वैदिक ज्योतिष में केतु को एक मोक्षकारक पापी, क्रूर, छाया गृह के रूप में देखा जाता है । जहां एक तरफ केतु को आध्यात्मिकता का कारक कहा गया है , वहींकेतु तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ के भी कारक है। इन्हें मंगल देवता जैसे परिणाम देने वाला भी कहा जाता है । … Continue reading
राहु को शनि देव की छाया भी कहा जाता है । कुंडली में उचित प्रकार से स्थित राहु जातक को मात्र भक्त, शत्रुओं का पूर्णतया नाश करने वाला, बलिष्ठ, विवेकी, विद्वान, ईश्वर के प्रति समर्पित, समाज में प्रतिष्ठित व् धनवान बनाता है । इसके विपरीत यदि राहु लग्न कुंडली में उचित प्रकार से स्थित न … Continue reading
वैदिक ज्योतिष में कर्म फल दाता शनि देव एक पापी और क्रूर गृह के रूप में प्रितिष्ठित हैं । सूर्य-पुत्र शनि मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं जो मेष राशि में नीच व् तुला में उच्च के माने जाते हैं । मिथुन लग्न कुंडली में मंदगामी शनि अष्टमेश, नवमेश होते हैं । अतः शनि … Continue reading
मिथुन लग्न कुंडली में देव गुरु बृहस्पति सप्तमेश, दशमेश होते हैं । अतः इस लग्न कुंडली में गुरु एक सम गृह हैं ।मिथुन लग्न की कुंडली के उचित विश्लेषण के बाद जातक को गुरु रत्न पुखराज धारण करवाया जा सकता है । उचित विश्लेषण के अभाव में कोई भी रत्न धारण नहीं करना चाहिए । … Continue reading
भारतीय पौराणिक मान्यताओं में सूर्य को एक आत्म कारक देव गृह माना गया है । इन्हें ऐसे देव गृह कहा जाता है जो दृश्य हैं , जिसे हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं । सूर्यदेव शरीर में आत्मा, हड्डियों, दिल व् आँखों के कारक कहे जाते हैं । मिथुन लग्न कुंडली में सूर्य तृतीय भाव का … Continue reading
वैदिक ज्योतिष में कर्म फल दाता शनि देव एक पापी और क्रूर गृह के रूप में प्रितिष्ठित हैं । सूर्य-पुत्र शनि मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं जो मेष राशि में नीच व् तुला में उच्च के माने जाते हैं । वृष लग्न कुंडली में मंदगामी शनि नवमेश, दशमेश होते हैं । त्रिकोण और … Continue reading
दैत्य गुरु शुक्र सुंदरता , सौम्यता और सभी प्रकार की लक्ज़री और सुख सुविधा प्रदान करने वाले गृह के रूप में जाने जाते हैं । लग्न कुंडली के चौथे भाव में शुक्र कोदिशा बल मिलता है । जिस जातक की कुंडली में शुक्र बलवान होता है उस पर माँ दुर्गा की विशेष कृपा जाननी चाहिए … Continue reading
कुंडली में उचित प्रकार से स्थित राहु जातक को मात्र भक्त , शत्रुओं का पूर्णतया नाश करनेवाला , बलिष्ठ , विवेकी , विद्वान , ईश्वर के प्रति समर्पित , समाज में प्रतिष्ठित व् धनवान बनाता है । इसके विपरीत यदि राहु लग्न कुंडली में उचित प्रकार से स्थित न हो तो अधिकतर परिणाम अशुभ ही … Continue reading
आज हम वृष लग्न की कुंडली के बारे में विस्तार से जान्ने का प्रयास करेंगे । हम जानेंगे की मेष लग्न की कुंडली में 12 भावों में मंगल कैसे फल प्रदान करते हैं । यहांमंगल सप्तमेश , द्वादशेश होने से एक मारक गृह हैं । मंगल की 4, 7, 8 वीं दृष्टि होती है और … Continue reading
भारतीय पौराणिक मान्यताओं में सूर्य को एक आत्म कारक देव गृह माना गया है । इन्हें ऐसे देव गृह कहा जाता है जो दृश्य हैं, जिसे हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं । सूर्यदेव शरीर में आत्मा, हड्डियों, दिल व् आँखों के कारक कहे जाते हैं । वृष लग्न कुंडली में सूर्य चतुर्थ भाव का स्वामी … Continue reading