वृष लग्न कुंडली में देव गुरु वृहस्पति अष्टमेश, एकादशेश होते हैं । अतः दैत्य लग्न की इस लग्न कुंडली में देव गुरु एक मारक गृह हैं । ऐसी स्थिति में गुरु की दशा, अंतर्दशा में अधिकतर फल अशुभ ही प्राप्त होते हैं । केवल विपरीत राज योग की स्थिति में देव गुरु शुभ फल प्रदान … Continue reading
वृष लग्न कुंडली में चंद्र तृतीयेश होने से एक मारक गृह होते है । वृष लग्न की कुंडली में अगर चंद्र बलवान ( डिग्री से भी ताकतवर ) होकर शुभ स्थित हो तो भी अधिकतर फल अशुभ ही प्राप्त होते हैं । इस लग्न कुंडली में चंद्र डिग्री में ताकतवर न हो तो इनके अशुभ … Continue reading
आज हम वृष लग्न की कुंडली में बुद्ध के बारे में जानने का प्रयास करेंगे । वृष लग्न कुंडली में बुद्ध द्वितीयेश, पंचमेश होने से एक कारक गृह बनता है । इस लग्न की कुंडली में अगर बुद्ध बलवान ( डिग्री से भी ताकतवर ) होकर शुभ स्थित हो तो अधिकतर फल शुभ ही प्राप्त … Continue reading
वैदिक ज्योतिष में केतु को एक मोक्षकारक पापी , क्रूर , छाया गृह के रूप में देखा जाता है । जहां एक तरफ केतु को आध्यात्मिकता का कारक कहा गया है , वहींकेतु तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ के भी कारक है। इन्हें मंगल देवता जैसे परिणाम देने वाला भी कहा जाता … Continue reading
वैदिक ज्योतिष में केतु को एक मोक्षकारक पापी , क्रूर , छाया गृह के रूप में देखा जाता है । इन्हें मंगल देवता जैसे परिणाम देने वाला भी कहा जाता है । अपनीमहादशा में केतु एक के बाद एक चौंकाने वाले परिणाम दे सकते हैं । इनका अपना कोई घर नहीं होता । इसलिए केतु … Continue reading
भारतीय ज्योतिष में शनि देव कर्म फल दाता कहा गया है । शनि एक पापी और क्रूर गृह के रूप में प्रितिष्ठित हैं । परन्तु ये केवल उनके लिए अनिष्टकारी हैं जो अनैतिक, अमानवीय कृत्यों में ( जाने अनजाने ) लिप्त रहे हैं । अन्यथा एक साधारण मानव को देव तुल्य बना दें ऐसी क्षमता … Continue reading
वैदिक ज्योतिष में राहु को एक पापी, क्रूर, छाया गृह के रूप में देखा जाता है । अपनी महादशा में राहु एक के बाद एक चौंकाने वाले परिणाम दे सकते हैं । इनका अपना कोई घर नहीं होता । इसलिए राहु देवता जिस घर या राशि में जाते हैं उसके अनुरूप ही परिणाम देते हैं … Continue reading
भारतीय पौराणिक मान्यताओं में सूर्य को एक आत्म कारक देव गृह माना गया है । इन्हें ऐसे देव गृह कहा जाता है जो दृश्य हैं , जिसे हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं । सूर्य देव शरीर में आत्मा , हड्डियों , दिल व् आँखों के कारक कहे जाते हैं । मेष लग्न कुंडली में सूर्य … Continue reading
मेष लग्न कुंडली में चंद्र चतुर्थ भाव का स्वामी होने से एक कारक गृह बनता है । अतः ऐसी स्थिति में चंद्र जिस भाव में जाएगा और जिस भाव को देखेगा उन भावोंसे सम्बंधित फलों को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करेगा और उनमे बढ़ोतरी करेगा । मेष लग्न की कुंडली में अगर चंद्र बलवान ( … Continue reading
मेष लग्न कुंडली में देव गुरु वृहस्पति नवमेश , द्वादशेश होते हैं । देव लग्न की कुंडली के त्रिकोण में देव गुरु की मूल राशि आती है । अतः इस लग्न कुंडली में गुरुएक कारक गृह हैं । ऐसी स्थिति में गुरु जिस भाव में स्थित होते हैं , और जिस भाव से दृष्टि संबंध … Continue reading