइफ में बहुत परेशानी आती है |

धनु लग्न – एकादश भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chander ekaadash bhav me :

अपनी महादशा / अन्तर्दशा में बड़े भाई बहनो से कलह रहती है । पेट में छोटी मोटी बीमारी लगने की संभावना रहती है जो बाद में ठीक भी हो जाती है । पुत्री प्राप्ति का योग बनता है । अचानक हानि होती है ।

धनु लग्न – द्वादश भाव में चंद्र – Dhanu Lagan – Chander dwadash bhav me :

हमेशा कोई ना कोई टेंशन बनी रहती है । मन परेशान रहता है । कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । चन्द्रमा की महादशा में व्यर्थ का खर्च बना रहता है । जेल जाने का योग भी बनता है । प्रतियोगिता में हार होती है । जातक विदेश में काम करे तो भी खर्च आमदनी से अधिक रहने की संभावना बनती है ।

कृपया ध्यान दें ….चंद्र के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए । यदि चन्द्रमा कारक गृह हो , बलाबल में ताकतवर हो और शुभ स्थित हो ( ३,६,८,१२ भाव या अपनी नीच राशि में स्थित नहीं है , किसी पाप गृह से दृष्ट या संयोग में नहीं है ) तो किसी उपाय की आवश्यकता नहीं है , अन्यथा चन्द्रमा के ३,६,८,१२ भाव या नीच राशि में स्थित होने पर मोती रत्न कदापि धारण न करें । माता व् माता तुल्य लेडीज का सम्मान करें , पूर्णिमा का व्रत रखें । मंत्र साधना का सहारा लेकर चंद्र के अशुभ फलों में कमी लायी जा सकती है । चंद्र रत्न मोती किसी भी सूरत में धारण न करें । कुंडली का उचित विश्लेषण करवाने के उपरान्त ही किसी उपाय को अपनाएँ । हमेशा याद रखें साधना से किसी भी गृह के अशुभ फलों में कमी लायी जा सकती है । सभी का मंगल हो ।

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