प्राप्त जानकारी के अनुसार ब्रह्मा जी (Brahma Ji) ने जगत की रचना की और माँ सरस्वती (Maa Saraswati) के आशीर्वाद से जगत का विकास हुआ। पुराणों में वर्णित है की ब्रम्हा जी के मुख से एक सूंदर स्त्री जिन्हें हम माँ सरस्वती के नाम से जानते हैं का जन्म हुआ। कहते हैं की जैसे ही माँ ने वीणा का स्वर छेड़ा सम्पूर्ण जगत आनंदविभोर हो उठा। शायद यही वजह हो की माँ की वीणा को सभ्यता के विकास के साथ जोड़कर देखा जाता है। हम उस दिन को वसंत पंचमी के रुप में जानते हैं। इसके साथ ही दुर्गा नवमी के दुसरे दिन भी माँ सरस्वती की पूजा का विधान है। देवी माँ को ज्ञान, साहित्य, कला और स्वर की देवी माना जाता है सो कला के साधकों के जीवन में वसंत पंचमी व् दुर्गा नवमी दोनों का विशेष महत्त्व है।
देवी सरस्वती का स्वरूप – Incarnation of Devi Saraswati
मां सरस्वती को शांत स्वभाव की देवी कहा गया है। उनके चार हाथों में से एक में माला दुसरे में वेदों को दिखाया गया है और दो अन्य हाथों में मां ने वीणा धारण की हुई है। मां को श्वेत रंग अतिप्रिय है। इनके गले में श्वेत रंग की माला है तथा इनके वस्त्र भी श्वेत हैं। देवी सरस्वती (Devi Saraswati) का वाहन मोर हैं।
सरस्वती पुराण के अनुसार सरस्वती जी का जन्म ब्रह्मा के मुख से हुआ था। देवी सरस्वती के अद्भुत रूप को देखकर ब्रह्मा जी ने उनसे विवाह कर लिया। अब ब्रह्मा जी और देवी सरस्वती के पुत्र को “स्वयंभु मनु” के नाम से जाना जाता है। मान्यता ये भी है कि अपनी ही पुत्री से विवाह करने की वजह से ब्रह्माजी की पूजा अन्य देवों की तरह नहीं की जाती है। इसे इस प्रकार भी देखा जा सकता है की जीवन यदि संगीतमयी हो तो आनंद से कट जाता है अन्यथा बोझ प्रतीत होता है। ब्रह्मा जी यदि जीवन हैं तो माँ सरस्वती संगीत हैं। इन दोनों से जीवन संगीतमयी है।
जो कुंद के फूल, चन्द्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण हैं, श्वेत वस्त्र धारण किये हए हैं, हाथों में वीणा और दंड शोभायमान हैं और जिन्होंने श्वेत कमल पर आसान ग्रहण किया हुआ है तथा ब्रह्मा, विष्णु व् महेश आदि देवता जिनकी पूजा करते हैं, ऐसी अज्ञान रुपी अन्धकार को दूर करने वाली और सम्पूर्ण जड़ता का विनाश करने वाली माँ देवी सरस्वती हमारी रक्षा करें।